PURAANIC SUBJECT INDEX (From Nala to Nyuuha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Nava, Navaneeta / butter, Navami / 9th day, Navaratha, Navaraatra, Nahusha, Naaka, Naaga / serpent etc. are given here. नव ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९(स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक), २.३.७४.१९ (उशीनर व नवा - पुत्र, नवराष्ट्र का राजा, अनु वंश), मत्स्य ४८.१८(उशीनर व नवा - पुत्र, नवराष्ट्र का राजा, अनु वंश), वायु ९९.२०/२.३७.२०(उशीनर व नवा - पुत्र, नवराष्ट्र का राजा, अनु वंश), विष्णु ४.१८.९(उशीनर के ५ पुत्रों में से एक, अनु वंश ) nava
नव- ब्रह्माण्ड २.३.७.२४०(नवाक्ष : प्रधान वानर नायकों में से एक), २.३.७.२४४(नवचन्द्र : बाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), भविष्य ३.४.२२ (नवरङ्ग : औरङ्गजेब का नाम, अन्धक का अंश), वराह १५३.१ (नवक : शिव तीर्थ के उत्तर में तीर्थों के नवक का माहात्म्य), वामन ९०.३० (नवराष्ट्र में विष्णु का यशोधर नाम), वायु ९३.३७/२.३१.३७(ययाति द्वारा पुत्र यदु को नवदेशिक कहने का उल्लेख), स्कन्द १.२.४७.२३(नवदुर्गा), लक्ष्मीनारायण २.२१४.२ (मिश्रसुरा राष्ट्र के नृप रायनवार्क के राज्य में श्रीहरि के आगमन व राजा द्वारा स्वागत का वर्णन), २.२३२.६ (नवजीवन दैत्य द्वारा शिव के विमान व राजा रायनृप की कन्या विद्युन्मणि का हरण, शिव द्वारा वध ) nava
नवग्रह मत्स्य ९३.६(नवग्रह होम की विधि का वर्णन )
नवदुर्गा स्कन्द १.२.४७.२३(त्रिपुरा, कोलम्बा आदि नवदुर्गाओं की स्थापना का कथन )
नवनीत भविष्य १.५७.१६(सरस्वती हेतु नवनीत बलि का उल्लेख), वराह १०७.१(नवनीतमयी धेनु दान विधि ; नवनीत के समुद्र मन्थन से उत्पन्न होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.२६.१०४ (द्वितीया तिथि को नवनीत दान से सुकुमार तनु होने का उल्लेख), ५.३.९२.२३(महिषी दान के संदर्भ में महिषी की नैर्ऋत दिशा में नवनीताचल बनाने का निर्देश ) navaneeta/ navnita
नवमी अग्नि १८५.१ (आश्विन शुक्ल नवमी को गौरी नवमी व्रत, दुर्गा, नवदुर्गा आदि की पूजा), गरुड १.११६.६ (नवमी को दिशाओं की पूजा), १.१३३ (चैत्र शुक्ल अष्टमी, महानवमी व्रत, दुर्गा पूजा), १.१३५.१ (वीर नवमी नामक आश्विन शुक्ल नवमी), १.१३५.२ (दमन नवमी नामक चैत्र शुक्ल नवमी), नारद १.११८ (नवमी तिथि के व्रत : रामनवमी, चण्डिका पूजन, उमा व्रत, इन्द्राणी पूजन, अक्षय नवमी, नन्दिनी नवमी, आनन्दा नवमी आदि), पद्म ५.३६ (चैत्र शुक्ल नवमी को लक्ष्मण का शक्ति भेदन, मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी को सम्पाती व वानर का मिलन, माघ शुक्ल नवमी को मेघनाद द्वारा राम व लक्ष्मण का बन्धन), ६.२५ (कार्तिक शुक्ल नवमी को तुलसी त्रिरात्र व्रत का अनुष्ठान), ६.१९८.