पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From vowel Ekapaatalaa to Ah) Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar Ekapaatalaa - Ekashruta ( Ekalavya etc.) Ekashringa - Ekaadashi ( Ekashringa, Ekaadashi etc.) Ekaananshaa - Airaavata ( Ekaananshaa, Ekaamra, Erandi, Aitareya, Airaavata etc.) Airaavatee - Odana ( Aishwarya, Omkara, Oja etc.) Oshadhi - Ah ( Oshadhi/herb, Oudumbari, Ourva etc.)
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Puraanic contexts of words like Airaavata, Aishwarya, Omkara, Oja etc. are given here. Comments on Omkaara/Omkar/Onkaara/Onkar ऐरावती मत्स्य ११५.१८+ ( मद्र देश के अधिपति कुरूप पुरूरवा द्वारा मद्र देश की सीमा पर ऐरावती / रावी नदी के दर्शन, नदी की शोभा का वर्णन ), कथासरित् ७.८.५३ (ऐरावती नगरी के राजा परित्यागसेन के पुत्रों इन्दीवरसेन व अनिच्छासेन की कथा ), द्र. इरावती Airaavatee
ऐल मत्स्य ९६.७ ( रजतमय १६ फलों में मे एक ऐला का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.८३.१०७ ( ऐल शैल तीर्थ का राजा ज्यध्वज से पाप नाश का उपाय पूछना ) Aila
ऐलविल ब्रह्माण्ड २.३.७.३३१ ( कुबेर का नाम, पद्म नामक गज वाहन ), भविष्य १.१९.२६( ऐलविल द्वारा वित्त देने का उल्लेख ), ३.३.१२.१०१ ( ऐलविली : जम्बुक राजा की कन्या का गुरु, पूर्वजन्म में चित्र नामक दैत्य ) Ailvila
ऐलविला द्र. इलविला
ऐश्वर्य गरुड ३.२४.८६(ऐश्वर्य के अधिपति इन्द्र का उल्लेख), ३.२४.८८(अनैश्वर्य के अधिपति रुद्र का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३५.७५ ( क्षत्रिय का लक्ष्य ऐश्वर्य प्राप्ति / क्षत्रिय का धन ऐश्वर्य ), ब्रह्माण्ड १.२.२७.१२५ ( दक्षिण मार्ग से चलने वालों के लिए अणिमा आदि ८ ऐश्वर्य प्राप्ति करके मद, मोह आदि रागों से मुक्त होने का कथन ), ३.४.४४.८५ ( ऐश्वर्यकारिणी : पद्म के दलों में स्थित १६ शक्तियों में से एक ), लिङ्ग १.९ ( योग में प्राप्त आप्य, तैजस, वायव्य आदि ऐश्वर्यों का वर्णन ), वायु १३ ( योग द्वारा प्राप्त अणिमा, लघिमा आदि ऐश्वर्यों के लक्षणों का वर्णन ), १००.६१ ( ऐश्वर्य संग्रह : पार नामक १२ देवों में से एक ), १०२.९७ ( ८ ऐश्वर्यों का ब्रह्मा से लेकर पिशाच तक आठ स्थानिक देवों से तादात्म्य ), शिव १.१८.४६( ऐश्वर्य के पौरुष तथा अणिमादि सिद्धिदायक होने तथा विषयों के प्राकृत होने का उल्लेख ), ७.२.३८.२३( आप्य, तैजस, मारुत, ऐन्द्र, चान्द्र, प्राजापत्य, ब्राह्म ऐश्वर्यों के अन्तर्गत सिद्धियों के नाम ), स्कन्द १.२.४५.