पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Daaruka   to Dweepi )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)

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Daaruka - Diti  ( words like Daarukaa, Daalbhya, Daasa, Dikpaala, Diggaja, Dindi, Diti etc. )

Didehaka - Divodaasa (  Dileepa, Divah, Divaakara, Divodaasa etc.)

Divya - Deepa(Divya / divine, Divyaa, Dishaa / direction, Deekshaa / initiation, Deepa / lamp etc. )

Deepaavali - Deerghabaahu ( Deepti / luminescence, Deergha / long, Deerghatapa, Deerghatamaa, Deerghabaahu etc.)

Deerghikaa - Durga ( Deerghikaa, Dugdha / milk, Dundubhi, Durga/fort etc.)

Durghandha - Duryodhana( Durgama, Durgaa, Durjaya, Durdama, Durmukha, Duryodhana etc. )

Durvaarkshee - Duhitaa( Durvaasaa, Dushyanta etc.)

Duhkha - Drishti  ( Duhshaasana, Duhsaha, Duurvaa, Drishadvati, Drishti / vision etc.)

Deva - Devakshetra (Deva / god, Devaka, Devaki etc.)

Devakhaata - Devaraata ( Devadatta, Devadaaru, Devayaani, Devaraata etc. )

Devaraata - Devasenaa (  Devala, Devavaan, Devasharmaa, Devasenaa etc.)

Devasthaana - Devaasura ( Devahooti, Devaaneeka, Devaantaka, Devaapi, Devaavridha, Devaasura Sangraama etc. )

Devikaa - Daitya  ( Devikaa, Devi / Devee, Desha/nation, Deha / body, Daitya / demon etc. )

Dairghya - Dyau (Dairghya / length, Dolaa / swing, Dyaavaaprithvi, Dyu, Dyuti / luminescence, Dyutimaan, Dyumatsena, Dyumna, Dyuuta / gamble, Dyau etc. )

Draghana - Droni ( Dravida, Dravina / wealth, Dravya / material, Drupada, Drumila, Drona, Druhyu etc.)

Drohana - Dwaara( Draupadi, Dvaadashaaha, Dvaadashi / 12th day, Dwaapara / Dvaapara, Dwaara / door etc. )

Dwaarakaa - Dvimuurdhaa(   Dwaarakaa,  Dwaarapaala / gatekeeper, Dvija, Dwiteeyaa / 2nd day, Dvimuurdhaa etc.)

Dvivida - Dweepi( Dvivida, Dweepa / island etc. )

 

 

Puraanic contexts of words like Divya / divine, Divyaa, Dishaa / direction, Deekshaa / initiation, Deepa / lamp etc. are given here.

दिव्य अग्नि २५५.२८ (तुला , अग्नि आदि दिव्य परीक्षाओं द्वारा सत्यानृत का निर्णय), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१४(दिव्यमान : स्वारोचिष मन्वन्तर के १२ संख्या वाले पारावत देवगण में से एक), १.२.३६.३९(उत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक ; दिव्यौषधि : उत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक), २.३.७१.१(कौशल्या व सात्वत के ७ पुत्रों में से एक), ३.४.१.८९(१० संख्या वाले सुतार वर्ग के देवों में से एक), भागवत ९.२४.६(सात्वत के ७ पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१३.१(सात्वत~ के पुत्रों में से एक), स्कन्द १.२.४४(अष्टविध शपथादि दिव्य प्रकार का कथन ) । divya

 

