PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Nala to Nyuuha )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

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Nala - Nalini( words like  Nala, Nalakuubara, Nalini etc.)

Nava - Naaga ( Nava, Navaneeta / butter, Navami / 9th day, Navaratha, Navaraatra, Nahusha, Naaka, Naaga / serpent  etc.)

Naaga - Naagamati ( Naaga / serpent etc.)

Naagamati - Naabhi  ( Naagara, Naagavati, Naagaveethi, Naataka / play, Naadi / pulse, Naadijangha, Naatha, Naada, Naapita / barber, Naabhaaga, Naabhi / center etc. )

Naama - Naarada (Naama / name, Naarada etc.)

Naarada - Naaraayana (  Naarada - Parvata, Naaraayana etc.)

Naaraayani - Nikshubhaa ( Naaraayani, Naarikela / coconut, Naaree / Nari / lady, Naasatya, Naastika / atheist, Nikumbha, Nikshubhaa  etc.)

Nigada - Nimi  ( Nigama, Nitya-karma / daily ablutions, Nidhaagha, Nidra / sleep, Nidhi / wealth, Nimi etc.)

Nimi - Nirukta ( Nimi, Nimesha, Nimba, Niyati / providence, Niyama / law, Niranjana, Nirukta / etymology etc. )

 Nirodha - Nivritti ( Nirriti, Nirvaana / Nirvana, Nivaatakavacha, Nivritti etc. )

Nivesha - Neeti  (Nishaa / night, Nishaakara, Nishumbha, Nishadha, Nishaada, Neeti / policy etc. )

Neepa - Neelapataakaa (  Neepa, Neeraajana, Neela, Neelakantha etc.)

Neelamaadhava - Nrisimha ( Neelalohita, Nriga, Nritta, Nrisimha etc.)

Nrihara - Nairrita ( Nrisimha, Netra / eye, Nepaala, Nemi / circumference, Neshtaa, Naimishaaranya, Nairrita etc.)

Naila - Nyaaya ( Naivedya, Naishadha, Naukaa / boat, Nyagrodha, Nyaaya etc.)

Nyaasa - Nyuuha ( Nyaasa etc. )

 

 

Puraanic contexts of words like  Naarada-Parvata, Naaraayana etc. are given here.

Comments on Naaraayana/Narayana

नारद - पर्वत ब्रह्माण्ड २.३.७.२९ (नारद, पर्वत व अरुन्धती के सह जन्म का कथन), मत्स्य १२२.११ (नारद व पर्वत का शाक द्वीप में नारद व दुर्ग शैल पर्वतों के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख )

 

नारसिंही देवीभागवत ५.२८.२५ (शुम्भ असुर के संदर्भ में नारसिंही देवी के नृसिंह सदृश रूप का उल्लेख), ५.२९.१२ (नारसिंही देवी द्वारा नखों से jरक्तबीज असुर पर प्रहार का उल्लेख), पद्म १.४६.७९ (अन्धकासुर के रक्त पान के लिए शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), मार्कण्डेय ८८/८५.१९ (शुम्भ दैत्य से युद्ध के संदर्भ में नारसिंही देवी के नृसिंह सदृश रूप का उल्लेख), वामन ५६.९(चण्डिका के ह्रदय से नखिनी नारसिंही देवी के प्रादुर्भाव का उल्लेख )

 

