PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Nala to Nyuuha )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

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Nala - Nalini( words like  Nala, Nalakuubara, Nalini etc.)

Nava - Naaga ( Nava, Navaneeta / butter, Navami / 9th day, Navaratha, Navaraatra, Nahusha, Naaka, Naaga / serpent  etc.)

Naaga - Naagamati ( Naaga / serpent etc.)

Naagamati - Naabhi  ( Naagara, Naagavati, Naagaveethi, Naataka / play, Naadi / pulse, Naadijangha, Naatha, Naada, Naapita / barber, Naabhaaga, Naabhi / center etc. )

Naama - Naarada (Naama / name, Naarada etc.)

Naarada - Naaraayana (  Naarada - Parvata, Naaraayana etc.)

Naaraayani - Nikshubhaa ( Naaraayani, Naarikela / coconut, Naaree / Nari / lady, Naasatya, Naastika / atheist, Nikumbha, Nikshubhaa  etc.)

Nigada - Nimi  ( Nigama, Nitya-karma / daily ablutions, Nidhaagha, Nidra / sleep, Nidhi / wealth, Nimi etc.)

Nimi - Nirukta ( Nimi, Nimesha, Nimba, Niyati / providence, Niyama / law, Niranjana, Nirukta / etymology etc. )

 Nirodha - Nivritti ( Nirriti, Nirvaana / Nirvana, Nivaatakavacha, Nivritti etc. )

Nivesha - Neeti  (Nishaa / night, Nishaakara, Nishumbha, Nishadha, Nishaada, Neeti / policy etc. )

Neepa - Neelapataakaa (  Neepa, Neeraajana, Neela, Neelakantha etc.)

Neelamaadhava - Nrisimha ( Neelalohita, Nriga, Nritta, Nrisimha etc.)

Nrihara - Nairrita ( Nrisimha, Netra / eye, Nepaala, Nemi / circumference, Neshtaa, Naimishaaranya, Nairrita etc.)

Naila - Nyaaya ( Naivedya, Naishadha, Naukaa / boat, Nyagrodha, Nyaaya etc.)

Nyaasa - Nyuuha ( Nyaasa etc. )

 

 

Puraanic contexts of words like Naama / name, Naarada etc. are given here.

नाम अग्नि ३०५ (विष्णु के नाम), नारद १.५६.३२६(नामकरण संस्कार काल का विचार), पद्म ४.२५.३ (भगवन्नाम माहात्म्य), ५.८०(कलियुग में नाम का माहात्म्य), ५.११२ (शिव नाम माहात्म्य नामक अध्याय?), ६.७१ (नाम उच्चारण का माहात्म्य), ६.७१.११९(विष्णु सहस्रनाम) ६.२५४ (राम के १०८ नाम), ७.१५ (राम नाम का माहात्म्य : जीवन्ती वेश्या का उद्धार), ७.१७ (दान्त - प्रोक्त विष्णु के १०८ नाम), ब्रह्म १.३१ (सूर्य के १०८ नाम), ब्रह्माण्ड ३.४.१७.१७ (ललिता के नाम), ३.४.१८.१४(ललिता के २५ नाम), ३.४.१९.१९ (नामाकर्षिणी : चन्द्रमा की १६ गुप्त कलाओं में से एक), ३.४.३४ (१६ आवरणों में स्थित रुद्रों के नाम), ३.४.१९.३२(शक्ति के नाम), ३.४.३६.७० (त्रैलोक्यमोहन चक्र के संदर्भ में चन्द्रमा की १६ गुप्त कलाओं में से एक नामाकर्षिणी का उल्लेख), भविष्य १.३.६(नामकरण संस्कार की विधि का कथन), १.७१ (सूर्य के नाम),१.१६४.८६ (मास अनुसार सूर्य के नाम), १.२०९ (मास अनुसार सूर्य के नाम), भागवत २.२.२(मायामय वासना से आवृत्त होने के कारण शब्द ब्रह्म का नाम द्वारा ध्यान करने पर भी अर्थ न जानने का कथन), मत्स्य १३.२६ (पार्वती के नाम), वराह १७४(त्रिवेणी  : महानाम ब्राह्मण व पांच प्रेतों के संवाद की कथा), विष्णु २.६.३९(पाप करने से उत्पन्न अनुताप के प्रायश्चित्त के लिए कृष्ण के स्मरण आदि का कथन), ३.१०.८(बालक के नामकरण हेतु नियम), शिव १.२३ (शिव नाम व माहात्म्य), ६.९ (शिव अष्टक, अर्थ सहित), स्कन्द १.३.१.९ (शोणाद्रीश्वर के नाम), ५.१.२३.२७ (महाकाल की यात्रा में विधीश लिङ्ग के समक्ष नाम, स्थान व गोत्र कीर्तन का निर्देश), लक्ष्मीनारायण  १.५४४.४३ (सौराष्ट्र में सूर्य के १०८ नाम)२.६.३ (श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार में कृष्ण के विभिन्न नामकरणों की व्याख्या, व्याघ्र रूप धारी साण असुर का उपद्रव , कृष्ण द्वारा सुदर्शन से साण का वध), ३.१२१.१(ललिता नामक महालक्ष्मी के १०८ नामों का उल्लेख ) ; द्र. अतिनामा, भद्रनामा, महानाम, हिरण्यनामा  naama/ nama

 

नामदेव भविष्य ३.४.१६ (रामानन्द - शिष्य, वरुण का अंश )

 

नार ब्रह्माण्ड १.२.६.५७ (नार शब्द की निरुक्ति ) ; द्र. रन्तिनार

 

