पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Daaruka   to Dweepi )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)

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Daaruka - Diti  ( words like Daarukaa, Daalbhya, Daasa, Dikpaala, Diggaja, Dindi, Diti etc. )

Didehaka - Divodaasa (  Dileepa, Divah, Divaakara, Divodaasa etc.)

Divya - Deepa(Divya / divine, Divyaa, Dishaa / direction, Deekshaa / initiation, Deepa / lamp etc. )

Deepaavali - Deerghabaahu ( Deepti / luminescence, Deergha / long, Deerghatapa, Deerghatamaa, Deerghabaahu etc.)

Deerghikaa - Durga ( Deerghikaa, Dugdha / milk, Dundubhi, Durga/fort etc.)

Durghandha - Duryodhana( Durgama, Durgaa, Durjaya, Durdama, Durmukha, Duryodhana etc. )

Durvaarkshee - Duhitaa( Durvaasaa, Dushyanta etc.)

Duhkha - Drishti  ( Duhshaasana, Duhsaha, Duurvaa, Drishadvati, Drishti / vision etc.)

Deva - Devakshetra (Deva / god, Devaka, Devaki etc.)

Devakhaata - Devaraata ( Devadatta, Devadaaru, Devayaani, Devaraata etc. )

Devaraata - Devasenaa (  Devala, Devavaan, Devasharmaa, Devasenaa etc.)

Devasthaana - Devaasura ( Devahooti, Devaaneeka, Devaantaka, Devaapi, Devaavridha, Devaasura Sangraama etc. )

Devikaa - Daitya  ( Devikaa, Devi / Devee, Desha/nation, Deha / body, Daitya / demon etc. )

Dairghya - Dyau (Dairghya / length, Dolaa / swing, Dyaavaaprithvi, Dyu, Dyuti / luminescence, Dyutimaan, Dyumatsena, Dyumna, Dyuuta / gamble, Dyau etc. )

Draghana - Droni ( Dravida, Dravina / wealth, Dravya / material, Drupada, Drumila, Drona, Druhyu etc.)

Drohana - Dwaara( Draupadi, Dvaadashaaha, Dvaadashi / 12th day, Dwaapara / Dvaapara, Dwaara / door etc. )

Dwaarakaa - Dvimuurdhaa(   Dwaarakaa,  Dwaarapaala / gatekeeper, Dvija, Dwiteeyaa / 2nd day, Dvimuurdhaa etc.)

Dvivida - Dweepi( Dvivida, Dweepa / island etc. )

 

 

Puraanic contexts of words like Draupadi, Dvaadashaaha, Dvaadashi / 12th day, Dwaapara / Dvaapara, Dwaara / door etc. are given here.

द्रोहण स्कन्द ५.१.६.६७ (द्रोहण का रसातल में वास, शिव द्वारा कपाल क्षेपण से द्रोहण के सेनानियों का विनाश ) ।

 

