PURAANIC SUBJECT INDEX (From Nala to Nyuuha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
|
Puraanic contexts of words like Neelalohita, Nriga, Nritta, Nrisimha etc. are given here. नीलमाधव ब्रह्म १.४३.७४(यम द्वारा नीलमाधव / इन्द्रनील की मूर्ति का आच्छादन )
नीलरत्न पद्म ५.६७.४०(अधिरम्या - पति )
नीललोहित ब्रह्माण्ड १.२.१० (नीललोहित की महादेव से उत्पत्ति, भव, शर्व आदि ८ नाम प्राप्ति, नीललोहित का वास स्थान), मत्स्य ४७.१२७(शुक्र द्वारा नीललोहित की ३०० नामों से स्तुति), २९०.३(३० कल्पों में से दूसरे कल्प का नाम), लिङ्ग १.४१.२५ (नील लोहित शिव की उत्पत्ति), १.५०.५ (नीललोहित का करञ्ज पर्वत पर वास), स्कन्द ५.१.२.२८ (रुद्र, ब्रह्मा के ललाट के स्वेद से उत्पत्ति का वृत्तान्त ), ७.१.१०५.४५ (द्वितीय कल्प का नाम ) neelalohita
नीलवासा स्कन्द ७.४.१७.२५(कृष्ण के पश्चिम दिशा के द्वारपालों में से एक )
नीलवृष पद्म ६.३२.२२(नील वृष के लक्षणों का कथन )
नीला गरुड ३.१९.६९(कुम्भक-पुत्री नीला द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति, अन्य जन्म), ब्रह्माण्ड २.३.७.१४७(कपिल यक्ष व केशिनी - पुत्र, आलम्बेय - भार्या, नैला नामक क्षुद्र राक्षसों आदि की माता), वायु ६९.१७८/२.८.१७२(वही) neelaa
नीलिनी मत्स्य ४९.४४(अजमीढ की ३ रानियों में से एक), वायु ९९.१९४/२.३७.१८९(अजमीढ - पत्नी, नील -माता )
नीलोत्पल लिङ्ग (नीलोत्पल पर अम्बिका की स्थिति का उल्लेख), वायु ४५.१००(नीलोत्पला : ऋक्ष पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक )
नीहार ब्रह्माण्ड १.२.२२.५२ (दिग्गजों के मुख से नि:सृत शीकर का नाम )
नूपा ब्रह्माण्ड १.२.१६.२८(पारियात्र पर्वत से नि:सृत कईं पुण्य नदियों में से एक )
नूपुर गणेश २.९०.१३ (नूपुर दैत्य का नृत्यरत गणेश के नूपुरों में प्रवेश , गणेश द्वारा वध), स्कन्द १.१.२२.५(शिव द्वारा शंखक व पद्मक नागों का नूपुर रूप में धारण का उल्लेख), ३.१.९.३३(अशोकदत्त द्वारा श्मशान में देवी से एक नूपुर प्राप्त करने व पुन: दूसरा नूपुर प्राप्त करने का वृत्तान्त), ५.२.४७ (नूपुरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : नूपुर गण द्वारा उर्वशी के नृत्य में विघ्न पर कुबेर का शाप, लिङ्ग की स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.३८५.५३(विकुण्ठा द्वारा नूपुर प्रदान), कथासरित् ५.२.१५२(अशोकदत्त द्वारा श्मशान में देवी से एक नूपुर प्राप्त करने तथा पुन: दूसरा नूपुर प्राप्त करने का वृत्तान्त ) noopura/nuupura/ nupur
नृकेसरी विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.४(मद्र देश में नृकेसरी की पूजा का निर्देश )