३५ ( नन्दभद्र वैश्य द्वारा ऐश्वर्य के दोष दर्शन व वास्तविक ऐश्वर्य की परिभाषा करना ), ५.२.३८.२२ ( पार्वती द्वारा शिव से वीरक पुत्र के लिए ऐश्वर्य की मांग करना ), ५.३.५६.१२० ( अभय दान से ऐश्वर्य प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.९२.७३ ( अनिरुद्ध में सर्जन ऐश्वर्य, प्रद्युम्न में पोषण ऐश्वर्य, संकर्षण में संहार ऐश्वर्य तथा वासुदेव में वसति व दीव्यति ऐश्वर्य होने का उल्लेख) Aishwarya
ऐषणा लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४ ( नरक की ओर ले जाने वाली राक्षसी ऐषणा का उल्लेख )
ऐहिक शिव ७.२.३२( ऐहिक सिद्धि कर्म का वर्णन )
ओ अग्नि ३४८.३ ( ब्रह्मा हेतु ओ का प्रयोग )
ओघवती भागवत ९.२.१८ ( ओघवान - पुत्री, सुदर्शन - भार्या, वैवस्वत मनु वंश ), मत्स्य २२.७१ ( नदी, श्राद्ध कार्य हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक ),महाभारत शल्य ६२.३९, वामन ४६.४७ ( ओघवती नदी के परित: शिवलिङ्गों की स्थिति का कथन ), ५७.८३ ( ओघवती द्वारा स्कन्द को गण प्रदान करना ), ६२.४० ( ओघवती तट पर उशना का संजीवनी विद्या प्राप्ति हेतु तप ) Oghavatee
ओङ्कार अग्नि
१२४.८ ( ओङ्कार की अ,
उ,
म आदि मात्राओं की महिमा,
मात्राओं
का स्वरों से तादात्म्य ),
३७२.१९ (
ओङ्कार की मात्राओं अ,
उ आदि का वर्णन,
प्रणव
रूपी एकाक्षर मन्त्र के ऋषि,
देवता,
छन्द आदि
का कथन ),
कूर्म २.३१.२०
( प्रणव द्वारा शिव का गुणानुकीर्तन ),
देवीभागवत ७.३६.६ ( प्रणव रूपी धनुष
का माहात्म्य ),
नारद १.१२३.१४
( ओङ्कारेश्वर यात्रा का संक्षिप्त माहात्म्य ),
पद्म
२.८५.२७ (तीर्थयात्रा प्रसंग में
च्यवन ऋषि का ओङ्कारेश्वर तीर्थ में आगमन,
कुञ्जल
शुक व उसके चार पुत्रों द्वारा वर्णित आश्चर्यों का श्रवण ),
६.२२६.१६ ( ओङ्कार में अ विष्णु,
उ श्री तथा म २५ तत्त्वात्मक जीव का रूप
),
भविष्य
१.४.१४ ( ओङ्कार के अ,
उ तथा म रूपी लक्षणों की वेदत्रयी से उत्पत्ति ),
१.१७.७७
(ओङ्कार का गायत्री मन्त्र के साथ शरीर में न्यास का कथन ),
भागवत
१२.६.३७ ( परमेष्ठी ब्रह्मा के नाद
से ओङ्कार की उत्पत्ति,
माहात्म्य का वर्णन,
ओङ्कार
की तीन मात्राओं अ,
उ आदि द्वारा तीन भावों,
तीन
गुणों,
अर्थों व वृत्तियों को धारण करना ),
मत्स्य १३३.३६
( त्रिपुर ध्वंस हेतु निर्मित शिव के रथ में ओङ्कार प्रतोद / चाबुक का रूप ),
मार्कण्डेय ४२
( ओङ्कार माहात्म्य : अ,
उ,
म मात्राओं का भू,
भुव:,
स्व: लोकों से तादात्म्य,
प्रणव
धनुष,
आत्मा शर,
ब्रह्म
लक्ष्य ),
लिङ्ग १.१७.५१
( अ,उ,म के विभिन्न प्रतीकों त्रिदेव,
त्रिवेद,
बीज -
बीजी आदि का वर्णन ),
१.८५.३३ ( ओम