७१ (शुचि / भाद्रपद शुक्ल नवमी को गोकर्ण द्वारा भागवत कथा का वाचन, शुक द्वारा परीक्षित् को भागवत कथा का वाचन), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.८० (राम नवमी का संक्षिप्त माहात्म्य), भविष्य ३.४.२६.१२ (कार्तिक शुक्ल नवमी को सत्ययुग की उत्पत्ति, धात्री वृक्ष की महिमा), ४.१३८ (आश्विन शुक्ल नवमी को महानवमी व्रत, चामुण्डा पूजा, लोह दैत्य की कथा), वराह २८ (नवमी को दुर्गा की उत्पत्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.६९(नवमी तिथि को पूजनीय देवी - देवताओं के नाम), शिव ५.४९.२२ (चैत्र शुक्ल नवमी को उमा देवी के प्राकट्य का वर्णन), स्कन्द २.४.३१.१ (कार्तिक शुक्ल कूष्माण्ड नवमी की विधि व माहात्म्य का वर्णन), ५.३.२६.११८ (नवमी को कात्यायनी हेतु गन्ध धूप दान के फल का उल्लेख), ५.३.६६.५ (नवमी को नर्मदा के दक्षिणी तट पर मातृ तीर्थ में मातृ पूजा के महत्त्व का कथन), ५.३.१७४.५ (कार्तिक शुक्ल नवमी को नर्मदा के उत्तर तटवर्ती गोपेश्वर तीर्थ में दीप दान का महत्त्व), ५.३.१८४.१८ (अश्वयुक् शुक्ल नवमी को विधूतपाप तीर्थ में वेद आदि पठन के महत्त्व का कथन), ६.८६ (आश्विन शुक्ल नवमी को चन्द्रमा की पत्नियों द्वारा चण्डी पूजा), ६.१६४ (आश्विन शुक्ल नवमी को सरस्वती तट पर स्थित दुर्गा देवी की पूजा की फलश्रुति), ७.१.१०२ (आश्विन शुक्ल नवमी), ७.१.१३३ (अश्वयुज शुक्ल नवमी को महाकाली की पूजा), ७.१.१८२ (आश्विन शुक्ल नवमी को मातृगण की पूजा), हरिवंश २.२.३५(नवमी तिथि को एकानंशा के यशोदा के गर्भ से जन्म लेने का कथन), २.२.५२ (नवमी तिथि को विन्ध्यवासिनी? देवी को बलि प्रदान करने का निर्देश), २.३.९ (एकानंशा/आर्या देवी के कृष्ण पक्ष की नवमी व शुक्ल पक्ष की एकादशी होने का उल्लेख), २.८०.२२ (सुन्दर ओष्ठों के लिए नवमी को अयाचित भोजन करने का कथन), वा.रामायण १.१८.८ (चैत्र शुक्ल नवमी को राम का जन्म), लक्ष्मीनारायण १.२७४ (१२ मासों के शुक्ल पक्षों में रामनवमी आदि व्रतों का वर्णन), १.३०१.३२ (अधिक मास की नवमी व्रत से अग्नि व सुवर्ण द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्ति का वर्णन), १.३१६.३६ (राजा शतमख व रानी द्युवर्णा द्वारा अधिक मास कृष्ण नवमी व्रत से नर - नारायण की पुत्र - द्वय रूप में प्राप्ति का वर्णन), २.२१०.२७ (भाद्र शुक्ल नवमी को श्रीहरि द्वारा ऋद्धीशा नगरी में आशा त्याग का उपदेश), २.२४५.३८ (मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी को सोमयाग के द्वितीय दिवसीय कृत्यों का वर्णन), ३.६४.१० (कृष्ण पक्ष की तिथियों के कृत्यों के संदर्भ में नवमी को माताओं के पूजन का निर्देश), ३.१०३.६ (शुक्ल पक्ष की तिथियों में दान फल के संदर्भ में नवमी को दान से हस्ती, उष्ट्र, अश्व आदि प्राप्ति का उल्लेख ) navamee/ navami