नृग अग्नि २७७.७ (महामना व नृगा - पुत्र, नरा व कृमि - पति), ब्रह्माण्ड १.२.३८.३०(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), २.३.७४.१९(उशीनर व नृगा - पुत्र), भागवत ९.१.१२(श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक), ९.२.१७ (नृग वंश का वर्णन ; सुमति - पिता), १०.६४ (शाप से नृग को कृकलास योनि की प्राप्ति, कृष्ण द्वारा कृकलास रूपी नृग का कूप से उद्धार), मत्स्य ४८.१८(उशीनर व भृशा - पुत्र), वराह ४७ (द्वादशी देवी द्वारा नृग की व्याधों से रक्षा, नृग का वामदेव से संवाद), विष्णु ३.१.३३(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), ४.१.७(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), ४.१८.९(उशीनर के ५ पुत्रों में से एक), स्कन्द २.७.११.१३(नृग - पुत्र कीर्तिमान् द्वारा वसिष्ठ से वैशाख मास धर्म का श्रवण व पालन), ६.१७७.५२ (नृग द्वारा कूप में बालुकामय यज्ञ द्वारा पूजा), ७.४.१० (नृग तीर्थ का माहात्म्य , गौ के पुन: दान के कारण ब्राह्मणों का नृग को शाप, कृष्ण द्वारा उद्धार की कथा), वा.रामायण ७.५३ (राजा नृग द्वारा दान की हुई गौ का पुन: दान करने से कृकलास बनने की कथा), ७.५४(नृग द्वारा पुत्र वसु को राज्य देकर विशेष प्रकार से निर्मित गर्त्त में शाप भोगने का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.२२२(नृग द्वारा गौतम व सोमशर्मा विप्रों को गोदान की सार्वत्रिक कथा), १.५४५.२२(नृग तीर्थ के संदर्भ में नृग राजा के शरीर से निर्गत एकादशी व द्वादशी तिथियों द्वारा दस्युओं के नाश का वृत्तान्त ) nriga
नृगा ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८(उशीनर की ५ रानियों में से एक, नृग - माता )
नृत्त भविष्य १.२४ (स्त्रीपुरुष के सामुद्रिक लक्षणों के अनुसार फल), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४.१६(मधु - कैटभ दैत्यों के हनन हेतु निर्मित नृत्त शास्त्र को विष्णु द्वारा ब्रह्मा को देने का कथन), ३.३५+ (नृत्त सूत्र व चित्र सूत्र के अनुसार देह के विभिन्न अङ्गों के आयामों का वर्णन ) nritta
नृत्य अग्नि ३४१ (नृत्य में आङ्गिक कर्म का वर्णन), गणेश २.९०(गणेश द्वारा नृत्य काल में नूपुर दैत्य का वध), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४ (नृत्य का माहात्म्य), स्कन्द ६.२५४ (पार्वती की तुष्टि हेतु शिव द्वारा ताण्डव नृत्य), ७.१.२७० (हस्त से शाक रस स्रवण पर मङ्कि ऋषि का नृत्य, ब्रह्माण्ड का कम्पित होना), योगवासिष्ठ १.१७.८३ (तृष्णा की नर्तकी से उपमा), ६.१.३७ (नियति का नृत्य ) ; द्र. ताण्डवनृत्य nritya