दिव्या गर्ग ५.१८.६ (दिव्या व अदिव्या गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), पद्म २.८६ (दिव्या देवी : दिवोदास -पुत्री, अनेक भर्त्ता मरण दोष, पूर्व जन्म में चित्रा, कृष्ण नाम जप से दोष से निवृत्ति), ५.९२+ (पति मरण के कारण रूप में चित्रा रूपी दिव्यादेवी का चरित्र, वीरसेन से विवाह), ब्रह्माण्ड २.३.१.७४(हिरण्यकशिपु- पुत्री, भृगु - पत्नी, शुक्र - माता), २.३.७.७(२४  मौनेया अप्सराओं में से एक), भविष्य ४.६३ (भृगु - पत्नी, विष्णु द्वारा चक्र से वध), वायु ६५.७३ (हिण्यकशिपु - कन्या, भृगु - भार्या, शुक्राचार्य - माता), लक्ष्मीनारायण ३.५०.२७(दिवोदास राज - कन्या, पतियों का मरण, हेतु वर्णन ), कथासरित् ३.४.२५९(राजा देवसेन की दुःखलब्धिका पुत्री के पतियों के मरण की कथा) divyaa

 

दिशा अग्नि १९.२८(ब्रह्मा द्वारा चारों दिशाओं में चार रक्षकों की नियुक्ति का उल्लेख), ५६.१९ (दिशाओं की रक्षा हेतु देवों के आवाहन, मन्त्र आदि द्वारा पूजन का कथन), १४३.७(विविध दिशाओं में कुब्जिका की क्रमपूजा का वर्णन), २०१(वासुदेव के परित: नव व्यूहार्चन का वर्णन), २४७.४(वास्तुमण्डल के निर्माण में विभिन्न दिशाओं में विभिन्न देवताओं की स्थापना का कथन), २६४.१३(विविध दिशाओं में वैश्वदेव बलि का अर्पण), ३०१.४(अष्टदल कमल के दिग्वर्ती तथा कोणवर्ती अष्ट दलों में गणेश की अष्ट मूर्तियों का पूजन), गरुड १.३५.३ (दिग्दशमी व्रत), १.५५ (जम्बू द्वीप में भारत आदि नव वर्षों का दिशा - विन्यास), १.११६.६ (दिशाओं की नवमी को पूजा?), २.२३.२९ (रोगों के गृहों का चित्रगुप्त के गृह के सापेक्ष दिशा विन्यास), देवीभागवत १२.३.१२(भुवनेश्वरी देवी के विभिन्न रूपों से दसों दिशाओं में रक्षा की प्रार्थना), पद्म १.४७.७० (विभिन्न दिशाओं में म्लेच्छों के लक्षण), ५.१० (रामाश्वमेध में विभिन्न दिशाओं में द्वारों पर स्थित ऋषियों के नाम), ५.६९ (मथुरा में विभिन्न दिशाओं में स्थित वनों का वर्णन), ५.७०.५ (कृष्ण - पत्नियों की दिशाओं में स्थिति), ६.२२८.१३ (अयोध्या में विभिन्न दिशाओं में द्वारपालों चण्ड, प्रचण्ड आदि का कथन), ब्रह्म १.७.५(अत्रि के तेज से पतित रेतस् का दस दिशाओं द्वारा धारण, धारण में असमर्थ होने पर भूमि पर पतन, सोम की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१०.८१ (भीम शिव की दिशाएं पत्नी तथा स्वर्ग पुत्र होने का उल्लेख), भविष्य ३.४.१७.४५ (ध्रुव - पत्नियों के दिशाओं के सापेक्ष नाम, दिशाओं के दिग्गजों व करिणियों के जन्म), ४.