नवरथ कूर्म १.२४.१२ (वृष्णि - पुत्र, सरस्वती द्वारा नवरथ की दुर्योधन राक्षस से रक्षा), ब्रह्माण्ड २.३.७०.४३(भीमरथ - पुत्र, दशरथ - पिता, क्रोष्टा वंश), भागवत ९.२४.४(भीमरथ - पुत्र, दशरथ - पिता), मत्स्य ४४.४१(भीमरथ - पुत्र, दृढरथ - पिता, क्रोष्टा वंश), वायु ९५.४२/२.३३.४२(भीमरथ - पुत्र, दशरथ - पिता, क्रोष्टा वंश), विष्णु ४.१२.४१(भीमरथ - पुत्र, दशरथ - पिता, क्रोष्टा वंश ) navaratha
नवरात्र देवीभागवत ०.३ (आश्विन शुक्ल नवरात्र : सुद्युम्न द्वारा देवीभागवत श्रवण से स्थायी रूप से पुरुष बनना), ३.२६ (नवरात्र में देवी पूजन की विधि), नारद १.११०.३० (नवरात्र व्रत की विधि), शिव ५.५१.७३ (आश्विन शुक्ल पक्ष में नवरात्र व्रत के प्रभाव का कथन : सुरथ व सुदर्शन द्वारा हृत राज्य की प्राप्ति ) navaraatra
नवा ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८(उशीनर की पांच रानियों में से एक, नव - माता), मत्स्य ४८.१६(वही), वायु ९९.१९/२.३.१९(वही)
नहुष देवीभागवत ६.७+ (इन्द्र की अनुपस्थिति में नहुष द्वारा इन्द्र पद प्राप्ति, शची पर आसक्ति, ऋषियों के शाप से पतन), पद्म २.६४.३ (नहुष की प्रशंसा व नहुष - पुत्र ययाति का वृत्तान्त), २.१०२.७२ (कल्प वृक्ष से उत्पन्न अशोकसुन्दरी कन्या को पार्वती द्वारा नहुष पति प्राप्ति का वरदान), २.१०४+ (आयु व इन्दुमती - पुत्र, हुण्ड दैत्य द्वारा हरण, वसिष्ठ द्वारा पालन, नहुष द्वारा हुण्ड का वध व अशोकसुन्दरी से विवाह), २.१०७.५८(नहुष की निरुक्ति), २.११० (देवों द्वारा नहुष को आयुध प्रदान करना), ब्रह्म १.१०.१ (नहुष के यति आदि ६ पुत्रों के नाम व ययाति पुत्र का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त ४.५९+ (नहुष द्वारा इन्द्र पद प्राप्ति का उपाख्यान), ब्रह्माण्ड १.२.३.६८ (नहुष वंश का वर्णन), भविष्य ४.४६.७ (नहुष - पत्नी चन्द्रमुखी द्वारा हाथ में स्वर्णसूत्रमय डोरा बांधने की कथा), ४.९५.११ (नहुष - पत्नी जयश्री द्वारा श्रावणिका व्रत पूर्ण किए जाने पर ही प्राण त्यागने की कथा), भागवत ९.१८ (आयु - पुत्र, नहुष वंश का वर्णन, स्वर्ग से भ्रष्टता), मत्स्य १५.२३ (आज्यप पितर - कन्या, नहुष - पत्नी व ययाति - माता विरजा का उल्लेख), २४.४९ (नहुष के यति आदि ७ पुत्रों का वृत्तान्त), वायु ६९.७४/ २.८.७१ (कद्रू द्वारा उत्पन्न प्रधान नागों में से एक का नाम), ७३.४५/ २.११.८८ (आज्यपा पितर - कन्या, नहुष - पत्नी व ययाति - माता विरजा का उल्लेख), ८५.४/२.२३.४(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), विष्णु ४.११.५(यदु के पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.२४ (नहुष द्वारा इन्द्र पद प्राप्ति तथा अगस्त्य के शाप से पतन, सर्प बनना व सर्पत्व से मोक्ष की कथा), स्कन्द १.१.१५ (नहुष की शची पर आसक्ति व पतन का प्रसंग), हरिवंश १.१८.६६ (सुस्वधा पितरों की कन्या विरजा के नहुष - पत्नी होने का कथन), १.२८.२ (आयु व प्रभा - पुत्र), १.३०.