नारायण अग्नि १७.७ (नारायण की निरुक्ति : आपो नारा इति), गरुड १.२२ (नारायण की भक्ति का कथन), .२.४२ (नारायण पूजा से प्रेत की मुक्ति का कथन), २.४०.११(नारायण बलि विधान), ३.१६.१०(अजा-पति), ३.२४.५३(नारा की निरुक्ति : दोषों के विरुद्ध गुण), ३.२९.६२(प्रयाणकाल में तार्क्ष्यवाह नारायण के ध्यान का निर्देश), देवीभागवत ४.१७ (अप्सराओं के अनुरोध पर नारायण का २८वें द्वापर में पति बनने का वचन), ८.१.७+ + (नारद द्वारा नारायण से जगत्तत्त्व, माया नाश, प्रकाश के उदय आदि के विषय में पृच्छा), ९.१++ (नारद द्वारा नारायण से दुर्गा, राधा, लक्ष्मी आदि पञ्चविध प्रकृति के आविर्भाव व लक्षणों आदि के बारे में पृच्छा), १०.१++ (नारद द्वारा नारायण से मन्वन्तरों में देवी के स्वरूपों के विषय में पृच्छा), ११.१++ (नारद द्वारा भक्तों द्वारा देवी को प्रसन्न करने तथा देवी द्वारा भक्तों को प्रसन्न करने के उपाय के विषय में पृच्छा, नारायण द्वारा सदाचार का वर्णन), १२.१++ (नारद द्वारा कठिन सदाचार मार्ग के अतिरिक्त गायत्री न्यास द्वारा देवी प्रसाद प्राप्त करने के विषय में पृच्छा), नारद १.६६.८६(नारायण की शक्ति कान्ति का उल्लेख, केशवादि मातृका के नारायण मुनि होने का उल्लेख), १.८३.९४ (नारायण ऋषि द्वारा महासरस्वती की आराधना), २.२०.२० (धर्माङ्गद द्वारा नारायणास्त्र से वरुण को जीतने का उल्लेख), २.५६.३४ (नारायण महिमा व कवच : वसु - मोहिनी संवाद का प्रसंग), २.५७ (नारायण की षोडशोपचार पूजा विधि), २.५७.७(ॐ नमो नारायणाय अष्टाक्षर मन्त्र का देह में न्यास), पद्म १.३४.१५ (नारायण के ब्रह्मा के यज्ञ में प्रतिहर्त्ता ऋत्विज बनने का उल्लेख), ५.१०५.२१ (कृत्या द्वारा अपहृत द्विज - पत्नी के अन्वेषणार्थ राम द्वारा नारायणपुर में प्रवेश का उद्योग, शम्भु द्विज द्वारा नारायणी माया से राम की सहायता ), ६.१२०.५६(नारायण से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन), ६.२२६.५०(नारायण की निरुक्ति : नारा: आत्मनां संघा:, उनकी गति असौ पुमान्; ते एव चायनं तस्य), ब्रह्म १.१.३९ (आपो नारा इति प्रोक्ता इत्यादि), १.१.४६(मरीचि, अत्रि आदि ब्रह्मा से उत्पन्न सात ऋषियों के नारायणात्मक होने का उल्लेख), १.५७.२५ (नारायण मन्त्र व कवच), १.७१.१६ (नारायण की जगत में चतुर्धा स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.६ (पञ्चतन्मात्र के पश्चात् नारायण की उत्पत्ति), १.१९.३५ (नारायण से परः की रक्षा की प्रार्थना), २.५२.३ (नारायण ऋषि द्वारा सुयज्ञ नृप हेतु कृतघ्नता का निरूपण), ३.०+ (नारायण का नारद से संवाद), ३.७.६२ (नारायण द्वारा प्रकृति की महिमा का वर्णन ; नारायण आत्मा, मन ब्रह्मा, ज्ञान शिव आदि का कथन), ४.१२.२४ (नारायण से ऊर्ध्व दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.६.६२ (आपो नारा तत्तनव - - - - आपूर्यमाणा तत्रास्ते तेन नारायण: श्लोक), २.३.३.१७(१२ साध्य देवों में से एक), २.३.८.६ (नारायण का साध्यों के राजा के रूप में अभिषेक का उल्लेख), भविष्य १.२२.१९ (शिव द्वारा नारायण की भुजा में शूल के प्रहार से निकले रक्त को कपाल में भरना, कपाल से रक्त नर की उत्पत्ति, श्वेत व रक्त नरों का युद्ध आदि), २.