द्रौपदी गरुड ३.१६.१००(द्रौपदी का दमयन्ती से साम्य?), ३.१७.३२(द्रौपदी की उत्पत्ति का वृत्तान्त), देवीभागवत ३.१६.१७(पाण्डवों के वन में निवास के समय जयद्रथ द्वारा द्रौपदी हरण के प्रयास का वृत्तान्त), ४.२२.३९ (द्रौपदी - पुत्रों के विश्वेदेवों  के अंश होने का उल्लेख ; द्रौपदी रमा का अंश), ९.१६.५१ (त्रेतायुगीन छाया सीता की ही सत्ययुग में कुशध्वज - कन्या वेदवती तथा द्वापर में द्रुपद - पुत्री के रूप में उत्पत्ति, युगत्रय में विद्यमान रहने से त्रिहायणी नाम धारण), ब्रह्मवैवर्त्त २.१४.५२ (द्रौपदी के सीता - छाया का अवतार होने का उल्लेख), भविष्य ३.३.१.२८ (कलियुग में द्रौपदी का पृथ्वीराज - सुता वेला के  रूप में अवतरण), ४.१७० (ब्राह्मणी द्वारा स्थाली दान से जन्मान्तर में द्रौपदी बनना), भागवत १.७.१४(कृष्णा /द्रौपदी - पुत्रों का अश्वत्थामा द्वारा वध), १.१५.५०(पाण्डवों के निरपेक्ष हो जाने पर द्रौपदी द्वारा वासुदेव में एकान्तमति से वासुदेव को प्राप्त करने का उल्लेख), ४.३२(द्रुपद - कन्या द्रौपदी के पांच पाण्डवों की महिषी होने तथा द्रौपदी - पुत्रों के अविवाहित अवस्था में ही मृत होने के हेतु का वर्णन), ९.२२.२(द्रुपद - पुत्री, धृष्टद्युम्न आदि की भगिनी), १०.८३ (द्रौपदी का कृष्ण की पटरानियों से विवाह विषयक वार्तालाप), मत्स्य ५०.५१(द्रौपदी से उत्पन्न पाण्डवों के ५ पुत्रों के नाम), मार्कण्डेय ४, ७.६७(विश्वेदेवों  की द्रौपदी - गर्भ से पांच पाण्डुनन्दन रूप में उत्पत्ति, विश्वामित्र के शाप के कारण ही पाण्डु - पुत्रों का अविवाहित रहना), वायु ९९.२४६/२.३७.२४२(द्रौपदी व युधिष्ठिर के पुत्र श्रुतिविद्ध का उल्लेख), विष्णु ४.२०.४१(द्रौपदी से उत्पन्न पाण्डवों के ५ पुत्रों के नाम), स्कन्द ४.१.४९ (द्रौपदी द्वारा काशी में सूर्याराधना, स्थाली प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.३२०(श्री - पुत्री सुदुघा के जन्मान्तरों में मेधावी विप्र - पुत्री व याज्ञसेनी बनकर पांच पति प्राप्त करने का वृत्तान्त), १.४६२.१५(द्रौपदी द्वारा सूर्य से अक्षय भोजन पात्र की प्राप्ति, दुर्वासा के भोजनार्थ आगमन पर कृष्ण द्वारा द्रौपदी की रक्षा का वृत्तान्त), कथासरित् ३.१.१४१ (पांच पाण्डवों की पत्नी, नारद द्वारा कलह निवारण हेतु समस्या के समाधान का प्रतिपादन ) । draupadi/draupadee

 

द्वन्द्व महाभारत आश्वमेधिक २४.३(प्राण, अपान आदि के द्वन्द्वों का वर्णन - येनायं सृज्यते जन्तुस्ततोऽन्यः पूर्वमेति तम्। प्राणद्वन्द्वं हि विज्ञेयं तिर्यगूर्ध्वमधश्च यत्।। )

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द्वय लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३(द्विगर्दभ के अशुभत्व का उल्लेख )

 

द्वात्रिंशत् गर्ग ५.१७.२०(द्वात्रिंशत् सखियों के कृष्ण विरह में करुण उद्गार ) ।

 

द्वादशाब्द स्कन्द ५.३.५६.१९(चेदिनाथ वीरसेन की द्वादशाब्द मख में स्थिति), ५.३.१२५.२९(द्वादशाब्द काल तक नमस्कार की अपेक्षा मन्त्रयुक्त नमस्कार से सद्य: फल प्राप्ति), ५.३.१४६.६७(अस्माहक तीर्थ में पितरों हेतु सम्यक् दक्षिणा से पितरों की द्वादशाब्द काल तक तृप्ति), ५.३.१४९.६(लिङ्ग वाराह तीर्थ में ब्राह्मणों को भोजन, दान आदि से द्वादशाब्द काल तक सत्रयाजि फल की प्राप्ति), ५.३.१५०.४४(द्वादशाब्द काल तक किए गए सत्रयाजि फल के समान पिण्डदान से फल की प्राप्ति), ५.३.१५५.७८(कायिक, वाचिक, मानसिक पापों से द्वादशाब्द काल तक रौरव नरक में स्थिति), ५.३.१६५.४(सिद्धेश्वर तीर्थ में श्राद्ध से पितरों की द्वादशाब्द काल तक तृप्ति ) । dvaadashaabda

 

द्वादशाह गरुड २.५.६६/२.५.४९ (मृतक कर्म हेतु द्वादशाह), २.२४/२.३४ (मृतक संस्कार हेतु द्वादशाह का विधान), स्कन्द ५.३.१५५.३८(राजा चाणक्य द्वारा काकों के माध्यम से यम से मृतक के द्वादशाह पर अशनादि से तृप्ति करने पर फल की पृच्छा), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३१(मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में ह्रदय में द्वादशाह के न्यास का उल्लेख, अन्य अङ्गों में अन्य यज्ञों का न्यास ) । dvaadashaaha