१ (विरजा - पति, यति, ययाति आदि ६ पुत्रों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.३७४ (इन्द्र के कमल नाल में छिपने पर नहुष द्वारा इन्द्र पद की प्राप्ति, नहुष द्वारा शची की कामना, शची को प्राप्त करने के लिए नहुष द्वारा सप्तर्षियों को शिबिका वाहक बनाना, दुर्वासा द्वारा नहुष को अजगर बनने का शाप), १.४१२.२३(नहुष द्वारा इन्द्र पद ग्रहण करने के पश्चात् दरिद्रता से पीडित शची को द्रव्य दान व शची को भोगने की कामना, नहुष का पतन), ३.५२.१९ (आयु व इन्दुमती - पुत्र नहुष का हुण्ड दैत्य द्वारा हरण व विनाश की चेष्टा, वसिष्ठ द्वारा बाल नहुष का पालन, नहुष द्वारा हुण्ड का वध व अशोक सुन्दरी से विवाह आदि ), महाभारत अनुशासन ५१(तुलनीय : स्कन्द पुराण ७.१.३३८ में नाभाग ) nahusha
नाक ब्रह्माण्ड २.३.५९.१३ (कलि - पुत्र, अशरीरी, शकुनि - पति), वायु ३४.९४(नाकपृष्ठ : स्वर्ग का एक पर्यायवाची नाम), ८४.१०/२.२२.१० (कलि व हिंसा के ४ पुत्रों में से एक, शकुनि - पति, अशरीरवान्), स्कन्द २.४.३०.२३ (पुण्य कर्मफल नाक व पाप कर्म फल नरक होने का कथन), ४.१.२९.१०३ (नाक नदी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.१००.१३६(नाक : अर्कांश नाक शिल्पी के दिगंशा ककुप् से विवाह व उनकी सन्तानों का कथन ) naaka नाकुलि द्र.नकुल
नाग अग्नि ८६.८(सुषुप्ति/विद्या कला के २ प्राणों में से एक, हस्तिजिह्वा? नाडी में स्थित नाग वायु की प्रकृति का कथन), १४४.३२ (कुब्जिका देवी के आभूषणों के रूप में कर्कोटक आदि नागों का कथन), १८० (पञ्चमी व्रतों में वासुकि आदि ८ नागों की पूजा का निर्देश), २१४.१३(उद्गार नाग वायु के आधीन होने का उल्लेख), २९४ (नागों के लक्षण, जातियां, सर्प दंश में नक्षत्र व तिथि विचार, दूत चेष्टा से विष का विचार), ३०९.८ (त्वरिता देवी के आभूषण रूपी नाग), गणेश १.५३.२३ (नागकन्याओं की राजा चन्द्राङ्गद पर आसक्ति, बन्धन व मोचन), १.६४.१५ (गणेश की उदराग्नि की शान्ति हेतु गिरिश द्वारा नाग प्रदान करना, गणेश का व्याल बद्ध उदर होना), २.४.१० (नरान्तक द्वारा नागलोक की विजय), गरुड १.१२९.२३ (नाग पञ्चमी व्रत), २.४४.२४(पञ्चमी तिथियों को नाग पूजा विधि), देवीभागवत ८.२० (नागों का पाताल लोक में वास), नारद १.५६.२०६ (नाग वृक्ष की आश्लेषा नक्षत्र से उत्पत्ति का उल्लेख), १.११३.५१ (ऊर्ज शुक्ल चतुर्थी को नाग व्रत की विधि व माहात्म्य), १.११४.३३ (भाद्र कृष्ण पञ्चमी को नागों के तर्पण से नागों से अभय प्राप्ति का उल्लेख), पद्म १.३१ (ब्रह्मा द्वारा नागों को जनमेजय के सत्र में दाह का शाप, आस्तीक द्वारा रक्षा का उत्शाप), ३.२५.२ (काश्मीर में तक्षक नाग के वितस्ता नामक भवन का उल्लेख), ५.९३.६ (नागों का पापों से साम्य), ६.४७.६ (चैत्र शुक्ल एकादशी माहात्म्य के संदर्भ में पुण्डरीक नागराज द्वारा ललित गन्धर्व को शाप देने आदि की कथा), ब्रह्म २.२०.