नम: शिवाय मन्त्र की व्याख्या ),
१.८५.४५ ( शिव के ओङ्कार में अकार,
उकार,
मकार तथा
उमा के प्रणव में क्रमश: उकार,
मकार तथा अकार की स्थिति
;
ओङ्कार
के छन्द,
देवता आदि का कथन ),
१.९१.४५ ( ओङ्कार माहात्म्य : चार मात्राओं की विद्युती,
तामसी,
निर्गुणा
व गान्धारी संज्ञा,
ओङ्कार प्राप्ति के लक्षण का कथन ),
वायु ५.३४(
ओम् की निरुक्ति : अवनात् ),
२०.१ (
ओङ्कार माहात्म्य : वैद्युती,
तामसी आदि मात्राओं का वर्णन ),
२६.१५ (
सृष्टि के लिए उन्मुख ब्रह्मा के कण्ठ से एक मात्रा,
द्विमात्रा व त्रिमात्रा वाले ओंकारों का प्रादुर्भाव ),
विष्णुधर्मोत्तर १.४१.९(ओंकार पुरुष,
सावित्री प्रकृति),
शिव १.१०.१५
( शिव द्वारा ब्रह्मा व विष्णु को ओङ्कार के स्वरूप व संक्षिप्त महिमा का कथन ),
१.१७ ( प्रणव
महिमा का वर्णन,
प्रणव के
स्थूल व सूक्ष्म भेदों का वर्णन ),
२.१.८ (
वर्णमाला रूपी ओङ्कार की शिव की देह में स्थिति का वर्णन ),
२.१.११.४५ ( प्रणव की पद्म रूप में
कल्पना ),
४.१८.२२ ( ओङ्कारेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग का माहात्म्य : ओङ्कार
शिव का विन्ध्याचल पर स्थित होना ),
६.२.२१+
( पार्वती द्वारा शिव से प्रणव स्वरूप विषयक प्रश्न : प्रणव की उत्पत्ति,
उच्चारण,
मात्रा,
देवता,
पांच
ब्रह्मों की स्थिति,
कला आदि ),
६.३.११ ( प्रणव उद्धार हेतु निवृत्ति आदि कलाओं का उद्धार,
प्रणव शब्द की निरुक्ति,
अ,उ तथा म का बीज,
योनि व
बीजी से सम्बन्ध,
अकारादि का सद्योजात आदि पांच ब्रह्म रूपी शिव रूपों से
तादात्म्य ),
६.११.२२ (
स्कन्द के प्रणव अर्थ,
प्रणवाक्षर बीज आदि विशेषण ),
६.१४.४०
( प्रणव की पांच ब्रह्मों में स्थिति का कथन ),
६.१६.५९ ( प्रणव की ५ कलाओं की ईशान
आदि शिव से उत्पत्ति का कथन ),
६.१७.१९ (
आत्मतत्त्व अकार,
विद्या उकार तथा शिव तत्त्व मकार होने का कथन
;
देवताओं का कथन ),
७.२.६.२८ ( ओङ्कार में अ,
उ,
म का
तत्त्वार्थ ),
७.२.३५.१ (
ओङ्कार में अ,
उ,
म व नाद का क्रमश: ऋक्,
यजु,
साम व अथर्व से तादात्म्य का कथन ),
स्कन्द १.१.७.३१(
नर्मदा में ओङ्कारेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ),
१.२.५.६८ (
ओङ्कार की अ,
उ आदि मात्राओं के देवता : कौथुम के जड पुत्र द्वारा वर्णित
ओङ्कार का माहात्म्य ),
४.१.३१.३१ (
प्रणव द्वारा ब्रह्मा व क्रतु के समक्ष शिव महिमा का कथन ),
४.१.३३.१६८ (
ओङ्कारेश : शिव शरीर में शिखा का रूप ),
४.२.७३.७६ (ब्रह्मा द्वारा समाधि से
व्युत्थान पर ओङ्कारेश्वर लिङ्ग के दर्शन व स्तुति ),
४.२.७४.७४ ( ओङ्कारेश्वर माहात्म्य
: माधवी द्वारा ओङ्कारेश्वर लिङ्ग की पूजा व लिङ्ग में लीन होना ),