२.२.३१ (नारायण के क्रौञ्च वाहन का उल्लेख), भागवत ६.८ (नारायण कवच का वर्णन), ६.८.१६ (नारायण से उग्र धर्मों से रक्षा की प्रार्थना), ६.८.२० (नारायण से दोपहर से पूर्व रक्षा की प्रार्थना), १०.६.२४ (नारायण से प्राणों की रक्षा की प्रार्थना), ११.१६.२५ (भगवान् के मुनियों में नारायण होने का उल्लेख), मत्स्य १७२.२९ (नारायण का सागर रूप), लिङ्ग १.८१.३६(बक पुष्प पर नारायण की स्थिति का उल्लेख), वराह १.२५ (नारायण से जङ्घा की रक्षा की प्रार्थना), २.११ (शून्य में शब्द , वायु व तेज आदि भूतों की सृष्टि के पश्चात् आप: आदि की सृष्टि करके उसी में शयन करने से नारायण नाम की निरुक्ति), २.२ (आपो नारा इत्यादि श्लोक), ४.१३ (नारायण आराधक अश्वशिरा राजा के समक्ष कपिल व जैगीषव्य मुनियों द्वारा विष्णु व गरुड रूप का प्रदर्शन), ५.४८ (राजा अश्वशिरा द्वारा यज्ञतनु नारायण हेतु पठित स्तोत्र), ७०.२४ (कृतयुग में नारायण की सूक्ष्म रूप में, त्रेता में यज्ञ रूप द्वारा, द्वापर में पञ्चरात्र द्वारा तथा कलियुग में तामस मार्गों द्वारा उपासना करने का निर्देश), वामन .४२ (शिव द्वारा नारायण से भिक्षा मांगना, नारायण की भुजा का ताडन), ९०.४ (बदरी तीर्थ में विष्णु का नारायण नाम से वास), वायु ६.५ (नारायण शब्द की निरुक्ति), ७.६४/१.७.५९ (आपो नारा इत्यादि श्लोक का रूपान्तर : आपूर्य नाभिं तत्रास्ते - - - -), विष्णु १.४.६ (सार्वत्रिक परिभाषा वाले श्लोक : आपो नारा इति), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.११ (साध्यों में नारायण की प्रधानता का उल्लेख), १.१२९.१० (नारायण ऋषि द्वारा ऊरु से उर्वशी को उत्पन्न करने की कथा), १.२३७.१२ (नर - नारायण से बुद्धि की रक्षा की प्रार्थना), ३.३५ (चित्रसूत्र अथवा नृत्तशास्त्र के विवेचन के संदर्भ में नारायण द्वारा चित्रसूत्र द्वारा उर्वशी का सृजन करने का कथन), शिव २.१.६ .५४ (विष्णु के अङ्गों से नि:सृत जलधारा द्वारा शून्य को अभिव्याप्त करने और विष्णु द्वारा उस जल में शयन करने से नारायण नाम प्राप्ति का कथन), स्कन्द २.१.१.५९(६ तीर्थों वाले नारायणाद्रि के चार युगों में नाम तथा माहात्म्य का कथन), २.२.३०.८१ (नारायण से मन और गरुडध्वज से चैतन्य की रक्षा की प्रार्थना ), ४.२.६१.२०७ (नारायण के १०५ रूपों का उल्लेख), ४.२.६१.२३० (नारायण की मूर्ति के लक्षण शङ्ख, पद्म, गदा, चक्र), ४.२.७६.१३९ (आमुष्यायण - पुत्र, चारण्य की पुत्रियों से विवाह, सर्प दंश से मृत्यु, जन्मान्तर में कपोत व विद्याधर बनना), ५.१.४.८४ (नारायण की रुद्र के तेज से उत्पत्ति, नर-नारायण की भृगु-अङ्गिरा व अश्वत्थ-शमीगर्भ से तुलना?), ५.२.५९.१५ (कपिल व जैगीषव्य का राजा अश्वशिरा के समक्ष क्रमश: नारायण व गरुड रूप दिखाना), ५.३.९५ (नारायणेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१३२.१० (वराह तीर्थ के अन्तर्गत नमो नारायणाय मन्त्र के महत्त्व का कथन), ५.३.१४९.९ (नर्मदा में लिङ्गेश्वर तीर्थ में विभिन्न मासों में वराह के विभिन्न नामों में पौष में नारायण नाम से पूजा), ५.३.१७१.