२ (गरुड द्वारा शेष - पुत्र मणि नाग को मुक्त न करने पर विष्णु द्वारा गरुड का गर्व भङ्ग करना ), २.४१ (शूरसेन - पुत्र, भोगवती से विवाह, पूर्व जन्म में शेष - पुत्र, शिव से शाप प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.५८ (नागवेष्ट नरक प्रापक कर्मों का उल्लेख), ४.१९ (कृष्ण द्वारा कालिय नाग के दमन का वृत्तान्त), ४.१९.९७ (कालिय - पठित स्तोत्र से नागभय न होने का कथन), ४.१९.११२ (कार्तिक पूर्णिमा को नागों द्वारा गरुडार्चन करने व कालिय नाग द्वारा उसमें विघ्न का वृत्तान्त), ४.५१(नागों द्वारा धन्वन्तरि - शिष्यों का हनन, धन्वन्तरि द्वारा नागों का दमन, मनसा देवी द्वारा नागों की सहायता का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.१६.९(नाग द्वीप : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक), १.२.१७.३४(निषध में नागों के वास का उल्लेख), २.३.७.३२ (नागों के नाम), २.३.३२.१९(नागों का शिव के यज्ञोपवीत रूप में उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८०(नाग वंश के नृपों में शेषनाग - पुत्र भोगी का उल्लेख), भविष्य १.३२ (नाग पञ्चमी उत्सव की विधि व महत्त्व : कद्रू का नागों को जलने का शाप, आस्तीक द्वारा नागों की रक्षा, १२ मासों की पञ्चमियों में १२ नागों के नाम), १.५७.१०(नागों के लिए क्षीर बलि का उल्लेख), १.५७.२०(नागों हेतु विष बलि का उल्लेख), १.१७९.३१ (अनन्त, तक्षक, कर्कोटक आदि नागों के लक्षणों के कथन सहित उनसे शान्ति की प्रार्थना), २.१.१७.६ (प्रपा कर्म में अग्नि का नाम), २.२.२१.६८ (आठ दिशाओं में स्थित ८ नागों के स्वरूप का वर्णन), ३.४.२३ (नाग राजाओं के वंश का वर्णन), ४.३४ (कार्तिक शुक्ल पञ्चमी को शान्ति व्रत के संदर्भ में नागों का अङ्गन्यास), ४.३६ (नाग पञ्चमी : मास अनुसार व्रत के नाम, उच्चैःश्रवा - कद्रू- विनता की कथा, आस्तीक की कथा), ४.६४.३६ (अधो दिशा के सर्पों के आठ कुलों व पत्नियों द्वारा सेवित होने का कथन), ४.१५६ (गौ के आन्त्रदेश में नागों की स्थिति), भागवत ५.२४ (वासुकि प्रधान नाग, पाताल में निवास), ७.८.४७ (नृसिंह द्वारा हिण्यकशिपु के वध पर नागों की प्रतिक्रिया), ९.७.२( पुरुकुत्स द्वारा नागों की कन्या नर्मदा से विवाह, रसातल में गन्धर्वों का वध, नागों से वर प्राप्ति ),मत्स्य २.१८ (प्रलय काल में मनु की नौका को भुजङ्ग रूपी रज्जु से मत्स्य शृङ्ग से बांधने का उल्लेख), ११४.८(नाग द्वीप : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक), मार्कण्डेय ७१.१७/६८.१७ (पाताल में नागराज कपोतक द्वारा स्वकन्या नन्दा को मूक होने के शाप का वृत्तान्त), १३० (नागों द्वारा मरुत्त - माता से रक्षा की प्रार्थना), १३१ (नागों द्वारा दंश से मृत विप्रों को पुन: जीवित करना), वराह २४.६ (मारीच काश्यप व कद्रू से उत्पन्न प्रधान नागों के नाम, नागों द्वारा मनुष्यों को त्रास देने के कारण ब्रह्मा द्वारा नागों को शाप आदि), ८०.