PURAANIC SUBJECT INDEX (From Nala to Nyuuha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Nala, Nalakuubara, Nalini etc. are given here.
नल अग्नि ८८.१७(शान्त्यतीत
कला शोधन के प्रसंग में तिरोधान व पाश वियोजन हेतु नल शक्ति?
का उल्लेख),
गणेश
१.५२.२ (नल द्वारा गौतम ऋषि से वैभव का कारण पूछने पर गौतम द्वारा पूर्व जन्म के
वृत्तान्त का वर्णन),
गरुड
३.२०.१(नल -
पुत्री भद्रा द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति हेतु तप का वृत्तान्त),
पद्म
१.६.५८ (विप्रचित्ति व सिंहिका के ९ पुत्रों में से एक?),
१.८.१५७ (निषध - पुत्र,
नभ - पिता),
१.८.१६१ (वीरसेन - पुत्र तथा निषध -
पुत्र के रूप में २ नलों के होने का उल्लेख),
ब्रह्म
१.६.८९ (निषध - पुत्र,
नभ - पिता,
इक्ष्वाकु वंश),
१.६.९२
(वज्रनाभ - पुत्र,
२ नलों का उल्लेख),
ब्रह्माण्ड २.३.७.२३० (वानर,
अग्नि व कनकबिन्दु का पुत्र),
भविष्य
२.१.१७.१६ (नल वायु : घृताग्नि का
नाम),
३.४.१६.७३
(ब्राह्मण,
नल नृप का रूप धारण करके दमयन्ती पर आसक्ति,
अनल नाम प्राप्ति),
४.६४ (आशा दशमी व्रत के चीर्णन से
दमयन्ती द्वारा नल को पुन: प्राप्त करना),
४.११४.३८ (नल द्वारा शनि की स्तुति),
भागवत ९.२३.२०(यदु के ४ पुत्रों में से एक),
मत्स्य ६.२६(सिंहिका व विप्रचित्ति के १३ पुत्रों में से एक),
१२.५२ (निषध
- पुत्र,
नभ - पिता,
इक्ष्वाकु वंश),
१२.५६
(वीरसेन - पुत्र नल व निषध - पुत्र नल के रूप में २ नलों का उल्लेख),
४४.६३
(तैत्तिरि - पुत्र,
नदन्नोदर दुन्दुभि वसर्प?
अपर नाम,
अश्वमेध द्वारा पुनर्वसु की पुत्र रूप में प्राप्ति),
मार्कण्डेय ११४.२५ (धूम्राश्व - पुत्र,
प्रमति की पत्नी को पकडना),
वराह
११.१००(सुनल : गौरमुख मुनि व दुर्जय राजा के युद्ध के संदर्भ में सुनल के दुर्जय -
सेनानियों वायु व शक्र से युद्ध का उल्लेख),
४४.१७ (वीरसेन द्वारा जामदग्न्य
द्वादशी व्रत से नल पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त),
विष्णु
४.११.५(यदु के ४ पुत्रों में से एक),
शिव ३.२८.२९ (आहुक भिल्ल व आहुकी भिल्ली द्वारा यति का
सत्कार करने से जन्मान्तर में नल व दमयन्ती बनने का वृत्तान्त
;
यति का हंस बनना),
स्कन्द
३.१.७.५२ (नल द्वारा राम हेतु
सिंहासन के निर्माण का उल्लेख
;
वानरों द्वारा लायी गई सामग्री से नल द्वारा सेतु का
निर्माण),
३.१.३६.१८६(नल के पुत्र रूप में इन्द्रसेन का उल्लेख),
३.१.४२.४०
(नल तीर्थ का माहात्म्य),
३.१.४४.१९(नल
के पौण्ड्र से युद्ध का उल्लेख),
३.१.४४.३४
(नल द्वारा वज्रदंष्ट्र के वध का उल्लेख),
३.१.४९.३१ (नल वानर द्वारा रामेश्वर
की स्तुति),
३.१.५१.२४(नल
का दक्षिण दिशा में स्मरण),
६.५४
(दमयन्ती - त्याग पर
वीरसेन -
पुत्र
नल द्वारा उसके कल्याण के लिए चर्ममुण्डा देवी की स्तुति),
६.५५
(नलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य),
७.१.३४५(नलेश्वर
लिङ्ग का माहात्म्य),
हरिवंश १.१५.२८ (निषध - पुत्र,