२६.१७(अनन्त तृतीया व्रत विधि के अन्तर्गत आठों दिशाओं में भिन्न - भिन्न देवियों की स्थापना), ४.४०.५(मन्दार षष्ठी व्रत विधि के अन्तर्गत अष्टदल कमल के दलों में पूर्वादि दिशा क्रम से सूर्य की भिन्न - भिन्न नाम मन्त्रों द्वारा पूजा), ४.४८.५(कल्याण सप्तमी व्रत विधि के अन्तर्गत अष्टदल कमल में पूर्वादि दिशा क्रम से सूर्य की भिन्न - भिन्न नाम मन्त्रों द्वारा पूजा), ४.५३.३७(अचला सप्तमी व्रत विधि के अन्तर्गत अष्टदल कमल में पूर्वादि दिशाओं के क्रम से सूर्य की पूजा), ४.११६.४(संक्रान्ति व्रत विधि के अन्तर्गत अष्टदल कमल में पूर्वादि दिशाक्रम से सूर्य की भिन्न - भिन्न नाम मन्त्रों से पूजा), भागवत ६.८.३४(नृसिंह से दिशाओं - विदिशाओं में रक्षा की प्रार्थना), ९.१६.२१ (यज्ञ में परशुराम द्वारा ऋत्विजों को दिशाओं का दान), ९.१९.२२(ययाति द्वारा दिशाओं में यदु आदि का नियोजन), १०.८९.४७ (पश्चिम दिशा में अर्जुन व कृष्ण का गमन, अन्धकार का वर्णन, अनन्त से मिलन), मत्स्य ९३.११(ग्रहों का दिशा विन्यास), मार्कण्डेय ९६.४१/९३.४१(दिशाओं के रक्षक अग्निष्वात्त आदि पितरों के नाम), लिङ्ग १.४८ (८ पुरियों की दिशाओं के सापेक्ष स्थिति), वराह १७.२५(दिशाओं की विष्णु से उत्पत्ति), २९ (दस दिशाओं की श्रीहरि के कर्ण से उत्पत्ति व इन्द्र, अग्नि आदि दस लोकपालों से विवाह), ६५(सार्वभौम व्रत के अन्तर्गत दसों दिशाओं को शुद्ध बलि प्रदान करने का विधान), वामन ७०.३२(पूर्वादि चारों दिशाओं में प्रवाहित शिव की रक्त धारा से विद्याराज, कालराज, कामराज तथा सोमराज नामक भैरवों की उत्पत्ति), ८५.९(तपोरत ऋषि द्वारा रक्षामन्त्र से सभी दिशाओं में विष्णु - रूपों द्वारा रक्षा), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.३(विभिन्न दिशाओं में पुरुष व प्रकृति के नाम), वायु ५३.४६(विभिन्न दिशाओं में ग्रहों की योनिभूत सूर्य रश्मियों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०४.१०० (दिशा आवाहन मन्त्र), ३.२२४ (उत्तर दिशा का अष्टावक्र से संवाद : दिशा द्वारा स्त्री स्वभाव का वर्णन, भार्गव मुनि द्वारा स्वसुता दिक् को अष्टावक्र को प्रदान करना), शिव १.१०.९(सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह नामक पञ्चकृत्य को धारण करने हेतु शिव की पञ्चमुखता, चार दिशाओं की चतुर्मुखता तथा पञ्चम मुख ब्रह्मा विष्णु से तप द्वारा प्राप्त), २.१.११.४५(शिव पूजा विधि के अन्तर्गत दिशाओं में अणिमादि सिद्धियों का न्यास), ७.२.२५.