१० (कपिञ्जल व नाग शैलों के मध्य स्थित रमणीय स्थली का कथन), १५४.१५(मथुरा में नाग तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वामन ५७.८८ (पृथूदक तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को नागजिह्व नामक गण प्रदान करने का उल्लेख), वायु २४.३९(नागों का शिव के यज्ञोपवीत रूप में उल्लेख), ३६.३१(मेरु के उत्तर दिशा के केसर पर्वतों में से एक), १.३९.३६(सुनाग पर्वत पर दैत्यों के वास का उल्लेख), ४५.७९(नागद्वीप : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक), ६९.६८/२.८.६५ (कद्रू द्वारा उत्पन्न शेष, वासुकि आदि प्रधान नागों के नाम), ११२.२२, ४२/२.४९.२७(नागकूट : गया के फल्गुतीर्थ के संदर्भ में नागकूट का उल्लेख), विष्णु २.२.३०(मेरु के उत्तर दिशा के केसर पर्वतों में से एक), २.३.७(नागद्वीप : भारतवर्ष के ९ भेदों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.३७ (सूर्य आदि विभिन्न ग्रहों से सम्बद्ध नागों, गन्धर्वों, निशाचरों आदि के नाम), १.१२८ (कद्रू- पुत्र नागों के नाम), १.२४८.२८(सुपर्ण की सन्ततियों में से एक), शिव २.१.१२.३४ (नागों द्वारा प्रवाल लिङ्ग की पूजा), ४.३०.३२ (दारुका राक्षसी के उपद्रव वर्णन के संदर्भ में वीरसेन द्वारा पूजित नागेश्वर शिवलिङ्ग का वर्णन), स्कन्द १.२.१३.१५७ (शतरुद्रिय प्रसंग में नागों द्वारा विद्रुम लिङ्ग की पूजा), १.२.३९.६९ (शतशृङ्ग के ८ पुत्रों में से एक), १.२.३९.९९ (स्वस्तिक नाग के भूमि पर आगमन से बने स्वस्तिक कूप का कथन), १.२.६३.५६ (शेष द्वारा स्थापित लिङ्ग के परित: चार दिशाओं में एलापत्र, कर्कोटक आदि नागों द्वारा मार्गों के निर्माण का कथन ), ३.१.५.१३२ (किन्नर नाग द्वारा स्वभगिनी ललिता को उदयन को प्रदान करने का वृत्तान्त), ३.१.३८ (अमृत भ्रम में कुशों के लेहन से नागों का द्विजिह्व होना), ३.१.४९.७८ (नागों द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ४.२.५७.१०६ (नागेश गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८४.४४ (नाग तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३०.३७ (नागों द्वारा दीप दान से पाताल में दिव्य प्रकाश आदि प्राप्ति का वर्णन), ५.१.५१(नागों द्वारा भोगवती में शिव को भिक्षा न देने पर शिव द्वारा तृतीय नेत्र से २१ अमृत कुण्डों का पान, शिप्रा के जल से अमृत रूपी कुण्डों के पूरण करने का वृत्तान्त), ५.१.६५ (कुशस्थली के अन्तर्गत नाग तीर्थ, आस्तीक द्वारा नागों की रक्षा का प्रसंग, बक दाल्भ्य का नाग तीर्थ में तप), ५.२.१९ (८४ लिङ्गों में से एक नाग चण्ड लिङ्ग का माहात्म्य), ५.३.८३.११० (गौ के खुराग्रों में गन्धर्वों, अप्सराओं व नागों की स्थिति का उल्लेख), ५.३.९९ (नागेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : वासुकि द्वारा गङ्गा शाप से मुक्ति हेतु तीर्थ में तप), ५.