नृदेव मत्स्य १४४.५९(कलियुग में प्रमति नामक विष्णु अवतार के पिता नृदेव का उल्लेख )
नृप अग्नि १२१.४२ (नृप दर्शन हेतु नक्षत्र विचार), भविष्य १.२७ (नृप के सामुद्रिक लक्षणों का वर्णन), ३.२.२९.४(धर्म व मख के रक्षक की नृपति संज्ञा), शिव ५.६.४१(नरक प्राप्त कराने वाले नृप के अनुचित कर्मों का कथन), २.१२७.२२(बालकृष्ण व राजा शिबि संवाद के अन्तर्गत नृप के कर्तव्यों का वर्णन ) nripa
नृपञ्जय भागवत ९.२२.४२(मेधावी - पुत्र, दूर्व - पिता), मत्स्य ४९.७९(सुनीथ - पुत्र, विरथ - पिता), वायु ९९.१९३/२.३७.१८८(सुवीर - पुत्र, वीररथ - पिता )
नृम्णा भागवत ५.२०.४(प्लक्ष द्वीप की ७ मुख्य नदियों में से एक )
नृशंस महाभारत उद्योग ४३.१९(१३ प्रकार के नृशंसों के नाम), ४५.३(नृशंसधर्मा ६ प्रकार के मनुष्यों के दोष), ४५.४(७ पापशील नृशंसों के नाम), लक्ष्मीनारायण २.२१८.३७(नृशंस मनुष्यों के लक्षणों का कथन ) nrishamsa/ nrishansa
नृषङ्गु वा.रामायण ७.१.४(पश्चिम दिशा में निवास करने वाले ऋषियों में से एक )
नृसिंह अग्नि
३१.३२(नृसिंह से वृद्ध,
बाल व युवा ग्रहों को दग्ध करने की प्रार्थना -
वृद्धाश्च ये ग्रहाः केचिद्ये च बालग्रहाः क्वचित् ।नरसिंहस्य ते दृष्ट्या दग्धा ये
चापि यौवने ॥),
६३.४ (नृसिंह
विद्या मन्त्र -
ओं क्षौं नरसिंह उग्ररूप ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल स्वाहा ॥),
३४८.१३(एकाक्षर कोश के अन्तर्गत क्षो द्वारा नृसिंह का
निरूपण),
कूर्म
१.१६.५४
(हिरण्यकशिपु की कथा का रूप भेद -
संचिन्त्य मनसा देवः सर्वज्ञानमयोऽमलः ।
नरस्यार्धतनुं कृत्वा सिंहस्यार्धतनुं तथा ॥),
गरुड १.२२३ (घोर मातृकाओं के शमन हेतु नृसिंह का प्राकट्य,
शिव द्वारा नृसिंह की स्तुति),
३.२४.६७(वेंकटाद्रि
पर नृसिंह की जल रूप में स्थिति -
व्याप्तो हरिश्चेत्कथमत्र वै सखे न दृश्यते जलरूपी नृसिंहः ।
स एवमुक्तो दानवानां सुतैश्च तुष्टाव विष्णुं परमादरेण ॥ ), ३.२९.६१(पान काल में नृसिंह
के स्मरण का निर्देश -
सुपानकस्यैव च पानकाले सम्यक्स्मरेन्नारसिंहाख्यविष्णुम् ।
गङ्गामृतस्यैव च पानकाले गङ्गातातं संस्मरेद्विष्णुमेव ॥),
३.२९.६७(सुनीति
काल में नृसिंह के ध्यान का निर्देश -
सुनीतिकाले संस्मरेन्नारसिंहं नारायणं संस्मरेत्सर्वदापि ॥),
गर्ग १.१६.२४(नृसिंह
की शक्ति रमा का उल्लेख -
त्वं नारसिंहोऽसि रमा तदेयं
नारायणस्त्वं च नरेण युक्तः ।),
देवीभागवत ८.९ (हरिवर्ष में प्रह्लाद द्वारा आराध्य देव),
नारद १.६६.९८(नृसिंह
की शक्ति विद्युता का उल्लेख -
विमलो धारया युक्तो नृसिंहो विद्युता युतः।),
१.७१
(नृसिंह का नृहरि से साम्य
;
नृसिंह यन्त्र का कथन
,
नृसिंह
मन्त्र उपासना,
नृसिंह न्यास आदि का वर्णन),