४(शिव पूजा के अन्तर्गत विभिन्न दिशाओं में गर्भावरण तथा भिन्न - भिन्न देवों की पूजा), ७.२.२९.२३(शिव के ५ मुखों के ५ दिशाओं में स्वरूप का कथन), ७.२.३०.५(विभिन्न आवरणों में विभिन्न दिशाओं में शिव के नामों का न्यास), स्कन्द ३.१.५१.२४(दिशाओं में वानरों का स्मरण), ४.२.७४.५० (काशी में विभिन्न दिशाओं के रक्षक गणों के नाम), ४.२.८१.४२ (धर्मेश लिङ्ग के परित: स्थित लिङ्ग व उनके फल), ५.१.२६ (महाकाल के परित: द्वारपाल), ५.२.८१.३२(महाकाल के परित: पिङ्गल, कायावरोहण, बिल्वेश्वर तथा दुर्दर्श की नियुक्ति), ५.३.६०.५३ (नर्मदा में विभिन्न दिशाओं में स्नान से विभिन्न पापों के नष्ट होने के संदर्भ में पांच पुरुषों का वृत्तान्त), ७.१.४.९५ (प्रभास क्षेत्र में विभिन्न दिशाओं में द्वारपाल), ७.१.१७.६५ (ग्रहों का दिशाओं के सापेक्ष विन्यास), ७.४.१७ (कृष्ण की पुरी में विभिन्न दिशाओं में द्वारपालों के नाम), हरिवंश ३.३५(यज्ञवाराह द्वारा पूर्वादि चारों दिशाओं में पर्वतों व नदियों का निर्माण), ३.७१.४७(वराह के विराट् स्वरूप के अन्तर्गत कान में दिशाओं की तथा भुजाओं में विदिशाओं की स्थिति), योगवासिष्ठ ३.३६.२१(समस्त दिशाओं से युद्धार्थ आए हुए राजा पद्म के सहायकों का कथन), ५.३१.५८(प्रह्लाद द्वारा कुक्षियों में दिशाओं की धारणा का उल्लेख), वा.रामायण १.४०.१७(सगर - पुत्रों द्वारा अश्व अन्वेषणार्थ रसातल खनन के समय पूर्व आदि चारों दिशाओं में चार दिशा गजों का दर्शन), ४.४०+ (सुग्रीव द्वारा सीता अन्वेषणार्थ विभिन्न दिशाओं में वानर प्रेषण, विभिन्न दिशाओं में स्थानों का वर्णन), महाभारत वन ३१३.८५(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में सन्तों के दिक् होने का उल्लेख), उद्योग १०८+ (गरुड द्वारा गालव को ४ दिशाओं का वर्णन), शान्ति २०८.२६(४ दिशाओं में स्थित ऋषियों के नाम), अनुशासन १६५.३७(४ दिशाओं में विराजने वाले ऋषियों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.२२७.१(द्वारका के परित: ८ दिशाओं में स्थित द्वारपालों के नाम), २.२४६.३१(सम्बन्धी बान्धवों के दिगीश्वर होने से विरोध का निषेध), ३.१००.१२०(दिशा की सूर्य पर मुग्धता, सूर्य के कथनानुसार अगि|म जन्म में पद्मावती नामक पुत्री की प्राप्ति), ३.१२२.१०८ (पुत्रीव्रत से दिशाओं को पद्मावती नामक पुत्री की प्राप्ति), कथासरित् ३.४.५७(वत्सराज के पूछने पर यौगन्धरायण द्वारा दिग्विजय प्रयाण हेतु सर्वप्रथम पूर्व दिशा में गमन के हेतु का कथन ) ;द्र. दिक्, विदिशा । dishaa