४.२.७९.९४ (
ओङ्कारेश्वर शिव की प्रात: सन्ध्या का स्थान ),
४.२.८८.६२ ( दक्ष यज्ञ में गमन हेतु
सती के रथ में प्रणव का सारथी ),
५.१.३७.१ ( अन्धक का त्रिशूल से
भेदन होने पर ओङ्कार ध्वनि / ओङ्कार शिव का उत्पन्न होना ),
५.२.५२ ( ओङ्कारेश्वर लिङ्ग का
माहात्म्य : शिव से निर्गत ओङ्कार द्वारा देव आदि की सृष्टि,
ओङ्कार
द्वारा परम स्थान प्राप्ति हेतु ओङ्कारेश्वर लिङ्ग की आराधना ),
५.३.२८.१४ ( बाण के त्रिपुर नाश
हेतु शिव रथ में ओंकार का वेद रूपी हयों के लिए प्रतोद / चाबुक बनने का उल्लेख ),
५.३.८५.१४ (
ओंकार क्षेत्र में रेवा की दुर्लभता का उल्लेख ),
महाभारत
शान्ति ३४७.५१(हयग्रीव के संस्कार
के रूप में ओंकार का उल्लेख),
आश्वमेधिक २६.८(
ओङ्कार अक्षर से सर्पों में
दंशन भाव,
असुरों में
दम्भ भाव,
देवों में दान
भाव,
महर्षियों में दम
भाव का प्रादुर्भाव),
लक्ष्मीनारायण १.५६१.१२३ ( इन्द्रद्युम्न राजा के अनुरोध पर
कृष्ण का ओङ्कार नाथ की सन्निधि में स्थित होना ),
२.१७४.१
( क्रथक राजा की राजधानी ओङ्कारेष्टि में बालकृष्ण का आगमन ),
३.७०.२७(
ओङ्कार के अ,
उ,
म की विभिन्न रूपों में व्याख्या ),
४.१०१.१०२ ( कृष्ण व आर्षी - पुत्र ),
कथासरित् १८.५.६२ ( ओङ्कार पीठ का उल्लेख )
द्र. उकार ,
प्रणव
Omkaara/ onkara
Comments on Omkaara/Omkara/Onkar ओज अग्नि ३४६.१० ( काव्य गुणों के अन्तर्गत ओज के ही सारे जगत में पौरुष होने का उल्लेख ), ३४९.४१ ( ओज के शुक्र - वीर्य कर होने का उल्लेख ; ओज के शुक्र से सारतर होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.७३ ( ओजिष्ठ : पृथुक नामक देवगण में से एक ), भविष्य १.१२५.२५ ( ओजस्वी : १४ इन्द्रों में से वर्तमान सातवें इन्द्र का नाम ), भागवत २.३.८ ( ओजस्कामी के लिए मरुतों की आराधना का निर्देश ), २.६.४४ ( लोक में महस्वत्, ओज, सहस्वत्, बलवत्, क्षमावत् आदि परं तत्त्व के रूप होने का उल्लेख ), २.१०.१५ ( विराट् पुरुष के शरीर के आकाश से ओज, सह, बल, प्राण के उत्पन्न होने का उल्लेख ), ३.१५.१० ( काश्यप के ओज से दिति के गर्भ की वृद्धि होने का उल्लेख ), ३.२८.२४ ( सुपर्ण पर आरूढ भगवान की ऊरुओं के ओज निधि होने का उल्लेख ), ६.१२.९ ( ओज, सह, बल, प्राण आदि में काल के ही कारण होने का कथन ), ७.८.९ ( काल के ही ओज, सह, सत्त्व, बल आदि होने का उल्लेख ), ८.६.३३ ( देवों व असुरों द्वारा समुद्र मन्थन के लिए मन्दर गिरि को ओज द्वारा उखाडने का उल्लेख ), ८.१५.२७ ( इन्द्र द्वारा बलि में ओज, सह, बल, तेज के उद्भव का कारण पूछना ), १०.८५.८ ( ओज, सह, बल आदि ईश्वर के स्वरूप होने का उल्लेख ), ११.