PURAANIC SUBJECT INDEX (From Nala to Nyuuha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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यकृत सिरोसिस (LIVER CIRRHOSIS )(परीक्षित रोगी की संख्या - 1) जैसा कि साथ के चित्र में दिखाया गया है, रोगी की नाडी बिना चिकित्सा के संख्या 1 प्रकार की थी। रोगी द्वारा गेहूं का चूर्ण लगभग 10 दिन सेवन करने से नाडी की स्थिति संख्या 2 प्रकार की हो गई। गेहूं के चूर्ण तथा सामान्य आटे में अन्तर यह है कि आटा बारीक होता है और मुख की वायु से उडता है। बारीक आटा खाने में बहुत खराब स्वाद का लगता है। वर्तमान संदर्भ में गेहूं का चूर्ण ग्राइन्डर में दो मुट्ठी गेहूं डालकर उन्हें पीस कर बनाया गया। यह अपेक्षाकृत मोटा होता है, स्वाद में आटे जैसा खराब नहीं लगता। इस चूर्ण को रोटी के टुकडे पर रखकर सूखा ही खाया गया। एक बार में एक चम्मच गेहूं के आटे का आधी रोटी के साथ सेवन किया गया। ऐसा सवेरे-सायंकाल दो बार किया गया। रोगमुक्त अवस्था में शरीर से रक्त यकृत में प्रवेश करता है और यकृत से हृदय में। यकृत सिरोसिस की स्थिति में यकृत शरीर से रक्त को स्वीकार नहीं कर पाता और उस रक्त को हृदय में पहुंचने के लिए अन्य वैकल्पिक मार्ग खोजने पडते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि चित्र 1 में नाडी परीक्षा में धरातल पर जो नदी जैसा प्रवाह हो रहा है, वह उस रक्त का परिचायक है जो वैकल्पिक मार्गों से हृदय में पहुंच रहा है। रोगमुक्त होने पर चित्र 2 में यह मार्ग बन्द हो गया है और अब रक्त यकृत के माध्यम से होकर हृदय में प्रवेश कर रहा है। लगभग 21 दिन गेहूं के चूर्ण का सेवन करने के पश्चात् आधुनिक चिकित्सा परीक्षण फल निम्नलिखित हैं। इनकी तुलना 3 मास पूर्व प्राप्त परिणामों से की गई है जब रोगी ने गेहूं का चूर्ण लेना आरम्भ नहीं किया था। Sugar
Liver:
Kidney
AFP(Alpha Fetoprotein, Tumor Marker, Serum(CMIA) 3.86(17-7-12) 3.57(17-1012) ng/ml <10 Hemogram
जब रोगी ने आटा खाना कुछ महीनों ( 3-4) के लिए छोड दिया तो अन्य परीक्षण परिणाम तो परिवर्तित नहीं हुए, लेकिन प्लेटलैट काउंट कम हो गए(एक लाख से कुछ नीचे)। अन्य रोग जिनमें गेहूं के आटे का प्रयोग किया गया, सिरदर्द, शर्करा रोग व पक्षाघात हैं। 1.सिरदर्द की स्थिति में वातनाडी की तीव्रता में बहुत कमी हो गई लेकिन सिरदर्द पूरी तरह ठीक नहीं हो पाया। फिर, आटा खाने से भूख कम लगने लगती है जिसे रोगी पसंद नहीं करत(रोगी की संख्या - 1)। 2.पक्षाघात की स्थिति में जिन व्यक्तियों का पक्षाघात शर्करा रोग द्वारा शिर में कैल्शियम की नाडियों के आवरण के नष्ट होने से हुआ है, उन रोगियों में गेहूं के आटे ने कोई अन्तर नहीं डाला(परीक्षित रोगी की संख्या - 1)। लेकिन जिनका पक्षाघात किन्हीं अन्य कारणों से था, उनको बहुत लाभ हुआ है। लाभ का अनुमान नाडी द्वारा लगभग एक सप्ताह में ही लगने लगता है। रोगी की नाडी प्रायः वातस्थान पर केन्द्रित रहती है। आटे का सेवन करने से यह वात, पित् व कफ नाडियों में विभाजित हो जाती है(परीक्षित रोगी की संख्या - 1)। 3- शर्करा रोग की स्थिति में यदि शर्��रा रोग बहुत विकसित स्थिति में है(200 के आसपास) तो उसमें आटे का सेवन करने से लाभ नहीं हुआ। लेकिन यदि शर्करा कम है(140 के आसपास) तो उसमें धीरे - धीरे लाभ हुआ है(परीक्षित रोगी संख्या - 1 - 1)। जिन रोगियों को आटे का सेवन करने के लिए कहा गया था, उन्हें यह भी निर्देश दिया गया था कि यदि वह दो रोटी खाते हैं तो एक रोटी बिल्कुल सूखी ही खाएं, बिना दाल - सब्जी, घी, नमक के। जो रोगी गम्भीर रोग से ग्रस्त थे, उन्होंने तो किया, शेष ने नहीं। केवल सूखी रोटी खाने से भी गम्भीर रोग की तीव्रता में बहुत कमी आ गई। उदाहरण - फेफडों के सिलिकोसिस में फेफडों में पानी भर गया जिसका डाक्टरों ने एकमात्र उपाय फेफडों से पानी निकालना बताया। लेकिन सूखी रोटी खाने से उसका पानी बहुत कम हो गया और उसके पश्चात् रोगी ने आयुर्वैदिक ओषधियों से उसे नियन्त्रित कर लिया। ऐसे ही एक रोगी को ग्लूकोमा तेजी से बढ रहा था। सूखी रोटी खाने पर 4-6 दिन में ही उसकी वृद्धि ज्यों की त्यों रुक गई। गेहूं के आटे के बदले जौ का आटा भी अच्छा काम करता है। लेकिन मक्की, ज्वार आदि का आटा नहीं। प्रथम लेखन : 7-10-2012 ई.(आश्विन् कृष्ण सप्तमी, विक्रम संवत् 2069) |