Preliminary remarks on Dishaa

दिष्ट देवीभागवत १०.१३ (वैवस्वत मनु के छह पुत्रों में से एक, भ्रामरी देवी की उपासना से इन्द्र सावर्णि मनु बनना), ब्रह्माण्ड १.२.३८.३१(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), २.३.६०.३(वही), भागवत ८.१३.२(श्राद्धदेव/वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), ९.१.१२(श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक), ९.२.२३ (दिष्ट के वंश का वर्णन), मार्कण्डेय ११३/११०(दिष्ट - पुत्र नाभाग द्वारा वैश्य - कन्या से पाणिग्रहण कर वैश्यत्व प्राप्ति का वृत्तान्त), विष्णु ४.१.७(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ) । dishta

 

दीक्षा अग्नि २४.४३ (दीक्षा विधि - गर्भादानन्तु प्रथमं ततः पुंसवनं स्मृतम् । सीमन्तोन्नयनं जातकर्म नामान्नप्राशनम् ॥), २७ (दीक्षा विधि का वर्णन - उखामाज्येन संपूर्य गोक्षीरेण तु साधकः ॥आलोक्य वासुदेवेन ततः सङ्कर्षणेन च ।), ८१ (दीक्षा के सबीजा आदि प्रकार व दीक्षा विधि, समय दीक्षा - विज्ञातकलनामैको द्वितीयः प्रलयाकलः॥ तृतीयः सकलः शास्त्रेऽनुग्राह्यस्त्रिविधो मतः ।), ८२ (संस्कार दीक्षा विधि - मायात्मनोर्विवेकेन ज्ञानं सीमन्तवर्धनं ॥), ८३+ (निर्वाण दीक्षा विधि) ८९ (एकतत्त्व दीक्षा विधि), ३०४ (शिव पञ्चाक्षर मन्त्र दीक्षा विधान), ३२५.४ (दीक्षा कुल भेद का वर्णन), गरुड १.९ (दीक्षा विधि - हस्तं पद्मं समाख्यातं पत्राण्यङ्गुलयः स्मृताः ।।कर्णिकातलहस्तन्तु नखान्यस्य तु केशराः ।।), १.२२.१३ (पञ्च तत्त्व दीक्षा - दीक्षां वक्ष्ये पञ्चतत्त्वे स्थितां भूम्यादिकां परे ।। निवृत्तिर्भूप्रतिष्ठाद्यैर्विद्याग्निः शान्तिवन्निजः ।।), देवीभागवत १२.७.१३१ (दीक्षा लक्षण व विधि का वर्णन - पादयोस्तु कलाध्वानमन्धौ तत्त्वाध्वकं पुनः ॥  नाभौ तु भुवनाध्वानं वर्णाध्वानं तथा हृदि ।..), नारद १.६३.१०७+ (पाश मोचन हेतु दीक्षा की महिमा का कथन ; दीक्षा विधि), १.६४.२(मन्त्र सिद्धिप्रद दीक्षा विधि का निरूपण- दिव्यं भावं यतो दद्यात्क्षिणुयाद्दुरितानि च ।। अतो दीक्षेति सा प्रोक्ता सर्वागमविशारदैः ।।), १.६५.२० (दीक्षा विधि के अन्तर्गत अग्नि, सोम, भानु की कलाओं के नाम), पद्म ५.८२ (कृष्ण मन्त्र दीक्षा विधि - इदमानंदकंदाख्यं विद्धि वृंदावनं मम । यस्मिन्प्रवेशमात्रेण न पुनः संसृतिं विशेत् ), ७.२१(दीक्षित : हरिशर्मा - पुत्र, अन्न जल दान से पिता की स्वदेह भक्षण से मुक्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१०.५५(शिव के उग्र नाम से द्विज के दीक्षित होने का कथन - सप्तमं यन्मया प्रोक्तं नामोग्रेति तव प्रभो ।। तस्य नाम्नस्तनुस्तुभ्यं द्विजो भवति दीक्षितः ।।), १.२.१०.८३ (उग्र रुद्र की पत्नी, सन्तान - माता), ३.४.४३ (श्रीदेवी के दर्शन हेतु स्पर्श, दृग् आदि दीक्षा, क्रिया दीक्षा प्रकार का वर्णन), भविष्य १.६३.१६(भानु दीक्षा के अधिकारी पुरुष के कर्त्तव्य - सर्वान्देवान् रविं वेत्ति सर्वलोकांश्च भास्करम् । तेभ्यश्च नान्यमात्मानं स नरः सौरतां व्रजेत् । ।), १.१४९.२१ (सूर्य दीक्षा विधि), २.१.१७.८ (दीक्षा में अग्नि का नाम जनार्दन - पावको वैश्वदेवे च दीक्षापक्षे जनार्दनः ।।), ४.९४.१३ (सुमन्त - पत्नी, भृगु - पुत्री, अनन्त व्रत माहात्म्य प्रसंग), लिङ्ग २.१३.