नभ - पिता,
सगर वंश),
१.१५.३५ (दो नलों का उल्लेख),
वा.रामायण १.१७.१२ (वानर
,
विश्वकर्मा - पुत्र),
६.२२.४५ (नल द्वारा समुद्र पर सेतु
निर्माण),
६.२६.२१ (सारण द्वारा रावण को नल वानर का परिचय),
६.४३.१३ (नल
का रावण - सेनानी प्रतपन से युद्ध),
लक्ष्मीनारायण १.४४८.२८ (नल - पुत्र चन्द्राङ्गद के यमुना जल में मग्न होने तथा
नागकन्याओं द्वारा नागलोक ले जाने आदि की कथा),
कथासरित् ९.६.२३७(पति विरह में व्याकुल बन्धुमती को विप्र
द्वारा नल - दमयन्ती के वियोग व मिलन की कथा सुनाना )
nala
Remarks on Nala नल नल का शाब्दिक अर्थ है बांधना । यह जीवात्मा इस शरीर में माया से बंधा है । सामान्य जीवन में नल शब्द का बहुत उपयोग होता है जैसे नाडा, नल (पानी देने वाले), नाला, अंग्रेजी का नांट आदि । नल - दमयन्ती की कथा के संदर्भ में , जीवात्मा को भी कभी - कभी श्वेत हंस रूपी सद्विचार आते हैं जो उस शम - दम रूपी दमयन्ती से मिला देते हैं। इसका लाभ उसे तत्काल यह होता है कि परमात्मा रूपी लोकपालों से आठ वर प्राप्त हो जाते हैं जिनका वह चाहे तो उपयोग कर सकता है । अक्ष - क्रीडा का तात्पर्य इन्द्रियों के दुरुपयोग से है । अक्षों में कलि प्रविष्ट होकर नल का सर्वस्व हरण करता जा रहा है । नल रूपी साधक अपने वासना रूपी वस्त्र से मन रूपी शकुन को पकड कर खा जाना चाहता है । दूसरे शब्दों में , मन को अपने वश में करने के लिए अपनी एकमात्र वासना की बलि चढा देता है । तब मन रूपी शकुन ऊर्ध्वमुखी हो जाते हैं। तब नल दमयन्ती का आधा वस्त्र ओढ लेता है । इसका अर्थ है कि साधक अभी भी वासनाओं से पूर्णत: मुक्त नहीं हुआ है । सोमयाग आदि में सदोमण्डप, आग्नीध्र मण्डप और हविर्धान मण्डप नामक तीन मण्डप होते हैं। आग्नीध्र ऋत्विज सदोमण्डप में जाकर अन्य ऋत्विजों के धिष्ण्य खरों की अग्नियों को प्रज्वलित करता है । आग्नीध्र मण्डप में आग्नीध्र खर से अग्नि का वहन वह दो प्रकार से करता है । एक तो आग्नीध्र मण्डप से सीधा सदोमण्डप में जाता है । दूसरा मार्ग है पूरी वेदी का चक्कर लगा कर । चक्कर लगाकर वह केवल मैत्रावरुण नामक ऋत्विज के धिष्ण्य खर को प्रज्वलित करता है । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उसके यह दो मार्ग नल के संदर्भ में अक्ष विद्या और अश्व विद्या के तुल्य हैं। गङ्गाखेड में गवामयन यज्ञ के अध्वर्यु श्री श्रीनिवास शर्मा का कहना है कि ऐसा इस कारण से है कि वेदी क्षेत्र के मध्य में एक विषुवत् रेखा की कल्पना की गई है जिसे लांघा नहीं जा सकता । चूंकि मैत्रावरुण ऋत्विज की धिष्ण्य विषुवत् रेखा के उस पार होती है , अत: उसे प्रज्वलित करने के लिए पूरी बहिर्वेदी का चक्कर लगाना पडता है । आग्नीध्र ऋत्विज की नल से कितनी समानता है, यह अन्वेषणीय है ।