१ (ज्येष्ठ भ्राता माण्डव्य को शूलारोपित देखकर नारायण का राजा को शाप देने को उद्धत होना, माण्डव्य द्वारा रोकना), ५.३.१९२.६ (नारायण के नाभि कमल से ब्रह्मा, दक्षाङ्गुष्ठ से दक्ष आदि के जन्म का उल्लेख), ५.३.१९२.१० (धर्म व साध्या के ४ पुत्रों में से एक, नर - नारायण के तप से संतप्त होकर इन्द्र द्वारा तप में विघ्न हेतु वसन्तकामा अप्सराओं का प्रेषण, वसन्तकामा अप्सराओं द्वारा नर - नारायण की स्तुति व विश्वरूप के दर्शन, नर - नारायण द्वारा उर्वशी अप्सरा को उत्पन्न करना आदि), ५.३.१९४.४ (नारायण द्वारा अप्सराओं को विश्वरूप दिखाने का वृत्तान्त सुनकर भृगु - पुत्री लक्ष्मी द्वारा नारायण की पतिरूप में प्राप्ति हेतु तप, नारायण से विवाह यज्ञ का वर्णन ), ७.१.८४ (आदि नारायण द्वारा मेघवाहन दैत्य का वध), ७.१.३०७ (अपर नारायण का माहात्म्य : सूर्य का विष्णु रूप), ७.१.३३७ (नारायण गृह का माहात्म्य : दैत्य के विनाश के पश्चात् हरि का विश्राम स्थल, चार युगों में नारायण के नाम), ७.१.३५८ (नारायण तीर्थ का माहात्म्य- शांडिल्य की पूजा), हरिवंश ३.१४.११(ब्रह्मा द्वारा भू आदि पुत्रों को कपिल तथा नारायण से निर्देश प्राप्त करने का आदेश), योगवासिष्ठ ५.३३ (प्रह्लाद के लिए नारायण का आगमन), लक्ष्मीनारायण १.२९.१६ (लोक में जन्म होने पर नारायण के शरीर के दिव्य चिह्नों का वर्णन), १.११२.२२ (नारायण द्वारा शिव को वैष्णव दीक्षा प्रदान करते समय प्रदत्त मन्त्रों लक्ष्मी नारायण, स्वामिनारायण, नरनारायण, हरि नारायण आदि का कथन), १.१५९ (नारायण ह्रद में स्नान, तर्पण आदि के महत्त्व का वर्णन : पत्नीव्रत नामक द्विज व दामोदर के नारायण - द्वय होकर ब्रह्माण्ड में विचरण का वर्णन), १.१६० (पत्नीव्रत द्विज व दामोदर नारायण - द्वय द्वारा  नारायण ह्रद में सार्वभौम श्राद्ध - तर्पण का वर्णन), १.१६१.३९ (रैवताद्रि पर ह्रदों में मुख्य नारायण ह्रद का महत्त्व), १.३८५.६(नारायण शब्द की निरुक्तियां), १.३९८.२१ (नारायण पर्वत पर नारायण पुर में वियद्राज व उसकी पत्नी  धरणी की कन्या पद्मिनी के नारायण से विवाह का वृत्तान्त), २.४७.९३ (ओं नम: श्रीकृष्ण नारायणाय पत्ये स्वाहा षोडशाक्षर मन्त्र के अक्षरों के न्यास का कथन), २.१४२.१५ (नारायण मूर्ति को विष्णु आदि की मूर्ति के सापेक्ष नवांश बनाने का निर्देश), २.२६१.१३ (नारायण शब्द की निरुक्ति : अरा/माया से मुक्ति), ३.३.३३ (प्रथम ब्राह्म वत्सर में रोहिताण्ड असुर के वधार्थ द्युनारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.३.६७ (मेरु के स्थैर्य हेतु मेरुनारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.३.१०२ (सूर्य के तीक्ष्ण तेज के शातनर्थ विष्णु नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.४.५१ (धूम्र असुर से चन्द्रमा की रक्षा हेतु श्री देवनारायण का प्राकट्य), ३.४.९२ (ज्योतिष्मान् मनु के यज्ञ की रक्षा हेतु अध्वरनारायण व उनकी पत्नी दक्षिणा का प्राकट्य), ३.५.५१ (जगत के संहार कार्य से विरत रुद्र के शासनार्थ ब्रह्म नारायण का प्राकट्य), ३.५.९४ (देवों की धिष्ण्य /पदों के नियमार्थ आदित्य नारायण व द्यु नारायणी का प्राकट्य), ३.