१८ (उग्र शिव की पत्नी, सन्तान – माता - उग्राह्वयस्य देवस्य यजमानात्मनः प्रभोः।। दीक्षा पत्नी बुधैरुक्ता संतानाख्यः सुतस्तथा।।), २.२०.४६ (दीक्षा की महिमा, दीक्षा के अधिकारी - भौवनं च पदं चैव वर्णाख्यं मात्रमुत्तमम्।। कालाध्वरं महा भाग तत्त्वाख्यं सर्वसंमतम्।।), २.२१.१० (शैवदीक्षा विधि - अघोरं दक्षिणे नीलांजनचयोपमम्।।उत्तरे वामदेवाख्यं जपाकुसुमसन्निभम्।। ), वराह १२७ (दीक्षा - पूर्व अनुशासन ; ब्राह्मण दीक्षा सूत्र का वर्णन), १२८(क्षत्रिय, वैश्यादि दीक्षा विधि - कङ्कतीं चाञ्जनं चैव दर्पणं चैव सुन्दरि ।।यथा मन्त्रेण दातव्यं तच्छृणुष्व वसुन्धरे ।।), २०७.४०(दीक्षा से कुलजन्म प्राप्ति का उल्लेख - अहिंसया परं रूपं दीक्षया कुलजन्म च ।।),  वायु २७.५५(महादेव के ७वें उग्र नामक शरीर की पत्नी रूप में दीक्षा का तथा पुत्र रूप में सन्तान का उल्लेख - ..उग्रा तनुः सप्तमी या दीक्षितैर्ब्राह्मणैः स्मृता। दीक्षा पत्नी स्मृता तस्य सन्तानः पुत्र उच्यते ।।), विष्णुधर्मोत्तर ३.९७ (देव प्रतिमा प्रतिष्ठा विधि के अन्तर्गत यजमान का ऋत्विजों के साथ दीक्षा ग्रहण), शिव ६.२ (शिव द्वारा पार्वती को मन्त्र दीक्षा प्रदान), ७.२.१५.५(दीक्षा की निरुक्ति : दीयते विज्ञानं, क्षीयते पाशबन्धनं । दीक्षा के ३ प्रकारों शाम्भवी, शक्ति व मान्त्री का कथन), ७.२.१५.(शिव दीक्षा विधान का कथन - शांभवी चैव शाक्ती च मांत्री चैव शिवागमे ॥), ७.२.१६ (शिव दीक्षा में शिष्य संस्कार का विधान - इति संक्षेपतः प्रोक्तः संस्कारः समयाह्वयः ॥), स्कन्द १.२.१३ (इन्द्रद्युम्न आदि की प्रार्थना पर लोमश महर्षि द्वारा शिव दीक्षा प्रदान पूर्वक शतरुद्रिय शिवलिङ्ग पूजा का उपदेश), लक्ष्मीनारायण १.११२+ (नारायण द्वारा शिव को वैष्णवी दीक्षा ; दीक्षा विधि - लक्ष्मीनारायणश्चेति मन्त्रः सर्वफलप्रदः । श्रीमन्नारायणश्चेति मन्त्रः सर्वार्थसाधकः ।।..), १.२०२(सनकादि द्वारा शूद्री - सुत नारद को दीक्षा विधान का कथन : बालक द्वारा भुक्त शेष का भक्षण आदि), १.५७५(कन्या दान हेतु आचार्य रूपी वर? से भागवती दीक्षा के ग्रहण का वर्णन), १.५७५.६२(चतुर्वर्ण हेतु दीक्षाविधि- कृष्णसारस्य चर्माऽत्रासनं विप्रः समर्थयेत् ।।पालाशं दण्डमेवाऽयं ब्राह्मणो रक्षयेत् सदा ।..), २.१३३.१०(श्रीहरि द्वारा लालासन योगी को दीक्षा प्रदान, दीक्षा की महिमा का वर्णन, दिशा अनुसार यजन- अकारयच्च तन्मध्ये हैमं कुंभं न्यधापयत् ।अष्टदिक्ष्वष्टकुंभाँश्च तोयरत्नफलान्विताम् ।।..), २.१७५.६५ (दीक्षा में शनि के बलशाली होने का उल्लेख - शुक्रबलं तु यात्रायां दीक्षायां च शनेर्बलम् ।), ३.३५.१२१(श्रीहरि द्वारा बृहद्धर्म नृपति को साधवी दीक्षा प्रदान - राजा नाम्नाऽभवत् राजसूयायनो हि दीक्षितः । राज्ञी च राजसूयश्रीरभवत् साध्विका तदा ।। ), ३.६९.८(मन्त्र दीक्षा की विधि - मन्त्रचतुष्टयं श्रेष्ठं मुक्तिदं दिव्यताप्रदम् ।तज्जपाद्वै भवेन्मोक्षो यावत्कृत्यनिकृन्तनः ।।..), ३.१२०.८१(दीक्षा विधान के अन्तर्गत स्पर्श दीक्षा- हस्ते श्रीनगरं ध्यात्वा धाम यत्परमं परम् ।। महालक्ष्म्या महाविष्णोर्हिरण्मयं सुशोभनम् ।..), महाभारत अनुशासन ५७.११(दीक्षा से उत्तम कुल में जन्म प्राप्ति का उल्लेख - अहिंसायाः फलं रूपं दीक्षाया जन्म वै कुले। ) ; द्र. हरिदीक्षित । deekshaa/ diksha