नारद गणेश १.२९.१० (नारद द्वारा रुक्माङ्गद को कुष्ठ से मुक्ति के उपाय का कथन), १.५४.१३ (पति शोक से पीडित इन्दुमती के पास नारद का आगमन - क्वापि तिष्ठति ते भर्ता न तं शोचितुमर्हसि ।), गरुड ३.७.३२(नारद द्वारा हरि स्तुति - यज्जिह्वाग्रे हरिनामैव नास्ति स ब्राह्मणो नैव स एव गोखरः ।), गर्ग १.१.१६+ (नारद द्वारा बहुलाश्व जनक को कृष्ण अवतार सम्बन्धी उपदेश - अंशांशोंऽशस्तथावेशः कलापूर्णः प्रकथ्यते ।….अंशांशस्तु मरीच्यादिरंशा ब्रह्मादयस्तथा । कलाः कपिलकूर्माद्या आवेशा भार्गवादयः ॥), ५.२१ (नारद -राधा संवाद में दोनों की  देह का द्रवीभूत होना, नारद के दासी - पुत्र व ब्रह्मा - पुत्र बनने का प्रसंग, वेद नगर में रागों का अङ्ग भङ्ग देखकर सरस्वती से संगीत शिक्षा प्राप्ति हेतु तप), देवीभागवत ६.२+ (सञ्जय - पुत्री दमयन्ती पर आसक्ति से पर्वत मुनि के शाप से नारद का वानर मुख होना, पर्वत मुनि को प्रतिशाप, पुन: सुन्दर मुख की प्राप्ति), ६.२८ (माया दर्शन हेतु नारद का स्त्री बनना, तालध्वज की पत्नी रूप में परिवार मरण का दर्शन, पुन: पुरुष बनना, विष्णु द्वारा महामाया के महत्त्व का वर्णन), ७.१ (ब्रह्मा - पुत्र, दक्ष शाप से वीरिणी - पुत्र बनना), ८.१.७+ + (नारद द्वारा नारायण से जगत्तत्त्व, माया नाश, प्रकाश के उदय आदि के विषय में पृच्छा), ८.११ (नारद द्वारा भारतवर्ष में आदि पुरुष की आराधना, नारद द्वारा नारायण हेतु पठित स्तोत्र), ९.१++ (नारद द्वारा नारायण से दुर्गा, राधा, लक्ष्मी आदि पञ्चविध प्रकृति के आविर्भाव व लक्षणों आदि के बारे में पृच्छा), १०.१++ (नारद द्वारा नारायण से मन्वन्तरों में देवी के स्वरूपों के विषय में पृच्छा), ११.१++ (नारद द्वारा भक्तों द्वारा देवी को प्रसन्न करने तथा देवी द्वारा भक्तों को प्रसन्न करने के उपाय के विषय में पृच्छा, नारायण द्वारा सदाचार का वर्णन), १२.१++ (नारद द्वारा कठिन सदाचार मार्ग के अतिरिक्त गायत्री न्यास द्वारा देवी प्रसाद प्राप्त करने के विषय में पृच्छा), नारद २.८० (नारद का वृन्दावन में वृन्दा से संवाद, कुब्जा व वृन्दावन माहात्म्य श्रवण), पद्म १.४.११४ (नारद द्वारा पुरुष सूक्त के पौराणिक रूप से ब्रह्मा की स्तुति, ब्रह्मा द्वारा नारद को वरदान), १.१६.९८ (ब्रह्मा के यज्ञ में नारद के ब्रह्मा ऋत्विज होने का उल्लेख - तत्रोद्गाता मरीचिस्तु ब्रह्मा वै नारदः कृतः), १.३४.१३ (ब्रह्मा के यज्ञ में ब्रह्मा ऋत्विज होने का उल्लेख- ब्रह्माणं नारदं चक्रे ब्राह्मणाच्छंसि गौतमम्), ४.२५.१४ (सनत्कुमार द्वारा नारद को भगवन्नाम से नष्ट होने वाले तथा न होने वाले पापों का वर्णन), ५.७५ (नारद द्वारा स्त्री बनकर वृन्दावन रहस्य का ज्ञान प्राप्त करना), ६.३+ (नारद द्वारा युधिष्ठिर को जालन्धर उपाख्यान का वर्णन), ६.८०.१५ (नारद द्वारा पुण्डरीक को आगम का उपदेश), ६.८८.१४ (जन्म - जन्म में कल्पवृक्ष की प्राप्ति हेतु नारद द्वारा सत्यभामा को तुलापुरुष दान का परामर्श), ६.९०.५+ (नारद द्वारा पृथु को मासों में कार्तिक मास की श्रेष्ठता के सम्बन्ध में शङ्ख असुर द्वारा वेदों के हरण की कथा का वर्णन), ६.९२+ (नारद द्वारा पृथु को कार्तिक स्नान विधि, नियम व उद्यापन आदि का वर्णन), ६.१९३+(भक्ति द्वारा नारद को स्वव्यथा का वर्णन, नारद द्वारा ज्ञान व वैराग्य के उद्धार का उद्योग), ६.१९९.४ (नारद द्वारा राजा शिबि को खाण्डव वन में यूपों की उपस्थिति का कारण बताना), ब्रह्म १.२८.४६ (नारद का मित्र नामक आदित्य से ब्रह्म ध्यान विषयक संवाद), १.१२१ (नारद द्वारा माया दर्शन की इच्छा, सुशीला कन्या बनना, कुल नाश देखना), ब्रह्मवैवर्त्त १.८ (नारद द्वारा पिता ब्रह्मा को शाप), १.१२ (गन्धर्वराज की भार्या से नारद का जन्म), १.१३ (नारद का उपबर्हण नाम व चरित्र वर्णन), १.२० (नारद की ब्रह्मा के कण्ठ से उत्पत्ति), १.२०.१३ (द्रुमिल गोप - पत्नी कलावती द्वारा नारद के वीर्य से पुत्र को जन्म  देने का वृत्तान्त), १.२१.७ (कलावती - पुत्र नारद के नाम की निरुक्ति - ददाति नारं ज्ञानं च बालकेभ्यश्च बालकः ।। जातिस्मरो महाज्ञानी तेनायं नारदाभिधः ।….), १.२१ (वृषली - पुत्र), १.२२.