 

द्वादशी अग्नि ११५.६१ (श्रवण नक्षत्र के योग वाली द्वादशी में कुम्भ दान का महत्त्व), १८८ (विभिन्न द्वादशी व्रतों के नाम व महत्त्व), १८९ (भाद्रपद शुक्ल द्वादशी : श्रवण द्वादशी व्रत, वामन विष्णु की पूजा), १९० (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी : अखण्ड द्वादशी व्रत, विष्णु पूजा), गरुड १.११८ (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी : अखण्ड द्वादशी व्रत), १.१३६ (भाद्रपद शुक्ल द्वादशी : श्रवण द्वादशी व्रत विधि, विष्णु का न्यास), नारद १.१७ (शुक्ल पक्ष की द्वादशियों में मास अनुसार विष्णु नाम व पूजा विधि), १.१२१ (द्वादशी तिथि व्रतों का वर्णन : विष्णु की विभिन्न नामों से अर्चना), १.१२१.९६ (त्रिस्पृशा, वंजुला, जया, विजया, जयन्ती, अपराजिता द्वादशी तिथि का अर्थ व महत्त्व), २.२ (व्रत / पूजा कार्य हेतु त्रयोदशी या एकादशी से विद्ध द्वादशी का निर्णय), २.५५.४ (ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी : पुरुषोत्तम के दर्शन), पद्म १.२०.३७ (विभूति द्वादशी व्रत का माहात्म्य व विधि), १.२१.२३ (आश्वयुज द्वादशी : विशोक द्वादशी व्रत), १.२३ (माघ शुक्ल द्वादशी : भीम द्वादशी व्रत, भीम व कृष्ण का संवाद, कृष्ण का न्यास / पूजा), २.१८ (आषाढ शुक्ल द्वादशी का माहात्म्य : विष्णु शयन, शूद्र का जन्मान्तर में सोमशर्मा ब्राह्मण बनना), ४.२३१२ (कार्तिक शुक्ल द्वादशी), ५.३६.३० (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी : हनुमान का लङ्का में सीता से वार्तालाप), ५.९६.१०८ (द्वादशी के भेद), ६.६९ (श्रवण द्वादशी व्रत का माहात्म्य : वणिक् द्वारा प्रेतों का उद्धार), ६.८४ (चैत्र शुक्ल द्वादशी : दमनक उत्सव), ६.१६० (माघ द्वादशी : वामन तीर्थ में श्राद्ध),६.१९८.७८ (आषाढ शुक्ल द्वादशी को बलराम द्वारा पुराण वाचन में रत लोमहर्षण का वध), ६.२३४ (द्वादशी का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.९६ (भाद्रपद शुक्ल एकादशी को शक्र पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य), भविष्य ४.६९+ (गोवत्स, गोविन्द शयनोत्थापन नीराजन, मल्ल, भीम, श्रवण, विजयश्रवणा, संप्राप्ति, गोविन्द, अखण्ड, मनोरथ, उल्का, सुकृत, विशोक, विभूति, मदन प्रभृति द्वादशी व्रतों का वर्णन), मत्स्य ७.८ (चैत्र शुक्ल द्वादशी : मदन द्वादशी, दिति द्वारा अनुष्ठान से मरुत पुत्रों की प्राप्ति), ६९.१९ (माघ शुक्ल द्वादशी : भीम द्वादशी व्रत विधि, विष्णु व लक्ष्मी का न्यास), ८१.३ (आश्विन द्वादशी : विशोक द्वादशी व्रत, विष्णु का न्यास, लक्ष्मी पूजा), ९९+ (विभूति द्वादशी व्रत विधि, विष्णु का न्यास, पुष्पवाहन राजा व लावण्यवती रानी के पूर्व जन्म का प्रसंग), वराह ३१ (विष्णु द्वादशी : द्वादशी उत्पत्ति की कथा), ३९ (मत्स्य द्वादशी व्रत विधान व फल का कथन), ४० (कूर्म द्वादशी व्रत विधान), ४१ (वराह द्वादशी : वीरधन्वा का आख्यान), ४२  (नृसिंह द्वादशी : वत्स द्वारा पुन: राज्य प्राप्ति), ४३ (वामन द्वादशी : हर्यश्व द्वारा पुत्र प्राप्ति), ४४ (जामदग्नि / परशुराम द्वादशी : नल पुत्र की उत्पत्ति), ४५ (राम द्वादशी), ४६ (कृष्ण द्वादशी), ४७ (बुध द्वादशी : द्वादशी देवी द्वारा नृग की रक्षा), ४८ (कलिक द्वादशी व्रत), ४९ (पद्मनाभ द्वादशी : भद्राश्व व अगस्त्य का संवाद), ५४ (वसन्त शुक्ल द्वादशी), ९९ (कार्तिक शुक्ल द्वादशी), ११५(द्वादशी तिथियों में हरि पूजा का माहात्म्य व विधान), १२३(कार्तिक शुक्ल द्वादशी व वैशाख शुक्ल द्वादशी में हरि पूजा का माहात्म्य व विधि), १२४ (फाल्गुन शुक्ल द्वादशी व वैशाख शुक्ल द्वादशी में हरि पूजा का विधान), १७८ (मार्गशीर्ष द्वादशी : शत्रुघ्न द्वारा लवण के वध की कथा), वामन ७९.