 References on Deeksha

 

दीक्षित पद्म ७.२१ (हरिशर्मा - पुत्र, अन्न - जल दान से पिता की स्वदेह भक्षण से मुक्ति), वायु २७.१९(दीक्षित ब्राह्मण : कुमार नीललोहित के ८ नामों के संदर्भ में ब्रह्मा की ८ धातुओं में से एक ), द्र. हरिदीक्षित ।deekshita/ dikshita

 

दीधय वायु ३१.६(स्वायम्भुव मन्वन्तर के याम नामक १२ देवों में से एक ) ।

 

दीननाथ पद्म ४.१२ (अपुत्र राजा, गालव परामर्श से नरमेध के निश्चय का प्रसंग ) ।

 

दीप अग्नि २०० (दीप दान व्रत : दीप प्रबोध के प्रभाव से मूषिका का राजकुमारी बनना), गरुड २.२.७४(दीपहारक के कपाली बनने का उल्लेख), नारद १.७५ (हनुमान हेतु दीप निर्माण व दान विधि), १.७६.६१ (कार्त्तवीर्य अर्जुन हेतु दीप निर्माण व दान विधि), १.१२२.४६ (कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को यम व शिव हेतु दीप दान), पद्म २.८६.६७ (दीप द्वारा कर्म तैल को शोषित करने का निर्देश), ४.३(दीप दान की महिमा), ५.८४.८१ (दीप का आध्यात्मिक तात्पर्य), ६.३० (संवत्सर दीप व्रत विधान, कपिल - मार्जार - मूषक कथा), ६.३२(दीप दान का फल), ६.१२१(दीप दान की विधि), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.१३ (दीप दान से ब्रह्म लोक की प्राप्ति), ३.४.४२(दृष्टि सौन्दर्य हेतु रत्नप्रदीप दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड २.३.११.४५(पितरों को दीपदान के फल का कथन), ३.४.३५.९८(दीपिका : शंकर की शक्तिरूप १६ कलाओं में से एक), भविष्य १.११८ (सूर्य मन्दिर में दीप जलाने का माहात्म्य, भद्र ब्राह्मण की कथा), १.१९७.१७ (घृत दीपक, कटु तैल के दीपक व मधूक तैल के दीपक के फल का कथन), २.१.१७.१६ (दीपाग्नि का पावक नाम), ४.१२१.७६(दीप व्रत की विधि का कथन), ४.१३० (दीप दान की महिमा, भिन्न - भिन्न देवों के लिए भिन्न - भिन्न रङ्ग के वस्त्रों से निर्मित वर्तिकाओं के नाम, दीप दान से मूषिका का रानी ललिता बनना), मत्स्य १९१.३८(दीपेश्वर : नर्मदा तट पर एक तीर्थ), वराह १३५.८(रात्रि में दीप रहित स्थिति में भगवान् वराह के स्पर्श दोष के प्रायश्चित्त का कथन), १३६(दीपक स्पर्श कर भगवान् वराह का स्पर्श करने से दोष प्राप्ति, दोष निवृत्ति हेतु प्रायश्चित्त का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.९८.