३.१३१ (नाग तीर्थ का माहात्म्य : कद्रू- विनता कथा में कद्रू द्वारा नागों को शाप, नागों द्वारा तप से अभय प्राप्ति), ५.३.१६३ (नाग तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२३१.१३ (रेवा नदी के दोनों तटों पर ७ नागेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख), ६.८.२४(देवों द्वारा पाताल में हाटकेश्वर क्षेत्र को मिट्टी से भरना, कालान्तर में नागबिल का निर्माण, इन्द्र का नागबिल से हाटकेश्वर में आना व देवों द्वारा नागबिल का गिरि से पूरण), ६.३१ (प्रेत रूप धारी इन्द्रसेन की नाग तीर्थ में श्राद्ध से मुक्ति), ६.११४.१३ (क्रथ द्विज द्वारा अनन्त - पुत्र रुद्रमाल की हत्या पर नागों का चमत्कार पुर में उपद्रव, त्रिजात विप्र द्वारा शान्ति के उपाय का वर्णन), ६.१८३ (नाग तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य), ६.२५२.२२(चातुर्मास में नागों की नाग वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.१८६ (नाग स्थान का माहात्म्य : बलराम का अनन्त धाम गमन), ७.३.५.७ (नाग तीर्थ का माहात्म्य : गौतमी द्वारा स्नान मात्र से गर्भ धारण), ७.३.३७ (नाग उद्भव तीर्थ का माहात्म्य : कद्रू के शाप से मुक्ति के लिए नागों का तप, देवी द्वारा वरदान), महाभारत उद्योग १०३.१(नागलोक के नागों के रूप व नामों का वर्णन ; मातलि - कन्या का नागकुमार सुमुख से साथ विवाह), द्रोण ८१.११(अर्जुन द्वारा स्वप्न में पाशुपत अस्त्र प्राप्ति के संदर्भ में सरोवर में नाग - द्वय का धनुष व बाण के रूप में परिवर्तित होने का कथन), शान्ति ३५५+ (नागपुर में स्थित नागराज पद्म की प्रशंसा), ३५८(नागराज पद्म के दर्शन के लिए ब्राह्मण का निराहार तप), ३६२(नागराज द्वारा सूर्यमण्डल की आश्चर्यजनक घटनाओं का वर्णन ), अनुशासन ९८.२९(नागों हेतु उपयुक्त पुष्प), लक्ष्मीनारायण १.८३.३० (नागास्या : ६४ योगिनियों में से एक), १.२२७.२३(पदतल की रक्षा करने वाले नागों में जयन्त के सर्वमूर्धन्य होने का उल्लेख), १.४४१.८४ (वृक्ष रूपी श्रीहरि के दर्शनार्थ नागों का वृक्ष रूप में अवतरण), १४४८ , १.४७० (कृष्ण द्वारा कालिय नाग का निग्रह, कालिय नाग की मुख्य पत्नी सुरसा का गोलोक गमन व छाया रूप में कालिय की पत्नी रहना आदि), १.४८७ (धन्वन्तरि व उनके शिष्यों द्वारा मन्त्र बल से तक्षक व अन्य सर्पों को निर्विष करना, वासुकि व अन्य नागों द्वारा तक्षक की सहायता हेतु आने पर धन्वन्तरि द्वारा उन्हें भी मन्त्र से शक्तिरहित करना, वासुकि द्वारा मनसा देवी का सहायतार्थ आह्वान करना, धन्वन्तरि का गर्व भङ्ग होना), १.४९९ (सती विधवा भद्रिका द्वारा नागमाता रेवती को वंश नाश का शाप, रेवती का तक्षक - पुत्री बनकर बलराम - पत्नी बनना, तक्षक द्वारा भद्रिका का हरण करने से भद्रिका द्वारा तक्षक को मनुष्य राजा रैवत बनने का शाप), १.५१०.