२ (ब्रह्मा के कण्ठ से नारद की उत्पत्ति का उल्लेख), १.२३ (ब्रह्मा द्वारा नारद को सृष्टि की आज्ञा, नारद द्वारा भार्या की निन्दा), २.५२.८ (नारद द्वारा सुयज्ञ नृप से कृतघ्नता दोष का निरूपण - हन्ति यः परकीर्त्तिं च स्वकीर्त्तिं वा नराधमः।। स कृतघ्न इति ख्यातस्तत्फलं च निशामय ।।...), ३.०+ ( नारद का नारायण से संवाद), ४.१२.८ (नारद का सृंजय - कन्या पर मोहित होना, सनत्कुमार द्वारा प्रबोधन), ब्रह्माण्ड १.२.१९.९(प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, नारद व पर्वत की उत्पत्ति का स्थान), १.२.१९.१५(नारद पर्वत के सुखोदय वर्ष का उल्लेख), २.३.७.४(१६  मौनेय देव गन्धर्वों में अन्तिम गन्धर्व - कलिः पञ्चदशस्तेषां नारदश्चैव षोडशः इत्येते देवगन्धर्वा मौनेयाः परिकीर्त्तिताः ॥), २.३.५४.५ (नारद द्वारा सगर को उसके षष्टि सहस्र पुत्रों  के नष्ट होने का समाचार देना), ३.४.४४.९१(नारदा : मूलाधार? की ४ शक्तियों में से एक - नारदा श्रीस्तथा षण्ढाशश्वत्यपि च शक्तयः ।), भविष्य १.७३ (नारद के द्वारका आगमन पर साम्ब द्वारा अविनय प्रदर्शित करना, नारद द्वारा कृष्ण को उनकी स्त्रियों की साम्ब में कामासक्ति का प्रदर्शन कराना), ३.४.९ (नारद की भानुमती से विवाह की इच्छा, रोग प्राप्ति), ४.३ (माया दर्शन के लिए नारद द्वारा स्त्री रूप धारण, विष्णु द्वारा बोध), ४.१३ (नारद द्वारा संजय नृप की पुत्री से विवाह व संजय को सुवर्णष्ठीवी पुत्र प्राप्त करने  का वरदान, पर्वत के शाप से सुवर्णष्ठीवी पुत्र की मृत्यु पर नारद द्वारा यमलोक से सुवर्णष्ठीवी को वापस लाना, नारद व पर्वत का परस्पर शाप दान), भागवत ०.१ (नारद का कलियुग ग्रस्त भक्ति से संवाद), १.५ (दासी - पुत्र, ईश्वर स्वरूप के दर्शन), ४.८ (नारद द्वारा ध्रुव को ध्यान विधि की शिक्षा), ४.२५ (नारद द्वारा प्राचीनबर्हि से पुरञ्जनोपाख्यान का कथन), ४.३१.३ (नारद द्वारा प्रचेताओं को भगवद्भक्ति विषयक उपदेश), ६.५ (नारद द्वारा हर्यश्वों व शबलाश्वों को वैराग्य का उपदेश, दक्ष द्वारा शाप), ६.८.१७ (नारद से सेवापराधों से रक्षा की प्रार्थना - देवर्षिवर्यः पुरुषार्चनान्तरात्कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ), ६.१५.२७ (पुत्र की मृत्यु के शोक से पीडित राजा चित्रकेतु को नारद द्वारा मन्त्रोपनिषद प्रदान करने का कथन), ६.१६.१ (नारद द्वारा चित्रकेतु के मृत पुत्र की जीवात्मा का आवाहन), ६.१६.१८ (नारद द्वारा चित्रकेतु को  हरि विद्या का उपदेश), ७.१ (नारद द्वारा युधिष्ठिर को उपदेश), ७.७.१६(नारद द्वारा गर्भस्थ प्रह्लाद को दिए गए उपदेश का वर्णन), ७.१५.६९ (पूर्व जन्म में उपबर्हण गन्धर्व, शाप से शूद्र बनना), १०.१० (नारद द्वारा कुबेर - पुत्रों को यमलार्जुन होने का शाप), १०.६९ (नारद द्वारा कृष्ण के विभिन्न रूप एक साथ देखना), ११.२ (नारद द्वारा वसुदेव को जनक व नौ योगीश्वरों के संवाद का कथन), १२.११.३४(वैशाख मास में नारद गन्धर्व की सूर्य रथ के साथ स्थिति - नारदः कच्छनीरश्च नयन्त्येते स्म माधवम् ), मत्स्य १२२.११ (शाक द्वीप में नारद दुर्ग शैल का उल्लेख), १२२.२२(नारद वर्ष के अपर नाम कौमार व सुखोदय का उल्लेख), १५४ (नारद द्वारा हिमालय से पार्वती के लक्षण व चिह्नों का कथन), २५२.२(वास्तु शास्त्र के उपदेशक १८ आचार्यों में से एक), लिङ्ग २.३ (नारद द्वारा गानबन्धु उलूक से संगीतशिक्षा की प्राप्ति पर भी तुम्बुरु के समकक्ष न होना, द्वापर में जाम्बवती, सत्या, रुक्मिणी व कृष्ण से गान विद्या की शिक्षा प्राप्त करना), २.५ (नारद द्वारा अम्बरीष - कन्या श्रीमती को प्राप्त करने की चेष्टा, वानर मुख की प्राप्ति), वराह २.४४ (ब्रह्मा द्वारा सृष्ट मरीचि आदि १० ऋषियों में से एक ; मरीचि आदि प्रवृत्ति मार्गी ऋषियों के विपरीत नारद के निवृत्ति मार्गी होने का उल्लेख), २.५९ (नारद द्वारा वेदमाता सावित्री के दर्शन), ३.१ (पूर्व जन्म में सारस्वत नाम, ब्रह्मपार स्तोत्र का जप), ३.२३ (नारद के नाम की निरुक्ति - नारं पानीयमित्युक्तं तं पितॄणां सदा भवान् । ददाति तेन ते नाम नारदेति भविष्यति ।। ), ६६ (नारद द्वारा विष्णु के आश्चर्यमय स्वरूप का वर्णन), १७७.