६ (अष्टाङ्ग योग में नियम वत्सर में नागों के शासनार्थ गरुत्मन्नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.७.२६ (आसन नामक वत्सर में राजा चलवर्मा को अचला भक्ति प्रदान करने हेतु आर्ष नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.७.८० (प्राणरोधन वत्सर में थुरानन्द के पराभव हेतु प्राज्ञ नारायण का प्राकट्य, प्राज्ञ नारायण द्वारा थुरानन्द - कन्या ज्योत्स्ना से विवाह का वृत्तान्त), ३.८.१०५ (प्रत्याहार वत्सर में प्रजा को धर्म के उपदेश के लिए वीर नारायण के प्राकट्य का वृत्तान्त), ३.९.६१ (धारणा वत्सर में शोणभद्र वैश्य के यज्ञ में अग्नि के प्रकोप की शान्ति हेतु भद्र नारायण का प्राकट्य), ३.१०.९३ (प्रध्यान वत्सर में तुङ्गभद्रा योगिनी द्वारा रात्रि में राक्षसों के विनाश हेतु सूर्य की गति का रोधन, श्री हरिनारायण का प्रकट होकर तुङ्गभद्रा - कन्या सर्वभद्रा से विवाह), ३.११.७५ (मान वत्सर में बीज भक्षक कोशस्तेन नामक राक्षस के निग्रह हेतु बीज नारायण का प्राकट्य), ३.१२.८५ (समाधि वत्सर में धर्मव्रत विप्र के ११० पुत्रों के मोक्ष के पश्चात् श्रीहरि का अग्रज संकर्षण सहित नरनारायण रूप में अवतार), ३.१४.३८ (प्रज्ञा नामक वत्सर में सुदर्शनी सती के शाप से नारी भाव को प्राप्त संसार के तारणार्थ स्त्रीपुँ नारायण का प्राकट्य), ३.१४.१०७ (अप्रज्ञा वत्सर में मकर दैत्य के नाशार्थ जल नारायण का प्राकट्य), ३.१५.१०१ (लय भाव वत्सर में साधु धर्म स्थापनार्थ वषट् व स्वधा के पुत्र रूप में शील नारायण का प्राकट्य), ३.१६.९६ (साक्षात्कृत वत्सर में व्याघ्रानल असुर के विनाशार्थ वारिधि /वार्धि नारायण का प्राकट्य), ३.१७.८५ (सृष्टिमान वत्सर में चतुर्मुख नारायण का प्राकट्य), ३.१९.२० (वेद वत्सर में भक्त पुण्यरात  व उसकी पत्नी राधनिका को स्वलोक ले जाने के लिए कृपा नारायण का प्राकट्य), ३.१९.८७ (सती चारणी द्वारा वैमानिक देवों के पृथिवी पर अवतरण के निषेध किए जाने पर तीर्थों के उद्धार हेतु तीर्थ नारायण का प्राकट्य), ३.२०.८८ (सनातन वत्सर में पार्वती शाप से मृत भक्तिहीन द्विजों के जीवन हेतु जीव - नारायण का प्राकट्य), ३.२१.२५ (आर्ष वत्सर में ब्रह्मा के सर्वमेध यज्ञ में अर्धश्रीश्वर नारायण का प्राकट्य), ३.२१.५४ (धर्म वत्सर में पितरों की तृप्ति हेतु अर्धपितृनारायण का प्राकट्य), ३.२१.८९ (अनङ्ग वत्सर में भक्तों की आशा प्रपूरणार्थ प्लक्ष नारायण का प्राकट्य), ३.२२.१०७ (आवृष वत्सर में नरमेध में भक्त नरपशु की रक्षार्थ पुंस्त्व नारायण का प्राकट्य ; नारायण के शालग्राम रूपी वृषणों के कर्तन व पुन: योजन का वर्णन ), ३.२३.८५ (अनल वत्सर में सूर्यवर्चा नृप की भक्ति से शिंशपा नारायण का प्राकट्य), ३.२४.८० (पितृ वत्सर में मयूर असुर के नाशार्थ क्षत्र नारायण का प्राकट्य), ३.२५.९१ (देव वत्सर में प्रसविष्णु / प्रस्रवण असुर के कारण नैष्ठिकी श्री लक्ष्मी द्वारा काम, रति आदि को भस्म करना, ब्रह्मचारि नारायण का प्राकट्य), ३.२६.९२ (मानव वत्सर में हल्लक असुर द्वारा शिव के शिर: छेदन पर शिव के उज्जीवनार्थ शिव नारायण का प्राकट्य), ३.२७.७३ (कल्पद्रुम वत्सर में यम द्वारा मारित कुबेर के उज्जीवनार्थ स्वर्ण नारायण का प्राकट्य), ३.