१.१२३.८ (नृसिंह चतुर्दशी व्रत की
विधि -
राधशुक्लचतुर्दश्यां श्रीनृसिंहव्रतं चरेत् ।।),
२.५५.८१
(नृसिंह की महिमा व पूजा विधि -
कः शक्नोति गुणान्वक्तुं समस्तांस्तस्य सुव्रते ॥
सिंहार्द्धकृतदेहस्य प्रवक्ष्यामि समासतः ॥),
पद्म १.३०.६ (नृसिंह का जनलोक में वास),
६.१७४
(नृसिंह तीर्थ का माहात्म्य,
नृसिंह चतुर्दशी व्रत,
नृसिंह
का हारीत व लीलावती - पुत्र बनना,
नृसिंह द्वारा प्रह्लाद के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन),
६.२३८
(नृसिंह अवतार की कथा),
६.२३८.१००
(नृसिंह शरीर के अङ्गों में विश्व की स्थिति),
ब्रह्म
१.५५ (नृसिंह पूजा,
नृसिंह दर्शन का माहात्म्य),
२.९३.३० (नृसिंह से अङ्गुलि की
रक्षा की प्रार्थना -
बाहू रक्षतु वाराहः पृष्ठं रक्षतु कूर्मराट्।
हृदयं रक्षतात्कृष्णो ह्यङ्गुली रक्षतान्मृगः।।),
२.९३.३०(
नृसिंह से अङ्गुलि की रक्षा की प्रार्थना
-
बाहू रक्षतु वाराहः पृष्ठं रक्षतु कूर्मराट्। हृदयं रक्षतात्कृष्णो
ह्यङ्गुली रक्षतान्मृगः।।
),
ब्रह्मवैवर्त्त
३.३१.४४ (नृसिंह से जल,
स्थल व अन्तरिक्ष में रक्षा की प्रार्थना -
सदैव माधवः पातु बलिहारी महाबलः ।।जले स्थले चान्तरिक्षे नृसिंहः पातु मां सदा ।।),
४.१२.२३ (नृसिंह से हस्तों की
रक्षा की प्रार्थना -
हस्तयुग्मं नृसिंहश्च पातु सर्वत्र संकटे ।।
पादयुग्मं वराहश्च पातु ते कमलोद्भवः ।।),
ब्रह्माण्ड
२.३.३३.२६(नृसिंह से जल,
स्थल व अन्तरिक्ष में रक्षा की प्रार्थना -
जले स्थले चान्तरिक्षे नृसिंहः पातु मां सदा ।
स्वप्ने जागरणे चैव पातु मां माधवः स्वयम् ॥),
भागवत
२.७.१४(अवतारों की महिमा के संदर्भ
में नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु को ऊरुओं पर गिराकर नख से विदारण करने का कथन),
५.१८.७
(हरिवर्ष में प्रह्लाद द्वारा नृसिंह की उपासना),
६.८.१४(नृसिंह से दुर्ग आदि में
रक्षा की प्रार्थना),
६.८.३४(नृसिंह से दिशाओं - विदिशाओं
में रक्षा की प्रार्थना),
७.८(नृसिंह का प्रादुर्भाव,
हिरण्यकशिपु का वध,
देवों द्वारा नृसिंह की स्तुति),
७.९(प्रह्लाद
द्वारा नृसिंह की स्तुति),
मत्स्य १६१.३७(नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु की सभा के अवलोकन
का वर्णन),
१६२(प्रह्लाद द्वारा नृसिंह वपु में ब्रह्माण्ड के देवताओं
का दर्शन,
हिरण्यकशिपु द्वारा नृसिंह पर अस्त्रों से प्रहार),
१६३.९३
(नृसिंह द्वारा नखों व ओंकार की सहायता से हिरण्यकशिपु का वध,
वध के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा नृसिंह की स्तुति -
समुत्पत्य ततस्तीक्ष्णैर्मृगेन्द्रेण महानखैः ।।
तदोङ्कारसहायेन विदार्य निहतो युधि।),
१७९.४४(घोर