२(नारद द्वारा कृष्ण को उनकी १६००० नारियों की साम्ब पर आसक्ति का समाचार देना), १७७.३२ (नारद द्वारा कुष्ठ नाश के उपाय के रूप में साम्ब को मथुरा में आदित्याराधना का निर्देश), १८७.५८ (नारद द्वारा पुत्र शोक से पीडित निमि को पितरों की शरण में जाने का निर्देश), २०७.४ (नारद - यम संवाद के आरम्भ में यम द्वारा अमरत्व प्राप्ति व नरक से मुक्त करने वाले व्रत, नियम, दान, धर्म, कर्मों का वर्णन), २०८.४+ (नारद द्वारा यम से पतिव्रता माहात्म्य का श्रवण), २१०.२४ (यम द्वारा नारद को कर्मों या पापों के क्षय के उपाय का वर्णन), वामन १+(नारद द्वारा  पुलस्त्य से वामन सम्बन्धी प्रश्न), वायु ४९.८(प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, नारद व पर्वत के जन्म का स्थान), ६५.१४१ (नारद द्वारा हर्यश्वों को प्रजा सृजन से निरत करने पर नारद की दक्ष - सुता व परमेष्ठी से उत्पत्ति का वृत्तान्त - ततो दक्षः सुतां प्रादात् प्रियां वै परमेष्ठिने । तस्मात् स नारदो जज्ञे भूयः शान्तो भयादृषिः ।।), ६९.६४ (प्रजापति के स्खलित वीर्य से नारद की उत्पत्ति), ७०.७९/२.९.७९ (कश्यप से नारद, पर्वत व अरुन्धती के जन्म का उल्लेख - कश्यपान्नारदश्चैव पर्वतोऽरुन्धती तथा।), ८६.४८/२.२४.४८(नारदप्रिय : गान्धार ग्रामों में से एक), १०५.१/२.४३.१+ (नारद - सनत्कुमार संवाद के रूप में गया माहात्म्य का आरम्भ), विष्णुधर्मोत्तर १.११० (नारद का दक्ष शाप से कश्यप - पुत्र बनना), ३.३४३.४ (नारद व मातलि द्वारा इन्द्र से सुमुख नाग के लिए तार्क्ष्य से अभय प्राप्ति का वर प्राप्त करने का कथन), ३.३४९.५५ (नारद का श्वेत द्वीप गमन), ३.३५३ (नारद द्वारा विश्वरूप के दर्शन), शिव २.३. (नारद द्वारा हिमालय व मेना - पुत्री काली / पार्वती के हस्त से भविष्य का कथन), २.४.६.२(नारद विप्र के अजमेध में अज का लोप, नारद द्वारा स्कन्द की सहायता से अज की पुन: प्राप्ति), ७.२.४०.१६ (ब्रह्मा की सभा में नारद व तुम्बुरु की गान स्पर्द्धा, नारद द्वारा तुम्बुरु की समता प्राप्त करने पर स्पर्द्धा की समाप्ति), स्कन्द १.१.२१(नारद का रति से संवाद, शम्बर को रति हरण का परामर्श), १.२.२ (नारद का अर्जुन से संवाद), १.२.४(नारद द्वारा धर्मवर्म को दान भेद का कथन), १.२.१३.१४ (इन्द्रद्युम्न आदि चिरजीवियों द्वारा नारद से भारत में सफला भूमि के विषय में प्रश्न, नारद द्वारा चिरजीवियों को संवर्त्त के पास भेजना, नारद का अग्नि में प्रवेश कर सुरक्षित लौटना), १.२.१३.१४७ (शतरुद्रिय प्रसंग में नारद द्वारा अन्तरिक्ष लिङ्ग की पूजा), १.२.४२ (नारद द्वारा वृद्ध वासुदेव तीर्थ की स्थापना), १.२.५४ (नारद मूर्ति स्थापना, कृष्ण द्वारा प्रशंसा, स्तुति, पूजा, माहात्म्य), २.१.४.५ (नारद द्वारा आकाशराज - सुता पद्मिनी के लक्ष्मी सदृश सामुद्रिक लक्षणों का कथन ), २.२.१० (नारद द्वारा इन्द्रद्युम्न को विष्णु भक्ति का वर्णन), २.२.१६ (नारद द्वारा नृसिंह मूर्ति की स्थापना), २.२.२१ (नारद द्वारा जगन्नाथ मूर्ति प्रतिष्ठार्थ ब्रह्मा को निमन्त्रण, इन्द्रद्युम्न कथा प्रसंग), २.३.३.२० (अग्नि तीर्थ में ५ शिलाओं में से नारद शिला का माहात्म्य : नारद द्वारा तप करके विष्णु का साक्षात्कार व वर प्राप्ति आदि ), ३.२.२३ (नारद का ब्रह्मा के सत्र में नोदक होने का उल्लेख), ४.१.४८.१० (कृष्ण मिलन को उत्सुक नारद को साम्ब द्वारा अभिवादन न करने पर नारद द्वारा कृष्ण से साम्ब की कुचेष्टाओं का कथन, कृष्ण द्वारा साम्ब को शाप आदि), ४.२.८४.१४ (नारद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : ब्रह्म विद्या की प्राप्ति - ततो नारदतीर्थं च ब्रह्मविद्यैककारणम् ।। तत्र स्नानेन मुक्तः स्याद्दृष्ट्वा नारदकेशवम् ।। ), ५.१.४४.५ (नारद द्वारा समुद्र मन्थन में रत देवों व दानवों के बीच कलह का निवारण करना), ५.१.४४.२४ (नारद द्वारा समुद्र मन्थन से उत्पन्न रत्नों का विभिन्न देवों में विभाजन करना - मणिं पद्मां धनुः शंखं विष्णवे नारदो ददौ ।।...), ५.१.५९.२०(सप्तर्षियों द्वारा त्यक्त ऋषि - पत्नियों को दोष निवारण के लिए नारद द्वारा महाकालवन में गया तीर्थ में जाने का निर्देश), ५.१.६३.