१५ (ग्रह - नक्षत्रों के लिए घृत अथवा तैल के दीपक की देयता, वसायुक्त दीपक की वर्जना), १.१६६ (दीप दान के माहात्म्य का वर्णन), १.१६७ (दीप के संदर्भ में मूषिका द्वारा वर्तिका भक्षण की कथा), २.९१.१६ (देवपूजा में देय व अदेय दीप का विचार)शिव १.१६.५१ (दीप दान से अपस्मार का क्षय), स्कन्द १.२.४.८१(दीपदान की कानीयस दान के अन्तर्गत गणना), २.२.७.८३(शबरों के आवास की शबरदीप नाम से प्रसिद्धि), २.४.७.२७ (आकाश दीप की महिमा ; दीप दान), २.४.९ (पांच दीपों से शकुन का अवलोकन), २.४.३५.३८(कार्तिक पूर्णिमा में हर हेतु दीप दान से पाप मुक्ति), २.५.८ (दीप का पूजा में महत्त्व), ४.१.१३(शिवालय में दीपदान से गुणनिधि को जन्मान्तर में राजपुत्रत्व की प्राप्ति), ५.१.३० (दीप दान की महिमा, शिव के अन्तर्धान हो जाने पर लोकों में अन्धकार, दीप से ज्ञान होना), ५.३.५६.११८(दीप दान से उत्तम चक्षु की प्राप्ति), ५.३.१५९.९४(आश्विन् कृष्ण चतुर्दशी में दीप दानादि की महिमा), ६.२३९.४९(चातुर्मास में दीप दान के महत्त्व का वर्णन), ६.२४० (विष्णु पूजा में दीप का विनियोग व माहात्म्य), हरिवंश २.८१.३(पतिप्रिया व पुत्रवती हेतु दीपदान), योगवासिष्ठ १.१७.४९ (दीप शिखा की तृष्णा से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.४१२.८८(दीपावली आदि पर्वों पर दीप दान से दुःसह के निष्कासन का उल्लेख), १.४५१.७५(शबरी कथित दीपादि का रूप : ह्रदय सुप्रदीप, प्राण हवि, करण अक्षत आदि), ३.४५.२९(दीप दानादि से वह्निमण्डल प्राप्ति का उल्लेख), ३.७९.२५(दीप दान माहात्म्य), ३.८५.११५ (दीपोत्सवीघोटक : महर्षि का नाम), ४.३२.९( कुम्भकार - पत्नी सुनारिणी द्वारा श्री हरि को नैवेद्य, जल, दीप आदि प्रदान), कथासरित् ६.८.७०( द्विज द्वारा मनुष्य वसा से प्रज्वलित दीप से भूमि का परीक्षण, दीप का पतन, द्विज द्वारा पतन स्थान पर भूमि - खनन, यक्ष द्वारा द्विज का वध), १.६.८८ (दीपकर्णि : राजा, शक्तिमती - पति, सातवाहन नामक पुत्र की प्राप्ति की कथा), महाभारत अनुशासन ६८.२७(यमराज द्वारा शर्मी ब्राह्मण हेतु दीप दान के महत्त्व का कथन), ९८.४५(अन्धतामिस्र नरक व दक्षिणायन हेतु दीप दान के महत्त्व व दीप के तैल के प्रकार का कथन), १२७.८(अङ्गिरा द्वारा करञ्ज वृक्ष में दीप दान के महत्त्व का कथन ) । deepa/ dipa