५०(प्रेत द्वारा वणिक् से श्रवण द्वादशी की महिमा का कथन), विष्णु ५.३२.१४ (वैशाख शुक्ल द्वादशी : स्वप्न में उषा का अनिरुद्ध से समागम), विष्णुधर्मोत्तर १.१५७ (राज्य प्रद द्वादशी व्रत विधि), १.१५८ (काम द्वादशी का वर्णन), १.१५९ (शुक्ल पक्ष की द्वादशी में केशवार्चन से अग्निष्टोमादि यज्ञ फल की प्राप्ति), १.१६० (कृष्ण पक्ष की द्वादशी की विधि व फल का वर्णन), १.१६१ (श्रावणी द्वादशी उपवास का फल), १.१६२ (श्रावण मास की द्वादशी : प्रेत का मोक्ष), १.१६३ (तिल द्वादशी में तिल की प्रशस्तता), १.१६४ (तिल द्वादशी :चण्डवेग का उपाख्यान), ३.२१५ (सुगति द्वादशी व्रत), ३.२१९ (द्वादशी में करणीय अनन्त व्रत का वर्णन), ३.२२० (पौष शुक्ल द्वादशी को ब्रह्म द्वादशी व्रत की विधि का कथन), ३.२२१.८०(द्वादशी को १२ आदित्यों, वरुण, विष्णु की पूजा का निर्देश तथा फल), शिव ५.४५.६७ (फाल्गुन शुक्ल द्वादशी में महाकाली का प्रादुर्भाव), स्कन्द २.२.१६.५६(ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी में नरसिंह मूर्ति की स्थापना), २.५.१२(दशमी युक्त द्वादशी का निषेध), २.५.१३.५०(द्वादशी जागरण का माहात्म्य), २.७.२४ (वैशाख शुक्ल द्वादशी का माहात्म्य), ५.३.२६.१२१(द्वादशी में उदक दान की महिमा), ५.३.१४४ (द्वादशी तीर्थ का माहात्म्य), ७.४.२७ (द्वादशी जागरण का माहात्म्य), ७.४.३९(द्वादशी व्रतादि का माहात्म्य), हरिवंश २.८०.३५(सुन्दर हाथों हेतु द्वादशी व्रत का विधान), २.११७.१९(वैशाख द्वादशी प्रदोष काल में स्वप्न में रमणकर्ता के उषा - पति होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१५५.१०६ (द्वादशी को समुद्र मन्थन से लक्ष्मी का प्रादुर्भाव), १.१५६.१२ (द्वादशी माहात्म्य का वर्णन : लक्ष्मी की उत्पत्ति), १.२७७(विभिन्न मासों की द्वादशियों का वर्णन), १.३०४.४१(पुरुषोत्तम मास की द्वादशी व्रत से सावित्री कन्या का वैराज नृप की पुत्री बनकर ब्रह्मा को पति रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त), १.३१९.४९(अधिक मास की द्वादशी व्रत का माहात्म्य : जोष्ट्री सेविका की १२ सेविका पुत्रियों का कृष्ण की पत्नियां बनने का वृत्तान्त), १.५४५.३६ (राजा नृग के शरीर से निर्गत एकादशी द्वारा द्वादशी रूपी हेति से दस्युओं का नाश करना), १.५६८.५२(कार्तिक आदि मासों की द्वादशियों में अर्पणीय पुष्पादि का कथन), २.२१३.५८(एकादशी को पूर्णाहुति व अवभृथ स्नान के पश्चात् द्वादशी को अन्न दान, सम्मान आदि का वर्णन), २.२४८(मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी को सोमयाग के पञ्चम दिवस के कृत्यों का वर्णन), ३.१०३.८(प्रेतोद्धार हेतु विभिन्न तिथियों में देय दान के फल के संदर्भ में द्वादशी में दान से स्वर्णरत्नादि प्राप्ति का उल्लेख), ४.५८.३७(काराञ्चनी पुरीस्थ यवसन्ध की चैत्रकृष्ण द्वादशी में सकुटुम्ब मुक्ति की कथा ) , ४.६८.४९(अजापाल भरवाट की श्येन जन्म में तथा अजों की चटका जन्म में वैशाख कृष्ण द्वादशी में उच्छिष्ट प्रसाद भक्षण से मुक्ति की कथा), ४.७९(आषाढ शुक्ल द्वादशी में श्रीहरि का प्रिया सहित निजालय में विराजमान होना ) । dvaadashee/dvaadashi/ dwadashi