२३ (ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ के द्वितीय दिवस पर यज्ञ में नागों को निमन्त्रण, सनातन वंश के सर्पों के लक्षणों का वर्णन आदि), १.५५१.८६(उत्तङ्क द्वारा राजा सौदास से मणिमाला की प्राप्ति के संदर्भ में अर्बुद नाग /पर्वत द्वारा भूविवर को पूरित करने का उल्लेख), १.५८०.१३ (नाग - नर्मदा संगम क्षेत्र में ब्रह्महत्या के प्रवेश के निषेध के संदर्भ में राजा कण्ठ की कथा), २.२८.१५ (नागों की ब्राह्मण आदि जातियों का वर्णन तथा उनके विशिष्ट कार्य, कृष्ण द्वारा ब्राह्मण जातीय स्वस्तिक नाग की विंशति कन्याओं की रक्षा का वृत्तान्त), ३.६.१ (अष्टाङ्ग योग में नियम वत्सर में नागों के शासनार्थ गरुत्मन्नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.५२.३७(नाग पुर के राजा आयु व रानी इन्दुमती से नहुष के जन्म का वृत्तान्त), ३.७५.७९ (मण्डूकवत् जलशायी द्वारा नागलोक प्राप्ति का उल्लेख), ४.६१.२ (नागाद नामक नागखेलकर की कथा श्रवण से सपरिवार मुक्ति का वर्णन), ४.८०- ८५(नागविक्रम नृप के सर्वमेध यज्ञ का बालकृष्ण द्वारा सम्पादन, नागविक्रम के नन्दिभिल्ल से युद्ध का वर्णन), ४.१०९.२७ (नागों का राज्य वासुकि और सर्पों का राज्य तक्षक को प्राप्त होने का उल्लेख), ४.१०९.४० + (अजनाभ : नागपुर व दिलावरी के राजा नागविक्रम द्वारा तीर्थयात्रा, समाधि सदृश स्थिति की प्राप्ति, त्रिविक्रम नाम से वैष्णव दीक्षा ग्रहण करना आदि), कथासरित् ४.२.१९०(गरुड द्वारा नागों के लिए लाए गए अमृत कलश का इन्द्र द्वारा हरण, नागों द्वारा कुश को चाटने से द्विजिह्व होना, गरुड के कोप से बचने के लिए वासुकि नाग द्वारा गरुड भक्षण के लिए एक नाग प्रतिदिन भेजना, जीमूतवाहन विद्याधर द्वारा शङ्खचूड नाग के बदले स्वयं को गरुड के भक्षण हेतु प्रस्तुत करना, गरुड द्वारा नागों को अभय प्रदान करना), ८.३.६३(सूर्यप्रभ के तूणरत्न, धनुष तथा गुण के नागों से बने होने का वृत्तान्त), ९.५.१४६ (वासुकि नाग - भगिनी रत्नप्रभा द्वारा भतीजे कनकवर्ष को तप हेतु शक्ति प्रदान करने का वृत्तान्त), ९.६.३४४ (नल द्वारा कर्कोटक नाग की अग्नि से रक्षा व नाग द्वारा नल का दंशन करके विरूप बनाने का वृत्तान्त), १०.५.१७० (स्त्रियों के स्वभाव के कारण ५०० हस्ती देने वाले नाग के नष्ट होने का वृत्तान्त), १०.८.१५६ (नाग द्वारा नागकन्या व पथिक को भस्म करने का कथन), १२.३.५८ (मृगाङ्कदत्त द्वारा तापस की सहायता से पारावत नाग के दिव्य खङ्ग की प्राप्ति का प्रयत्न, प्रयत्न निष्फल होने के कारण नाग से शाप की प्राप्ति), १२.५.५५ (विनीतमति द्वारा गन्धमाली नाग को कालजिह्व यक्ष की दासता से मुक्त कराने तथा गन्धमाली - कन्या विजयवती से विवाह का वृत्तान्त), १३.१.८५ (साधु द्वारा शङ्खपाल नागराज के शङ्खह्रद की महिमा का कथन), १८.५.२२० (अद्भुत वाक् के संदर्भ में नागों के वाहन मेघ होने का कथन), ; द्र. मणिनाग naaga |