३३ (नारद का किन्नरोत्तम विशेषण- ववन्दिरे सर्वशस्तु बलिना किंनरोत्तमम्।।), ५.१.६३.२४१ (बलि के यज्ञ में नारद के उद्गाता होने का उल्लेख - उद्गाता नारदश्चैव वसिष्ठश्च सभासदः ।।), ५.२.५७.९ (नारद द्वारा ईश्वर के गण घण्ट को पाप विनाशार्थ महाकालवन में जाने का निर्देश ), ५.३.२६ (नारद द्वारा बाणासुर की स्त्रियों के माध्यम से त्रिपुर में क्षोभ उत्पन्न करना), ५.३.६७.३४(देव - दानव कलह देखकर नारद के हर्षित होने का उल्लेख), ५.३.७८.३ (नारद द्वारा रेवा के उत्तर तट पर तप करके शिव से वरों की प्राप्ति ;नारदेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ६.१७४.४२ (नारद द्वारा बालक पिप्पलाद को उसके जन्म के रहस्य का वर्णन तथा बालक पिप्पलाद को याज्ञवल्क्य को सौंपना ) ६.१८०.३४ (ब्रह्मा के यज्ञ में ब्रह्मा नामक ऋत्विज - ब्रह्मा च नारदो गर्गो ब्राह्मणाच्छंसिरेव च ॥), ७.१.२३.९४ (चन्द्रमा के यज्ञ में ब्रह्मा - तत्रोद्गाता मरीचिस्तु ब्रह्मत्वे नारदः कृतः ॥), ७.१.७५.८ (नारद द्वारा स्थापित कलकलेश्वर लिङ्ग के नाम का कारण : नारद द्वारा कलह हेतु अविद्वान ब्राह्मणों में रत्न प्रक्षेप करना ), ७.१.१५२ (सरस्वती से प्राप्त वीणा के वादन में असफलता पर नारद द्वारा भैरवेश्वर लिङ्ग की स्थापना - तंत्रीभ्यो वाद्यमानाभ्यो ब्राह्मणाः पतिता भुवि ॥ सप्त स्वरास्ते विख्याता मूर्च्छिताः षड्जकादयः ॥), ७.१.३०५ (नारदादित्य का माहात्म्य, नारद द्वारा साम्ब के शाप से जरा की प्राप्ति, जरा निवृत्ति हेतु सूर्य की आराधना), ७.१.३४७ (नारदेश्वरी देवी का माहात्म्य), ७.४.१७.३५ (कलियुग में कृष्ण पूजा के संदर्भ में उत्तर दिशा में पूजनीय गण में से एक - नारदोनाम गन्धर्वो रंभा चैव वराप्सराः ॥ एते पूज्याः प्रयत्नेन प्लक्षोनाम महाद्रुमः ॥), ७.४.२९.१५ (गौतमी नदी द्वारा पाप प्रक्षालनार्थ नारद से उपाय की पृच्छा, शिव के निर्देश पर द्वारका में गोमती में स्नान हेतु जाना, नारद द्वारा द्वारका यात्रा विधि का वर्णन), हरिवंश १.३३.१९(नारद के वरीदास - पुत्र होने का उल्लेख), २.१ (नारद द्वारा कंस को भावी भय की सूचना), २.२२ (नारद द्वारा कंस को विष्णु की महिमा का वर्णन), २.६७.५४ (नारद द्वारा कृष्ण को पारिजात पुष्प की महिमा का वर्णन - सौभाग्यमावहत्येव पूज्यमानोऽपि नित्यशः ।। पुण्यं कर्तुं तदा सृष्टः पारिजातो महाद्रुमः ।), २.६८ (नारद का पारिजात वृक्ष मांगने के लिए कृष्ण का दूत बनकर इन्द्र के पास जाना), २.७१ (नारद द्वारा इन्द्र से कृष्ण की महिमा का कथन), २.७६ (नारद द्वारा कृष्ण से पुण्यक व्रत के प्रतिग्रह की प्राप्ति), २.८६ (नारद द्वारा अन्धक से मन्दार पुष्पों व वन की महिमा का वर्णन), २.१०१+ (नारद द्वारा कृष्ण के प्रभाव का वर्णन), २.११० (नारद द्वारा धन्यता का वर्णन, कृष्ण की परम धन्यता), २.११९ (नारद द्वारा चित्रलेखा को तामसी विद्या का दान), ३.७२ (नारद द्वारा बलि को मोक्ष विंशक स्तोत्र का दान), वा.रामायण १.१ (नारद द्वारा वाल्मीकि को संक्षिप्त राम कथा का वाचन), लक्ष्मीनारायण १.२००.१३ (ब्रह्मा के कण्ठ से नारद की उत्पत्ति, प्रजोत्पादन को अस्वीकार करने पर ब्रह्मा द्वारा नारद को उपबर्हण गन्धर्व बनने का शाप, ५० कन्याओं के पति उपबर्हण गन्धर्व की रम्भा अप्सरा पर आसक्ति, ब्रह्मा द्वारा शूद्र होने का शाप, नारद द्वारा शरीर का त्याग), १.२०१ (उपबर्हण गन्धर्व रूपी नारद की मृत्यु पर प्रधान पत्नी मालावती द्वारा सब देवों का आह्वान), १.२०२ (पत्नी मालावती के आग्रह पर देवों द्वारा उपबर्हण रूपी नारद के शव को जीवित करना, कालान्तर में नारद व मालावती की मृत्यु, जन्मान्तर में मालावती का शूद्र - कन्या रूप में उत्पन्न होकर दक्ष शाप से कश्यप - पुत्र बने नारद के वीर्य से नारद नामक पुत्र उत्पन्न करना, नारद शब्द की निरुक्तियां, शूद्र नारद का मृत्यु पश्चात् पुन: ब्रह्मा के कण्ठ से उत्पन्न होना), १.२०२.११२ ( नारद नाम की निरुक्तियां - तस्य जन्मक्षणे नारं जलं भूमौ ववर्ष ह ।। जन्मकाले ददौ नारं तेनायं नारदः स्मृतः ।), १.२०३.५४ (नारद की पूर्वपत्नी मालावती के सृंजय - पुत्री के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख, ब्रह्मा द्वारा नारद को विवाह का निर्देश), १.