 

द्वापर कूर्म १.५२ (२८ द्वापरों में व्यासों के नाम), गणेश २.१२७ (द्वापर मेंआखु / मूषक के गणेश का वाहन होने के कारण का वर्णन), देवीभागवत ४.२२.३७(द्वापर का शकुनि रूप में अवतरण), ब्रह्माण्ड १.२.७.५९(द्वापर में युद्ध की प्रवृत्ति होने का उल्लेख ; द्वापर में रज व तम की प्रकृति का उल्लेख), १.२.३५.११६ (२८ द्वापरों में व्यासों के नाम), भविष्य ३.४.२४.७८ (द्वापर युग में चरणों के अनुसार नरों की द्वीपों में स्थिति), ४.१२२.१(कृतयुग का ब्राह्मणयुग, त्रेता का क्षत्रिययुग, द्वापर का वैश्य युग तथा कलियुग का शूद्र युग के रूप में उल्लेख), लिङ्ग १.२४.१२ ( २८ द्वापरों में व्यास, रुद्र आदि का वर्णन), वायु १.६.४१(अष्टाविंशात्मक तिर्यक् सृष्टि का कथन? ), ८.६६(द्वापर में यज्ञ के कल्याणकारी होने का उल्लेख), २३.११६ (द्वापरों में व्यास व शिव अवतारों के नाम), ५८ (द्वापर में धर्म की स्थिति), ७८.३६/२.१६.३७(द्वापर के वैश्य वर्ण व युद्ध प्रकृति का उल्लेख), विष्णु ३.३ (२८ द्वापरों में व्यासों के नाम), शिव ३.४+(२८ द्वापरों में शिव द्वारा भिन्न - भिन्न नामों से अवतार ग्रहण), ३.५(द्वापर का अन्य नाम परिवर्त्त), स्कन्द २.६.३.१०(२८वें द्वापर के अन्त में श्रीहरि द्वारा स्वमाया को हटा लेने पर जीव को प्रकाश प्राप्त होने का कथन), ७.१.१३.९(विश्वकर्मा द्वारा शातित तेज वाले हिरण्यगर्भ की कृतयुग में सूर्य, त्रेता में सविता, द्वापर में भास्कर तथा कलियुग में अर्कस्थल नाम से प्रसिद्धि), लक्ष्मीनारायण १.५३.३(द्वापर में धर्म की क्षीण स्थिति का वर्णन), ३.१४३.७(द्वापर में धर्म, कर्म की क्षीण स्थिति का वर्णन ) । dvaapara/ dwapara

 