८.४ ( देह में ओज, सह, बल होते हुए भी अजगर की भांति निश्चेष्ट रहने का निर्देश ), ११.१६.३२ ( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के बलवानों में ओज व सह होने का उल्लेख ), १२.११.१४ ( भगवान की गदा के ओज, सह, बल युक्त मुख्य तत्त्व प्राण? होने का उल्लेख ), मत्स्य ३२.७ ( ओजसा तेजसा - - - -), योगवासिष्ठ ६.२.१३७.२५ ( ओज व तेज में जीव की विशेष रूप से स्थिति का कथन ; जन्तु के हृदय में प्रवेश करके तेज व ओज धातुओं में प्रवेश व उन धातुओं की विशिष्टता ), ६.२.१३८.२ ( ओज धातु को त्यागने पर समस्त इन्द्रिय संविद का बहिर्मुखी होने का उल्लेख ), ६.२.१४५.२३ ( पित्त रस द्वारा जीव की अन्त:पूर्ति होने पर अणुमात्रात्मक ओज को जानने का उल्लेख ), ६.२.१४५.३४ ( देह के रसों से रिक्त होने व जीव के वायु से पूर्ण होने पर अणुमात्रात्मक ओज को जानने का उल्लेख ), वामन ४१.६ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ओजस तीर्थ का माहात्म्य : कार्तिकेय के अभिषेक का स्थान, ओजस तीर्थ में श्राद्ध का महत्व ), ९०.१७ ( ओजस तीर्थ में विष्णु का शम्भु व अनघ नाम से वास ), विष्णु ४.१४.९( ओजवाह : श्वफल्क के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ७.३.५९ ( महौजस तीर्थ का माहात्म्य : इन्द्र को तेज की प्राप्ति ), महाभारत वन ४१.३८ ( कुबेर द्वारा अर्जुन को प्रदत्त अन्तर्धान अस्त्र के ओज, तेज व द्युतिकर / द्युतिहर होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१६१.७ ( ओजस्वती नदी के इडा का रूप होने का उल्लेख ), ३.१६.५० ( रुद्र ओज से उत्पन्न पौण्ड्रक महिष के यम का वाहन होने का उल्लेख ), ३.३५.५८ ( ओजस्वती तट पर बृहद्धर्म नृप के राजसूय यज्ञ का वृत्तान्त ), ४.३१.१ ( ओजस्वती तट पर कालञ्जर ग्राम में गङ्गाञ्जनी कटकर्त्री द्वारा हरि भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति ) Oja
ओढ्र स्कन्द २.२.११.११८ ( उत्कल देश का नाम ; इन्द्रद्युम्न राजा के ओढ्र नरेश से मिलन का वर्णन )
ओण्ड ब्रह्म १.२६.१ ( ओण्ड देश का माहात्म्य : कोणादित्य का स्थान )
ओदन गरुड १.१३०.६ ( अनोदन सप्तमी व्रत ), भविष्य १.५७.२०( विश्वेदेवों हेतु ओदन बलि का उल्लेख ), मत्स्य ५१.८ ( ब्रह्मोदन अग्नि : भरत अग्नि का नाम ), ९३.१९ ( नवग्रहों के लिए विशिष्ट ओदन ), स्कन्द १.२.१३.१६६ ( शतरुद्रिय प्रसंग में तार्क्ष्य द्वारा ओदन लिङ्ग की हर्यक्ष नाम से आराधना ), लक्ष्मीनारायण २.१६०.७१ ( वरुण के लिए नवनीत ओदन व वायु के लिए यवौदन की बलि ), द्र. शुद्धोदन Odana
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