मातृकाओं से जगत की रक्षा हेतु शिव द्वारा नृसिंह की आराधना,
नृसिंह
द्वारा ३२ मातृकाओं की सृष्टि कर घोर मातृकाओं को शान्त करने का वृत्तान्त -
दैत्येन्द्रवक्षोरुधिर चर्चिताग्र महानखम्।
विद्युज्जिह्वं महादंष्ट्रं स्फुरत्केसरकण्टकम् ।।),
१७९.७१(नृसिंह
भैरवी : नृसिंह द्वारा अपने अङ्गों से सृष्ट ३२ मातृकाओं में से एक -
अजिता सूक्ष्महृदया वृद्धा वेशाश्म दंशना।नृसिंहभैरवा बिल्वा गरुत्महृदया जया ।।),
२६०.३१(नृसिंह
की प्रतिमा का रूप -
नारसिंहन्तु कर्तव्यं भुजाष्टकसमन्वितम् ।।
रौद्रं सिंहासनं तद्वत् विदारितमुखेक्षणम्।),
लिङ्ग १.९५(हिरण्यकशिपु वध के पश्चात् देवों द्वारा नृसिंह
की स्तुति),
१.९६ (वीरभद्र द्वारा नृसिंह के घोर रूप का निग्रह),
वराह ४२ (नृसिंह का न्यास व नृसिंह व्रत),
वामन ९०.५ (कृतशौच तीर्थ में विष्णु का नृसिंह नाम से वास),
विष्णु १.१७(हिरण्यकशिपु-
प्रह्लाद के आख्यान का आरम्भ),
१.२०.३२(हिरण्यकशिपु द्वारा
प्रह्लाद को दी गई यातनाओं के विस्तृत वर्णन में नृसिंह का उल्लेख मात्र),
५.५.१६(रक्षा
कवच के संदर्भ में नृसिंह से सर्वत्र रक्षा की प्रार्थना),
विष्णुधर्मोत्तर १.२२६ (रौद्र मातृकाओं की शान्ति के लिए नृसिंह द्वारा मातृकाओं की
सृष्टि),
३.७८
(नृसिंह की मूर्ति का रूप -
हिरण्यकशिपुर्दैत्यस्तमज्ञानं विदुर्बुधाः ।।सङ्कर्षणात्मा भगवानज्ञानस्य विनाशनः
।।..),
३.११९.१२
(नृसिंह की भय से मुक्ति हेतु पूजा -
पूजयेन्नरसिंहं तु सर्वबाधा विनाशनम् ।।
यथेष्टरूपं धर्मज्ञ सर्वकार्येषु चार्चयेत् ।।),
३.३५४ (नृसिंह का शिव लिङ्ग से
प्राकट्य,
विश्वक्सेन की रक्षा -
लिङ्गं भित्त्वा ततो देवो नरसिंहवपुर्धरः ।।
समुत्थाय ततः क्रोधाद् ग्रामस्वामिकुमारकम् ।।),
शिव ३.११-३.१२ (भीषण ज्वालाओं की शान्ति हेतु शरभ द्वारा नृसिंह का शिर
छेदन -
कण्ठे कालो महाबाहुश्चतुष्पाद्वह्निसन्निभः ।।),
स्कन्द २.२.४.२४(पुरुषोत्तम
क्षेत्र में नृसिंह का माहात्म्य),
२.२.१५.१५(इन्द्रद्युम्न द्वारा
पुरुषोत्तम क्षेत्र में नृसिंह की भयानक उग्र मूर्ति का दर्शन,
नृसिंह
का माहात्म्य),
२.२.१६ (नारद
व इन्द्रद्युम्न द्वारा नृसिंह मूर्ति हेतु प्रासाद की स्थापना का उद्योग,
इन्द्रद्युम्न द्वारा स्तुति,
नृसिंह
का माहात्म्य),
२.२.२८ (नृसिंह का प्राकट्य,
ब्रह्मा
द्वारा स्तुति),
२.२.२८.४४
(सामवेद का स्वरूप
-
ऋग्वेदरूपी हलधृक्सामवेदो नृकेसरी ।।
यजुर्मूर्त्तिस्त्वियं भद्रा चक्रमाथर्वणं स्मृतम् ।।),
२.२.३०.७९
(नृसिंह से आग्नेय दिशा की रक्षा की प्रार्थना -
आग्नेय्यां नरसिंहस्तु नैर्ऋत्यां मधुसूदनः ।। ),
२.३.४ (बदरी क्षेत्र में शिला),
४.२.५८.५६
(विदार नरसिंह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : पापों का विदारण),