२०३.६९ (नारद के एक जन्म में मरीचि - पुत्र होने का उल्लेख, नारद द्वारा वैष्णव गुरु मन्त्र ग्रहण हेतु कैलास पर्वत पर शिव के पास जाना), १.२०५ (नारद का बदरिकाश्रम गमन, नर - नारायण की स्तुति, नर - नारायण द्वारा विवाह का निर्देश), १.२०६.२० (नारद द्वारा प्रथम जन्म में महाविष्णु की आराधना करके बदरी तीर्थ में नारद शिला की स्थापना का वर्णन), १.२०६.६९ (नारद द्वारा मार्कण्डेय की अल्पजीविता के नाश हेतु सन्तों की सेवा का निर्देश), १.२१०(नारद द्वारा सृंजय - पुत्री मालावती से विवाह का वृत्तान्त, ज्येष्ठ भ्राता सनत्कुमार के उपदेश से कृतमाला तट पर तप हेतु गमन), १.३५५ (पुत्र की मृत्यु पर शोकग्रस्त राजा निमि को नारद द्वारा श्राद्ध क्रिया क्रम का उपदेश), १.३६४.२३ (नारद द्वारा प्रियव्रत को द्रष्ट आश्चर्य का वर्णन ; नारद द्वारा सावित्री के दर्शन पर वेदों की विस्मृति, सावित्री के शरीर में तीन पुरुषों के रूप में तीन वेदों का दर्शन ), १.३७९.४९ (पञ्चचूडा अप्सरा द्वारा नारद को स्त्री स्वभाव का वर्णन), १.३९८.८८ (नारद द्वारा धरणी व विर्य~राज - कन्या पद्मा के सामुद्रिक लक्षणों का वर्णन, विष्णु पत्नी होने की भविष्यवाणी करना), १.४०८ (नारद के विश्वावसु गन्धर्व - पुत्र उपबर्हण रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त, उपबर्हण की मृत्यु पर पत्नी मालावती द्वारा उपबर्हण को पुन: जीवित कराने का वृत्तान्त), १.४११.५८ (नारद व पर्वत की अम्बरीष - कन्या श्रीमती में आसक्ति, नारद व पर्वत द्वारा विष्णु से एक दूसरे के लिए वानरमुखता की याचना, स्वयंवर में श्रीमती द्वारा विष्णु का वरण करने पर नारद व पर्वत द्वारा विष्णु व अम्बरीष को शाप देने का वृत्तान्त), १.४४१.९३ (वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन हेतु नारद के पारिजात वृक्ष बनने का उल्लेख - नारदोऽभूत्पारिजातो गौरी वृन्दाऽभवत्तदा ।। ), १.५०९.२५(ब्रह्मा के सोमयाग में ब्रह्मा ऋत्विज - ब्रह्मा भवतु नारदो गर्गोऽस्तु सत्रवीक्षकः ।। ), १.५२२.९ (नारद द्वारा सावित्री के शरीर में तीन वेद रूपी तीन पुरुषों के दर्शन का वृत्तान्त, सरोवर में स्नान से नारद द्वारा अपने पूर्व जन्म का स्मरण करना : पूर्व जन्म में शारद ब्राह्मण द्वारा तप का वृत्तान्त), १.५२२.६४ (नारद शब्द की निरुक्ति : आत्म स्थित विष्णु को जल देने वाले - नारं पानीयमित्युक्तं नारं ज्ञानं तथोच्यते ।। नारं त्वात्मस्थितं विष्णुं यो ददाति स नारदः ।), १.५५०.२६ (नारद द्वारा विभिन्न तीर्थों में विष्णु के दर्शन करने पर वास्तविक विष्णु के स्वरूप के बारे में भ्रम, विष्णु द्वारा नारद को स्वप्राप्ति के उपायों का कथन), २.१५७.२० (नारद के दक्षिण कुक्षि में न्यास का उल्लेख), ३.३६.७० (५०वें नारद नामक वत्सर में कलियुग में धर्म स्थापनार्थ श्री नाथ नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.५८.८७(गानविद्या में तुम्बुरु से समता प्राप्ति के लिए नारद द्वारा तप), ३.५९ (नारद द्वारा गानविद्या में तुम्बुरु की समानता के लिए गानबन्धु उलूक आदि से शिक्षा प्राप्त करना, उलूक की चिरजीविता का वरदान आदि), ३.१७०.१८ (श्रीहरि के नारद नामक २९वें धाम का उल्लेख), कथासरित् ४.१.१७(नारद द्वारा वत्सराज उदयन को मृगया के वर्जन का परामर्श ; वत्सराज के पुत्र रूप में कामदेव के अवतार होने का कथन), ४.२.१३९(नारद द्वारा चित्राङ्गद विद्याधर को सिंह होने का शाप), ८.२.१२ (इन्द्र का दूत बनकर नारद द्वारा राजा चन्द्रप्रभ को मर्त्य पुत्र सूर्यप्रभ को विद्याधरों का अधिपति न बनाने को कहना), ८.२.१६२(इन्द्र के  दूत के रूप में नारद का प्रह्लाद को भावी विद्याधर राज श्रुतशर्मा से वैर न करने के लिए कहना) १४.१.८२(शूली /शिव के दूत के रूप में नारद द्वारा वत्सराज उदयन को पुत्र नरवाहनदत्त की कुशलक्षेम सूचित करना), १५.२.१५(नारद द्वारा चक्रवर्ती विद्याधरराज नरवाहनदत्त को मेरु विजय से निवृत्त करना), महाभारत शान्ति २३०(नारद के गुणों का वर्णन ), कृष्णोपनिषद २४(सुदामा के नारद मुनि का रूप होने का उल्लेख ) naarada/narada