२८.३३ (सस्य वत्सर में स्वामि नगर के वासियों की ज्वाला पर्वत की ज्वालाओं से रक्षा हेतु स्वामिनारायण का प्राकट्य), ३.२८.८५ (पाशव वत्सर में सावन नारायण के निर्वाणिका नामक दरिद्र विप्राणी के गृह में प्राकट्य का वर्णन), ३.२९.९८ (याक्ष वत्सर में साधुओं आदि की प्रार्थना पर साधु नारायण का प्राकट्य), ३.३०.९५ (राक्षस वत्सर में भक्त हरिप्रथ के शाप से मृत वर्णिशाल मनु के उज्जीवनार्थ भक्त नारायण का प्राकट्यय), ३.३१.८४ (अण्डज वत्सर में ऋषि के शाप से अश्वमेधीय अश्व बने राजा की मुक्ति हेतु मेध नारायण का प्राकट्य), ३.३२.३७ (अनलाद असुर के विनाशार्थ वह्नि नारायण का प्राकट्य), ३.३२.१०१ (नाग वत्सर में रस भक्षक इलोदर असुर के नाशार्थ रस नारायण का प्राकट्य), ३.३३.२६ (४०वें वत्सर में दैत्यों के नाश हेतु चक्रनारायण का प्राकट्य), ३.३३.५१ (अध्वर वत्सर में सत्य धर्म की स्थापना हेतु सत्य नारायण का प्राकट्य), ३.३३.९४ (हिरण्य वत्सर में पृथिवी पर पक्ष युक्त पर्वतों को स्थिर करने के लिए हिरण्यनारायण का प्राकट्य), ३.३४.६६ (राजत वत्सर में निरञ्जन भक्त हेतु निरञ्जन नारायण का प्राकट्य), ३.३४.१०६ (कपाल वत्सर में ब्रह्मा को सती पुण्यवती के शाप से मुक्त करने हेतु पुण्यनारायण का प्राकट्य), ३.३५.३६ (४५वें वत्सर में अप्सराओं की कामना पूर्ति हेतु बृहद्ब्रह्म नारायण का प्राकट्य), ३.३५.५२ (४६वें वत्सर में त्रेता में विद्या की प्रतिष्ठा हेतु गुरु नारायण का प्राकट्य), ३.३५.१३० (बृहद्धर्म राजा को राजसूय यज्ञ की दीक्षा हेतु आचार्य नारायण का प्राकट्य), ३.३६.२६ (अर्चि मार्ग वत्सर में विद्युतस्राव राक्षस के नाश हेतु महाविद्युन्नारायण का प्राकट्य), ३.३६.६२ (अब्धिमथन वत्सर में मधुभक्ष दैत्य के वधार्थ मधु नारायण का प्राकट्य), ३.३६.९३ (नारद वत्सर में धेनु की रक्षा व म्लेच्छों के नाश हेतु नाथ नारायण का प्राकट्य), ३.२७.४६(५१वें वैष्णव वत्सर में स्वर्ण जयन्ती उत्सव पर विभु नारायण का प्राकट्य), ३.३७.१११ (सोम वत्सर में ऋषियों, देवताओं, पितरों आदि की आराधना पर मोक्ष नारायण का प्राकट्य), ३.३८.२ (गायत्री वत्सर में कृष्ण नारायण का प्राकट्य), ३.६८.१२ (कृष्ण नारायण शब्द में नारायण शब्द के अक्षरों के सूक्ष्मार्थों का कथन), ३.६८.३०(नारायण शब्द की निरुक्तियां), ३.६८.५१(नारायण शब्द की निरुक्तियों का कथन), ३.९८.८६ (नारायण मुनि द्वारा राक्षस के शिर पर जल का प्रक्षेप करने से राक्षस द्वारा दिव्य रूप की प्राप्ति का कथन), ३.१८६.७८(नारायणास्त्र : साधु की आत्मा में नारायणास्त्र की स्थिति का उल्लेख), ३.२३२.३१ (ज्वाला प्रसाद व प्रभावती के मन्दिर में नारायणायन योगी का आगमन व उपदेश आदि), ४.२४.२६ (नारायण के नित्य गृह व बुद्धि के दारा आदि होने का कथन), कथासरित् ८.५.७४ (सूर्यप्रभ - सेनानी प्रभास द्वारा नारायणास्त्र प्रयोग का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३४१.४०(आपो नारा इति प्रोक्ता आदि श्लोक ); द्र. नर - नारायण, यज्ञनारायण, विप्रनारायण  naaraayana/ narayana

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