द्वार अग्नि ५६.७ (मण्डप के द्वारों के दिशाओं के अनुसार नाम व निर्माण विधि), १०० (द्वार प्रतिष्ठा विधि), १०४.२४ (प्रासाद निर्माण में द्वार की स्थिति तथा परिमाण का निरूपण), १०५.३४ (गृह में निर्मित बहुसंख्य द्वारों का दिक् विन्यास अनुसार फल), २६४.१७(धर्म व अधर्म को द्वार पर बलि देने का निर्देश), कालिका ४७.४(नर्म कार्य हेतु द्वार पर भृङ्गि व महाकाल द्वारपालों की स्थिति), ६४.३९(पूर्वादि द्वारों पर काम, प्रीति, रति, मोहन तत्त्वों की स्थिति), गरुड १.११.२२(पूर्व द्वार पर वैनतेय, दक्षिण द्वार पर सुदर्शन, सहस्रार, उत्तर द्वार पर गदा आदि की प्रतिष्ठा का कथन), १.२८.१(द्वार पर धाता – विधाता की प्रतिष्ठा का निर्देश), १.२८.२( पूर्वादि द्वारों पर भद्र-सुभद्र, चण्ड-प्रचण्ड, बल-प्रबल व जय-विजय की प्रतिष्ठा का निर्देश), नारद १.६६.७८ (द्वार पूजा विधि), १.७५.७०(पूर्वादि द्वारों पर गज, महिष, सर्प व व्याघ्र की स्थापना का निर्देश), पद्म ५.७०.२०(पूर्वादि दिशाओं के द्वारों पर सुदामा, किंकिणी, श्रीदामा, वसुदामा द्वारपालों की स्थिति), भागवत ४.२५.४८ (पुरञ्जन नगर में द्वारों का वर्णन – पूर्व में खद्योत, आविर्मुखी, नलिनी, नालिनी, मुख्य, दक्षिण में पितृहू, पश्चिम में आसुरी व निर्ऋति तथा उत्तर में देवहू), ४.२९.९(देह के द्वारों का पूर्वादि क्रम से विन्यास का कथन, गुदा, शिश्न की पश्चिम में स्थिति आदि), मत्स्य २५५.८(वास्तु में पूर्वादि क्रम से इन्द्र-जयन्त, याम्य –वितथ, पुष्पदन्त-वारुण, भल्लाट-सौम्य द्वारों का कथन, द्वार-वेध के फल), महाभारत अनुशासन १५४.१३(मनुष्यों के लिए बलि द्वार से बाहर एवं मरुद्गण व देवों के लिए द्वार के अन्दर देने का निर्देश), मार्कण्डेय २९.१९(धाता – विधाता के लिए द्वार पर बलि देने का निर्देश), वायु ९६.५४/२.३४.५४(द्वारवती : भङ्गकार - पत्नी), वा.रामायण ४.४०.६४ (पूर्व में उदय पर्वत का पृथिवी व भुवन के द्वार के रूप में उल्लेख), ६.३६.१७(युद्ध में लंका के पूर्वादि द्वारों पर प्रहस्त, महापार्श्व-महोदर, इन्द्रजित्, सारण की स्थिति), ६.३७.२७(लंका के पूर्व आदि द्वारों पर नील – प्रहस्त, अंगद-महापार्श्व-महोदर, हनुमान-इन्द्रजित्, राम-लक्ष्मण – रावण का युद्ध) का  स्कन्द ४.२.५७.११३ (द्वार विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२६.६(पूर्वादि द्वारों पर पिङ्गलेश, कायावरोहण, वित्तेश व उत्तरेश की स्थिति), ५.१.३६.६४(नरदीप तीर्थ की यात्रा में द्वारों पर करणीय दान), ५.१.७०.८५( पूर्वादि द्वारों पर पिङ्गलेश्वर, कायावरोहणेश्वर, बिल्वकेश्वर व दर्दुरेश्वर लिंगों की स्थिति का कथन), ५.२.८१.२७(महाकालवन के चार द्वारों पर चार लिङ्गों की स्थापना),  लक्ष्मीनारायण २.२१७.१०१(श्रीहरि का कोटीश्वर नृप द्वारा पालित एकद्वारराष्ट्र को गमन, प्रजा को उपदेश आदि), २.२४९.७४(बाह्य इन्द्रिय द्वार को बन्द करके ब्रह्मद्वार को खोलने के उपाय का वर्णन ), पञ्चतन्त्र १.२८४(वृक को द्वारपालत्व प्राप्त होने का कथन); द्र. हरिद्वार । dwaara/dvaara