पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

 

नाद के आधार पर वर्णमातृका का वर्गीकरण : वर्णमातृका के 51 अक्षरों का विभाजन नौ वर्गों में किया गया है अ वर्ग(1), क वर्ग(2), च वर्ग(3), ट वर्ग(4), त वर्ग(5), प वर्ग(6), य? वर्ग(7), व? वर्ग(8), श? वर्ग(9)। शिव पुराण 5.26.40 में नाद का विभाजन 9 प्रकारों में किया गया है

 

 

नाद

गुण

निकटतम वर्ण वर्ग

 

1

घोष

आत्मशुद्धिकर, सर्वव्याधिहर, वशी, आकर्षण

 

2

कांस्य

प्राणियों की गति का स्तम्भन

 

3

शृङ्ग

अभिचार हेतु, विद्वेषि-उच्चाटन, शत्रुमारण

 

4

घण्टा

सर्वदेवों, मनुष्यों, यक्षगन्धर्वकन्याओं का आकर्षण

 

5

वीणा

दूरदर्शन

 

6

वंश

सर्वतत्त्व प्रजनन

 

7

दुन्दुभि

जरामृत्यु विवर्जन

य?

 

8

शंख

कामरूप

व?

 

9

मेघगर्जन

विपत्ति से संगम न होना

श?

 

 

शिव पुराण में 9 प्रकार के नादों के जो गुण दिए गए हैं, उनके आधार पर अक्षमालिकोपनिषद में वर्णों के गुण तुलनीय हैं। उपरोक्त तालिका में प को वंश नाद के समकक्ष दिखाया गया है। इसका न्याय यह है कि वंशी को ओठों से लगाकर प्राणों को फूंका जाता है, तब वंशीनाद उत्पन्न होता है। यही स्थिति प वर्ग की भी है। प वर्ग के वर्णों का जनन ओठों के मिलने से होता है। त वर्ग के वर्णों को दन्त्य कहा जाता है क्योंकि उनका जनन तब होता है जब जिह्वाग्र दन्तों का स्पर्श करता है। दन्तों को वीणा के तन्तु/तार तथा जिह्वाग्र को तन्तुओं में क्षोभ उत्पन्न करने वाला कहा जा सकता है। यहां यह आपत्ति की जा सकती है कि सामान्य् रूप से तो जब जिह्वाग्र द्वारा दन्तों का स्पर्श किया जाता है तो कोई भी नाद प्रकट नहीं होता। इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि वर्णमातृका की जो व्याख्या की गई है, वह वह है जिसका अनुभव बुद्धों ने किया है। जिह्वा का मधुमती होना अपेक्षित है। पुराणों में दन्तों में मरुतों की व संभवतः सर्पों की स्थिति का उल्लेख है। सामान्य रूप से तो दन्त निर्जीव प्रतीत होते हैं, उनके जीवित होने का प्रमाण तभी मिलता है जब उनमें किसी कारण से पीडा उत्पन्न हो जाती है। बुद्धों के दन्तों के क्या गुण होते होंगे, यह अन्वेषणीय है।  कांस्य नाद के संदर्भ में सुराकंस का उल्लेख किया जा सकता है। कंस नामक पात्र में सुरा ही रखी जा सकती है, सोम नहीं। कंस का राज्य हृदय रूपी मथुरा पर है जिसका अन्त हृदय चक्र/अनाहत चक्र के अन्दर विद्यमान वृन्दावन चक्र से प्रकट कृष्ण कर सकते हैं। च वर्ग के वर्णों को तालव्य कहा जाता है। इन वर्णों को शृङ्गनाद के अन्तर्गत रखा गया है जिसका स्पष्टीकरण अपेक्षित है। ट वर्ग के वर्णों को मूर्द्धन्य कहा जाता है और इनको घण्टानाद के समकक्ष कहा गया है। य वर्ग के अन्तःस्थ वर्णों य, र, ल को दुन्दुभि नाद के अन्तर्गत रखा गया है। दुन्दुभि वाद्य के विषय में उल्लेख है कि कांस्यभाजनगर्भोऽसौ वलयाभ्यां विवर्जितः( श्री रामकृष्ण कवि द्वारा संगृहीत भरतकोश में सोमेश्वर का उद्धरण)। वलय का अर्थ एक तो घेरा होता है, दूसरा व, ल, य वर्ण भी हो सकते हैं। दुन्दुभि असुर का वध वालि ने किया था। इसका एक अर्थ यह हो सकता है कि दुन्दुभि के शब्द का विस्तार नहीं होता, घण्टारव की भांति वलय नहीं बनता। वालि इस कमी को दूर करता है।

डा. शिवशङ्कर अवस्थी द्वारा लिखित शोध ग्रन्ध मन्त्र और मातृकाओं का रहस्य पृष्ठ 30 पर तन्त्रों के आधार पर नादों के नाम निम्नलिखित दिए गए हैं

1.चिणि 2.चिणिचिणी 3.घण्टानाद 4.शङ्खनाद 5.तन्त्रीनाद 6.तालनाद 7.वेणुनाद 8.भेरीनाद 9. मृदङ्गनाद।      इसके अतिरिक्त, स्वच्छन्द तन्त्र 11 पटल में नादों का वर्गीकरण 8 प्रकार से किया गया है तथा इन नादों को परिभाषित भी किया गया है

1.घोष, 2.राव, 3.स्वन, 4.शब्द, 5.स्फोट, 6.ध्वनि, 7.झाङ्कार, 8.ध्वङ्कृति।

     हंसोपनिषद १७ में दस नाद तथा उनके गुण निम्नलिखित हैं

1. चिणिचिञ्चिणीगात्र, 2.चिञ्चिणी-गात्रभञ्जन, 3.घण्टानाद- खेदन, 4.शङ्खनाद-शिरकम्पन, 5.तन्त्रीनाद-तालुस्रवण, 6.तालनाद-अमृतनिषेवण, 7.वेणुनाद-गूढविज्ञान, 8.मृदङ्गनाद-परावाक्, 9.भेरीनाद-अदृश्यदेह तथा अमल दिव्यचक्षु, 10.मेघनाद-परमब्रह्म।