नारद ( १ )-एक देवर्षि, जो ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं । ये जनमेजय के सदस्य बने थे ( आदि० ५३ । ८)। ये ही कालान्तर में देवगन्धर्व होकर कश्यप द्वारा 'मुनि' के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं ( आदि० ६५ । ४४)। इन्होंने तीस लाख श्लोकों वाला महाभारत देवताओं को सुनाया था (नारदोऽश्रावयद्देवानसितो देवलः पितॄन्। - आदि० १ । १०६-१०७, स्वर्गा० ५। ५६)। इन्होंने दक्ष के पुत्रों को सांख्यज्ञान का उपदेश दिया था, जिससे वे सब के सब विरक्त होकर घर से निकल गये थे (सहस्रसङ्ख्यानसंभूतान्दक्षपुत्रांश्च नारदः। मोक्षमध्यापयामास साङ्ख्यज्ञानमनुत्तमम्।। आदि० ७५ । ७-८)। ये अर्जुन के जन्म-समय में पधारे थे ( आदि० १२२ । ५७) । द्रौपदी के स्वयंवर में अन्य गन्धर्वो और अप्सराओं के साथ गये थे (आदि. १८६ । ७ ) । द्रौपदी के निमित्त पाण्डवों का आपस में कोई मतभेद न हो-इस उद्देश्य से इनका इन्द्रप्रस्थ में आगमन (आदि० २०७ । ९)। इनके गुण, प्रभाव एवं रहस्य का विशद वर्णन ( आदि० २०७ । ९ के बाद दा० पाठ)। इनके द्वारा पाण्डवों के प्रति सुन्द और उपसुन्द की कथा का वर्णन करके द्रौपदी के विषय में परस्पर फूट से बचने के लिये कोई नियम बनाने की प्रेरणा (आदि. अध्याय २०८ से २२१ तक)। इनका वर्गा आदि शापग्रस्त अप्सराओं को आश्वासन और दक्षिण समुद्र के समीपवर्ती तीथों में रहने का आदेश देना (दक्षिणे सागरानूपे पञ्च तीर्थानि सन्ति वै। पुण्यानि रमणीयानि तानि गच्छत मा चिरं।।आदि० २१६ । १७ ) । इनके गुणों का उल्लेख, इनके द्वारा युधिष्ठिर को प्रश्न के रूप में विविध मङ्गलमय उपदेश (सभा० ५ अध्याय)। इनके द्वारा इन्द्र, यम, वरुण, कुबेर तथा ब्रह्माजी की सभा का वर्णन (सभा० अध्याय ५ से ११ तक ) । इनका हरिश्चन्द्र की संक्षिप्त कथा सुनाकर युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ करने के लिये पाण्डु का संदेश सुनाना ( सभा० १२ । २३-३४ ) । बाणासुर द्वारा अनिरुद्ध के कैद होने की श्रीकृष्ण को सूचना देना (सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८२२, कालम १ )। राजसूय यज्ञ में अवभृथ-स्नान के समय इन्होंने युधिष्ठिर का अभिषेक किया ( सभा० ५३ । १०) । कौरवों के विनाश के विषय में नारद की भविष्यवाणी ( सभा० ८० । ३३-३५)। इन्होंने धौम्य को सूर्य के अष्टोत्तरशत नाम का उपदेश दिया था ( वन० ३ । ७८ )। इनका शाल्व को मारने के लिये उद्यत प्रद्युम्न के पास आकर देवताओं का संदेश सुनाना ( वन० १९ । २२-२४ ) । इन्द्रलोक में अर्जुन के स्वागत में अन्य गन्धर्वो के साथ ये भी पधारे थे (वन० ४३ । १४ )। इनके द्वारा इन्द्र के प्रति दमयन्ती स्वयंवर की सूचना (वन० ५४ । २०-२४)। इनका युधिष्ठिर को तीर्थयात्रा का प्रसङ्ग सुनाकर अन्तर्धान होना (प्रदक्षिणां यः कुरुते पृथिवीं तीर्थतत्परः। किं फलं तस्य कार्त्स्न्येन तद्भवान्वक्तुमर्हति ।।वन० ८१ । १२ से ८५ अध्याय तक)। राजा सगर को उनके पुत्रों की मृत्यु का समाचार सुनाना (वन० १०७ । ३३ ) । अर्जुन को दिव्यास्त्र प्रदर्शन से रोकना (अर्जुनार्जुन मा युङ्क्ष दिव्यान्यस्त्राणि भारत। नैतानि निरधिष्ठाने प्रयुज्यन्ते कथंचन ।। वन० १७५ । १८-२३ )। काम्यकवन में पाण्डवों के पास इनका आगमन और मार्कण्डेय मुनि से कथा सुनने का अनुमोदन करना (वन० १८३ । ४७-४९)। सुहोत्र और शिबि में इनका शिबि को ही बढ़कर बताना (क्रूरः कौरव्य मृदवे मृदुः क्रूरे च कौरव । साधुश्चासाधवे साधुः साधवे नाप्नुयात् कथम् ।।वन. १९४ । ३-७)। राजा अश्वपति से सत्यवान् के गुण-दोष का वर्णन करके उनके साथ सावित्री के विवाह के लिये सम्मति देकर विदा होना (वन० २९४ । ११-३२)। शान्ति-दूत बनकर हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्ण की परिक्रमा करना ( उद्योग० ८३ । २७ ) । पुत्री के लिये वर की खोज में जाते समय मातलि को वरुणलोक में ले जाना और वहाँ आश्चर्यजनक वस्तुएँ दिखाना (उद्योग० ९८ अध्याय ) । मातलि को पाताल-लोक में ले जाना (उद्योग० ९९ अध्याय)। मातलि से हिरण्यपुर का वर्णन और दिग्दर्शन ( उद्योग० १०० अध्याय )। मातलि को गरुडलोक में ले जाना ( उद्योग० १०१ अध्याय)। मातलि से संतानसहित सुरभि तथा रसातल का वर्णन (उद्योग० १०२ अध्याय)। मातलि से नागलोक का वर्णन ( उद्योग० १०३ अध्याय ) । आर्यक के सम्मुख मातलि की कन्या के विवाह का प्रस्ताव (उद्योग० १०४।१ -७)। दुर्योधन को समझाते हुए धर्मराज द्वारा विश्वामित्र की परीक्षा और विश्वामित्र को गुरुदक्षिणा देने के लिये गालव के हठ का वर्णन (उद्योग० १०६ अध्याय से १२३-२२ तक)। भीष्म को परशुरामजी के ऊपर प्रस्वापनास्त्र के प्रयोग से मना करना ( उद्योग० १८५ । ३-४ )। पुत्रशोक से दुखी अकम्पन को इनके द्वारा सान्त्वना (द्रोण ५२ । ३७ से द्रोण० ५४ । ४४-५० तक)। राजा सृंजय से उनकी कन्या को माँगना (द्रोण० ५५ । १२ )। महर्षि पर्वत के शाप के बदले उन्हें शाप देना (द्रोण. ५५ । १७) । राजा सृंजय को पुत्र प्राप्ति का वर देना (द्रोण० ५५ । २३ के बाद)। पुत्रशोक से दुखी सृंजय को मरुत्त का चरित्र सुनाकर समझाना (द्रोण० ५५ । ३६-५०)। राजा सुहोत्र की दानशीलता का वर्णन करना ( द्रोण० ५६ अध्याय )। पौरव की दानशीलता का वर्णन (द्रोण० ५७ अध्याय )। शिबि के यज्ञ और दान की महत्ता का वर्णन (द्रोण० ५८ अध्याय) । श्रीराम के चरित्र का वर्णन (द्रोण० ५९ अध्याय)। राजा भगीरथ के चरित्र का वर्णन (द्रोण० ६० अध्याय)। महाराज दिलीप के उत्कर्ष का वर्णन (द्रोण० ६१ अध्याय )। मान्धाता की महत्ता का वर्णन (द्रोण० ६२ अध्याय )। महाराज ययाति का वर्णन (द्रोण. ६३ अध्याय )। राजा अम्बरीष के चरित्र का वर्णन (द्रोण० ६४ अध्याय)। राजा शशबिन्दु के दान का वर्णन (द्रोण० ६५ अध्याय)। राजा गय के चरित्र का वर्णन (द्रोण ० ६६ अध्याय )। राजा रन्तिदेव के अतिथिसत्कार का वर्णन (द्रोण. ६७ अध्याय) । राजा भरत के चरित्र का वर्णन (द्रोण० ६८ । अध्याय ) । राजा पृथु के चरित्र का वर्णन ( द्रोण ० ६९ अध्याय)। परशुरामजी का चरित्र सुनाना (द्रोण० ७० अध्याय)। सृंजय के मरे हुए पुत्र को जीवित करके उन्हें देना (द्रोण० ७१ । ८) । रणक्षेत्र में अर्जुन द्वारा बाणों के प्रहार से प्रकट किये हुए सरोवर को देखनेके लिये नारदजी वहाँ पधारे थे (द्रोण० ९९ । ६१)। रात्रियुद्ध में कौरव-पाण्डव सेनाओं में दीपक का प्रकाश करना (द्रोण० १६३ । १५)। वृद्धकन्या को विवाह करने के लिये प्रेरित करना (शल्य० ५२ । १२ - १३)। बलरामजी से कौरवों के विनाश का समाचार बताना (शल्य० ५४ । २५-३४)। अश्वत्थामा और अर्जुन के ब्रह्मास्त्रको शान्त करने के लिये प्रकट होना (सौप्तिक० १४। ११)। युद्ध के पश्चात् युधिष्ठिर के पास आकर उनसे कुशल-समाचार पूछना (शान्ति० १ । १०-१२)। युधिष्ठिर से कर्ण को शाप प्राप्त होने का प्रसंग सुनाना ( शान्ति० अध्याय २ से ३ तक ) । कर्ण के पराक्रम का वर्णन (शान्ति० अध्याय ४ से ५ तक)। इनके द्वारा सृंजय के प्रति कहे हुए षोडश-राजकीयोपाख्यान का श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर के समक्ष वर्णन (शान्ति० २९ अध्याय ) । श्रीकृष्ण द्वारा पर्वत ऋषि के साथ इनके विचरने और परस्पर शाप आदि का वर्णन ( शान्ति० ३० अध्याय)। इनका युधिष्ठिर को सृंजयपुत्र सुवर्णष्ठीवी का वृत्तान्त सुनाना (शान्ति० ३१ अध्याय)। शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म को देखने के लिये अन्य ऋषियों के साथ इनका भी जाना (शान्ति० ४७ । ५) । युधिष्ठिर आदि को भीष्मजी से धर्मविषयक प्रश्न के लिये प्रेरणा देना (शान्ति० ५४ । ८-१०)। जाति-भाइयों में फूट न पड़ने के विषय में श्रीकृष्ण के प्रश्नों का उत्तर (शान्ति. ८१ अध्याय )। सेमलवृक्ष की प्रशंसा ( शान्ति. १५४ । १०-३१)। सेमलवृक्ष का अहंकार देखकर उसे फटकारना (शान्ति० १५५ । ९-१८) । वायुदेव के पास जाकर सेमलवृक्ष की बात कहना ( शान्ति० १५६ । २-४) । भगवान् विष्णु से कृपा-याचना ( शान्ति. २०७ । ४६ के बाद ) । भगवान् विष्णु का स्तवन (शान्ति० २०९ । दाक्षिणात्य पाठ)। इन्द्र के साथ लक्ष्मी का दर्शन ( शान्ति० २२८ । ११६)। पुत्रशोक से दुखी अकम्पन को समझाना ( शान्ति० अध्याय २५६ से २५८ तक )। महर्षि असितदेवल से सृष्टिविषयक प्रश्न (शान्ति० २७५ । ३)। महर्षि समङ्ग से उनकी शोकहीनता का कारण पूछना (शान्ति. २८६ । ३-४) । गालवमुनि को श्रेय का उपदेश देना (शान्ति०२८७ । १२--५९)। व्यासजी के पास आना और उनकी उदासी का कारण पूछना ( शान्ति० ३२८ । १२-१५) । व्यासजी को पुत्र के साथ वेदपाठ करने को कहना ( शान्ति० ३२८ । २०-२१)। शुकदेवजी को वैराग्य और ज्ञान आदि विविध विषयों का उपदेश (शान्ति० अध्याय ३२९ से ३३१ तक ) । नरनारायण के समक्ष सबसे श्रेष्ठ कौन है, इस बात की जिज्ञासा (शान्ति० ३३४ । २५-२७)। श्वेतद्वीप का दर्शन और वहाँ के निवासियों का वर्णन (शान्ति० ३३५ । ९-१२)। दो सौ नामों द्वारा भगवान् की स्तुति (शान्ति. ३३८ अध्याय ) । श्वेतद्वीप में भगवान् का दर्शन (शान्ति. ३३९ । १-१०)। श्वेतद्वीप से लौटकर नर-नारायण के पास जाना और उनके समक्ष वहाँ के दृश्य का वर्णन करना (शान्ति० ३४३ । ४७-६६ )। मार्कण्डेयजी के विविध प्रश्नों का उत्तर देना (अनु० २२ । दाक्षिणात्य पाठ)। श्रीकृष्ण के पूछने पर पूजनीय पुरुषों के लक्षण और उनके आदर-सत्कार से होनेवाले लाभ का वर्णन करना (अनु. ३१ । ५-३५)। पञ्चचूड़ा अप्सरा से स्त्रियों के स्वभाव के विषय में प्रश्न ( अनु० ३८ । ६)। भीष्मजी से अन्नदान की महिमा का वर्णन ( अनु० ६३ । ५४२ ) । देवकी देवी को विभिन्न नक्षत्रों में विभिन्न वस्तुओं के दान का महत्त्व बताना ( अनु० ६४ । ५--३५)। अगस्त्यजी के कमलों की चोरी होने पर शपथ खाना (अनु० ९४ । ३० ) । पुण्डरीक को श्रेय के लिये भगवान् नारायण की आराधना का उपदेश देना ( अनु० १२४ । दाक्षिणात्य पाठ)। इनके द्वारा हिमालय पर्वत पर भूतगणों सहित शिवजी की शोभा का वर्णन ( अनु० १४० अध्याय )। संवर्त को पुरोहित बनाने के लिये मरुत्त को सलाह देना (आश्व० ६ । १८-१९ )। मरुत्त को संवर्त का पता बताना (आश्व० ६ । २०-२६)। महर्षि देवमत के प्रश्नों का उत्तर देना (आश्व० २४ अध्याय)। युधिष्ठिर के अश्वमेध-यज्ञ में इनकी उपस्थिति (आश्व० ८८ । ३९) । नारदजी का प्राचीन ऋषियों की तपःसिद्धि का दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्र की तपस्याविषयक श्रद्धा को बढ़ाना और शतयूप के पूछने पर धृतराष्ट्र को मिलनेवाली गति का वर्णन करना (आश्रम० २० अध्याय)। इनका युधिष्ठिर के समक्ष वन में कुन्ती, गान्धारी और धृतराष्ट्र के दावानल से दग्ध होने का समाचार बताना ( आश्रम ३७ । १-३८ )। धृतराष्ट्र लौकिक अग्नि से नहीं, अपनी ही अग्नि से दग्ध हुए हैं-यह युधिष्ठिर को बताना और उनके लिये जलाञ्जलि प्रदान करने की आज्ञा देना ( आश्रम० ३९ । १-९)। साम्ब के पेट से मूसल पैदा होने का शाप देनेवाले ऋषियों में ये भी थे (मौसल० १ । १५-२२ )। इनके द्वारा युधिष्ठिर की प्रशंसा (महाप्र० ३ । २६--२९)।

महाभारतमें आये हुए नारदजीके नाम-ब्रह्मर्षि, देवर्षि, परमेष्ठिज, परमेष्ठी, परमेष्ठिपुत्र और सुरर्षि आदि । (२) विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों मे से एक ( अनु० ४ । ५३)।

नारदागमनपर्व-आश्रमवासिक पर्व का एक अवान्तर पर्व (अध्याय ३७ से ३९ तक)।

नारदी-विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक (अनु० ४ । ५९)।

 

Remarks by Dr. Fatah Singh

नारद नारद और पर्वत एक ही तत्त्व के दो पक्ष हैं। नारद का जन्म दिव्य आप: के अन्नमय कोश में अवतरित होने से उत्पन्न नर प्राणों से हुआ है । पर्वत शरीर के पर्व - पर्व में बसे प्राणों का प्रतीक है । यह दोनों मित्र हैं। पर्वत को तीर्थयात्रा करने की आवश्यकता है , नारद को नहीं । नारद ऊपर - नीचे कहीं भी जा सकते हैं।

Esoteric aspect of Naarada

Vedic view of Naarada