नलकूबर गर्ग १.१९.२७ (नलकूबर का देवल के शाप से अर्जुन वृक्ष बनना , कृष्ण द्वारा यमलार्जुन रूपी नलकूबर व मणिग्रीव के उद्धार की कथा), ७.२४.१३ (नलकूबर की प्रद्युम्न - सेनानी कृतवर्मा से पराजय), देवीभागवत ९.२२.७ (नलकूबर का शङ्खचूड - सेनानी धूम्र से युद्ध), पद्म २.२७.२३ (उत्तर दिशा के दिक्पाल का नाम), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१४ (वृक्ष का रूप , कृष्ण द्वारा मोक्ष, रम्भा के साथ रमण, मुनि द्वारा वृक्षत्व का शाप), ब्रह्माण्ड २.३.८.४६(कुबेर व ऋद्धि - पुत्र), भविष्य ३.४.१५.६४ (कुबेर द्वारा स्वमुख से उत्पन्न स्व अंश के त्रिलोचन वैश्य बनने की कथा), भागवत १०.९.२२ (कुबेर - पुत्र, शाप से अर्जुन वृक्ष बनना), वायु ७०.४१/२.९.४१ (कुबेर व ऋद्धि - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर १.१३३.५० (रम्भा - पति के रूप में नलकूबर का उल्लेख), ३.७३ (नलकूबर की मूर्ति का रूप), ३.२२१.४०(पञ्चमी को नलकूबर की पूजा का निर्देश), शिव २.५.३६.११ (शिव व शङ्खचूड के युद्ध के संदर्भ में नलकूबर का शङ्खचूड - सेनानी धूम्र से युद्ध), स्कन्द ३.२.११.१३ (इन्द्र के दूत के रूप में नलकूबर द्वारा इन्द्र को श्रीमाता व लोलजिह्व राक्षस के युद्ध का समाचार देना), ४.२.८३.२ (कुबेर व ऋद्धि - पुत्र), हरिवंश २.९३.२९ (प्रद्युम्न द्वारा नलकूबर का रूप धारण करना), वा.रामायण ७.२६.३३ (रम्भा - पति, रावण द्वारा रम्भा से बलात्कार पर नलकूबर द्वारा रावण को शाप), कथासरित् ६.३.१६ (कुबेर -पुत्र नलकूबर की पत्नी सोमप्रभा का वृत्तान्त), १२.६.४० (नलकूबर द्वारा यक्ष - पुत्र अट्टहास को शाप देने का वृत्तान्त ) nalakoobara/nalakuubara/ nalkubar
नलनाभ मार्कण्डेय ६३.४०/६०.४० (इन्दीवर विद्याधर का पिता )
नलमेघ लक्ष्मीनारायण १.५८०.२७ (विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से नलमेघ दैत्य के वध का कथन )
नलव लक्ष्मीनारायण ३.२९.३ (नलव देश के राजा अंशुक्रमथ की भक्ति से श्रीहरि का साधु नारायण रूप में प्राकट्य )
नलिनी ब्रह्माण्ड १.२.१८.४० (प्राची गङ्गा का नाम, तटवर्ती जनपदों के नाम), १.२.१९.९६(शाक द्वीप की सात मुख्य गङ्गाओं में से एक), भविष्य २.३.५ (नलिनी, वापी, ह्रद आदि की प्रतिष्ठा की विधि), भागवत ४.२५.४८(पुरञ्जन की पुरी के ५ पूर्वी द्वारों में से एक, सौरभ देश में प्रवेश का द्वार), ४.२९.११(गन्ध का अनुभव करने वाले नासिका के द्वारों का प्रतीक), मत्स्य १०२.६(गङ्गा के १५ पुण्य नामों में से एक), १२१.४०(३ प्राची गङ्गाओं में से एक), वामन ७२.१५(राजा के वीर्य का पान कर मरुतों को जन्म देने वाली ७ मुनि - पत्नियों में से एक), वायु ४७.३८(३ प्राची गङ्गाओं में से एक), विष्णु २.४.६५(शाक द्वीप की सात मुख्य गङ्गाओं में से एक), शिव ५.१८.५५ (शाकद्वीप की ७ मुख्य नदियों में से एक), स्कन्द ५.२.७५.२६ (मणिभद्र - पुत्र वडल द्वारा कुबेर - पत्नी सदृश नलिनी / पुष्करिणी के बलात् सेवन से शाप प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२० (श्रीकृष्ण की नलिनी भार्या की भ्रामरी पुत्री व षडङ्गवैद्युत पुत्र का उल्लेख ) nalinee/ nalini |