४.२.६१.१८९
(महाबल नृसिंह,
प्रचण्ड नृसिंह,
गिरि
नृसिंह आदि विष्णु मूर्तियों का संक्षिप्त माहात्म्य),
४.२.६१.२२८ (नृसिंह की मूर्ति के
लक्षण -
नृसिंहः शंखचक्राभ्यां पद्मेन गदयोह्यते ।।),
४.२.७०.३१
(निर्वाण नृसिंह के समीप नारसिंही देवी की पूजा का निर्देश -
निर्वाणनरसिंहस्य समीपे मोक्षकांक्षिभिः ।।
नारसिंही समर्च्या च समुद्यच्चक्र रम्यदोः ।।),
४.२.८३.९९ (नृसिंह तीर्थ का
संक्षिप्त माहात्म्य -
ततो नृसिंहतीर्थं च महाभयनिवारणम् ।।
कालादपि कुतस्तत्र स्नात्वा परिबिभेति च ।।),
४.२.८४.२३
(विदार नरसिंह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अघ नाश),
४.२.८४.४८ (सर्व नृसिंह तीर्थ का
संक्षिप्त माहात्म्य : अघ जनित भय से मुक्ति),
५.१.६६ (महाकाल वन में नृसिंह तीर्थ
का माहात्म्य -
सभामध्ये तदा व्यास हरिणाऽमित्रघातिना ।।
करेणैकप्रहारेण हिर ण्यकशिपुर्हतः ।।),
५.३.९०.५९(नृसिंह द्वारा तालमेघ दैत्य पर नारसिंह बाण से
प्रहार,
तालमेघ द्वारा रथ को त्यागने का उल्लेख),
७.१.१०५.४९(१६वें कल्प का नाम),
हरिवंश १.४१.३९ (नृसिंह अवतार के संदर्भ में हिरण्यकशिपु का
वृत्तान्त),
३.४१.४२(नृसिंह का हिरण्यकशिपु की सभा में गमन व सभा का
अवलोकन),
३.४२(नृसिंह द्वारा अप्सराओं व दैत्यों से सेवित हिरण्यकशिपु
का अवलोकन),
३.४३
(प्रह्लाद द्वारा नृसिंह विग्रह में त्रिलोकी के दर्शन),
३.४४(दैत्यों व हिरण्यकशिपु द्वारा नृसिंह पर विभिन्न अस्त्रों का प्रहार),
३.४५(दैत्यों तथा हिरण्यकशिपु द्वारा नृसिंह पर किए गए प्रहारों की निष्फलता),
३.४७
(देवों के अनुरोध पर नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध,
ब्रह्मा
द्वारा नृसिंह की स्तुति),
लक्ष्मीनारायण
१.१४० (नृसिंह का आविर्भाव,
प्रह्लाद द्वारा विराट रूप के दर्शन,
देवों द्वारा स्तुति -
वरं चायं हरिः कृष्णो नृहरिः समजायत ।।मूर्तेर्द्राक्सुमहत्तेजोऽव्याप्नोदाब्रह्मलोकगम्
।),
१.२६५.१३(नृसिंह
की शक्ति क्षेमङ्करी का उल्लेख -
अधोक्षजस्त्रयीयुक्तः क्षेमंकर्या नृकेसरी ।),
२.२२.२२(अरण्य
में नृसिंह तीर्थ की श्रेष्ठता का उल्लेख -
पर्वते बदरीतीर्थं चारण्ये नारसिंहकम् ।),
२.२३९.६९(राजा
रोल की सेना के पशुओं के कारण उद्यान के नष्ट होने पर रोल के आराध्य देव नृसिंह का
अदृश्य होना,
उद्यानादि की स्थापना पर पुन: प्राकट्य -
राजा शुशोच मनसाऽपराद्धं त्वत्र वै मया ।।नान्यथा प्रतिमालोपो भवेदेवं न संशयः ।),
३.१७०.१६(एकविंश
धाम के नारसिंह धाम होने का उल्लेख -
विंशं हंसाश्रितं धामैकविंशं नारसिंहकम् ।
आर्षभं द्वाविंशकं च त्रयोविंशं तु वामनम् ।। )
;
द्र. नरसिंह
nrisimha
|