PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Nala to Nyuuha )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

HOME PAGE


Nala - Nalini( words like  Nala, Nalakuubara, Nalini etc.)

Nava - Naaga ( Nava, Navaneeta / butter, Navami / 9th day, Navaratha, Navaraatra, Nahusha, Naaka, Naaga / serpent  etc.)

Naaga - Naagamati ( Naaga / serpent etc.)

Naagamati - Naabhi  ( Naagara, Naagavati, Naagaveethi, Naataka / play, Naadi / pulse, Naadijangha, Naatha, Naada, Naapita / barber, Naabhaaga, Naabhi / center etc. )

Naama - Naarada (Naama / name, Naarada etc.)

Naarada - Naaraayana (  Naarada - Parvata, Naaraayana etc.)

Naaraayani - Nikshubhaa ( Naaraayani, Naarikela / coconut, Naaree / Nari / lady, Naasatya, Naastika / atheist, Nikumbha, Nikshubhaa  etc.)

Nigada - Nimi  ( Nigama, Nitya-karma / daily ablutions, Nidhaagha, Nidra / sleep, Nidhi / wealth, Nimi etc.)

Nimi - Nirukta ( Nimi, Nimesha, Nimba, Niyati / providence, Niyama / law, Niranjana, Nirukta / etymology etc. )

 Nirodha - Nivritti ( Nirriti, Nirvaana / Nirvana, Nivaatakavacha, Nivritti etc. )

Nivesha - Neeti  (Nishaa / night, Nishaakara, Nishumbha, Nishadha, Nishaada, Neeti / policy etc. )

Neepa - Neelapataakaa (  Neepa, Neeraajana, Neela, Neelakantha etc.)

Neelamaadhava - Nrisimha ( Neelalohita, Nriga, Nritta, Nrisimha etc.)

Nrihara - Nairrita ( Nrisimha, Netra / eye, Nepaala, Nemi / circumference, Neshtaa, Naimishaaranya, Nairrita etc.)

Naila - Nyaaya ( Naivedya, Naishadha, Naukaa / boat, Nyagrodha, Nyaaya etc.)

Nyaasa - Nyuuha ( Nyaasa etc. )

 

 

Puraanic contexts of words like Nrisimha, Netra / eye, Nepaala, Nemi / circumference, Neshtaa, Naimishaaranya, Nairrita etc. are given here.

नृहर ३.३.१७.५ (पृथ्वीराज - पुत्र, दु:शासन का अंश), ३.३.२६.२९ (राजपुत्र), ३.३.२६.८१ (युद्ध में नृहर द्वारा अभय का वध), ३.३.२६.९० (दु:शासन का अंश, युद्ध में रणजित् द्वारा वध), ३.३.३१.७५ (नृहर का मूलवर्मा की कन्या प्रभावती से विवाह )  nrihara

 

नेतिष्य मत्स्य १९५.२७(एक भार्गव गोत्रकार ऋषि )

 

नेत्र गरुड २.३०.५७/२.४०.५७(मृतक के नेत्रों में कपर्दिका देने का उल्लेख), ब्रह्म २.९३.३१ ( पक्षिग? हंस से नेत्रों की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३१(नेत्र दीप्ति हेतु दर्पण दान का निर्देश ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२४४(नेत्रवान् : वाली के सामन्त व वानर नायकों में से एक), भविष्य ३.४.२५.३५(ब्रह्माण्ड देह से चाक्षुषप्रद सूर्य की और ब्रह्माण्ड नेत्र से सोम व सोम से वैवस्वत मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख), भागवत २.३.२२ (विष्णु के लिङ्गों के दर्शन न करने वाले नयनों के मोर के चक्षु - चिह्नों की भांति व्यर्थ होने का कथन), ९.२३.२२(धर्म - पुत्र, कुन्ति - पिता, यदु वंश), लिङ्ग १.९८.१६२ (विष्णु के नेत्रों का सुदर्शन चक्र बनना ?), वामन ७८.५८(प्रभास ब्राह्मण - पुत्र, गतिभास नामक वामनावतार - भ्राता, नेत्रभास द्वारा गतिभास का गृह से निष्कासन), ९०.३१ (सैन्धवारण्य में विष्णु का सुनेत्र नाम), वायु ६.१६ (वराह के अक्षों का क्रतु से साम्य), ६९.३२/२.८.३२(महानेत्र : किन्नरों के गण में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.३७ (नेत्रों की आकृति), शिव ३.३९.१९ (नेत्रों से दर्शन के चार प्रकारों उज्ज्वल, सरस आदि का वर्णन), स्कन्द ४.१.४२.१४(नेत्रों में मातृमण्डल होने का उल्लेख), ५.१.५१.६(शिव द्वारा तृतीय नेत्र से सर्पों के २१ कुण्डों के अमृत के पान का उल्लेख), ५.२.२६.२३(समुद्र मन्थन के संदर्भ में वासुकि को नेत्र बनाने का उल्लेख), ५.३.१५०.१८(शिव के एक नेत्र के समाधि में, एक पार्वती के शृङ्गार में तथा एक काम को भस्म करने में व्यस्त होने का कथन), ५.३.१६९.२८(राजा देवपन्न की कन्या कामप्रमोदिनी के नेत्र कर्णान्त तक होने का उल्लेख), ७.४.१७.२३(नेत्रभङ्ग : नैर्ऋत दिशा में कृष्ण की रक्षा करने वाले गणों में से एक), हरिवंश २.८०.१८(नेत्रों की सुन्दरता के लिए करणीय कर्तव्यों का कथन), ३.१७.४७(अव्यक्त के नेत्रों से ऋग्वेद व यजुर्वेद की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५० (अलक्ष्मी के नेत्र महिषी सदृश होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३४२.२५ (दक्ष के तप से रुद्र के ललाट में तीसरा नेत्र उत्पन्न होने का कथन ) ; द्र. कुनेत्रक, त्रिनेत्र, दुर्नेत्र  netra

 

नेत्रसिंह भविष्य ३.३.१३.१७ (स्वर्णवती कन्या - पिता, इन्द्र से शत्रु विजयक ढक्का की प्राप्ति), ३.३.१३.९४ (शल्य का अंश, आह्लाद आदि को स्वकन्या स्वर्णवती प्रदान करने का उद्योग, छल से आह्लाद की हत्या का यत्न, बन्धन ग्रस्त होना, भ्राता हरानन्द द्वारा नेत्रसिंह का मोचन आदि), ३.३.३२.४८ (शल्यांश, कुरुक्षेत्र में युद्धार्थ आगमन), ३.३.३२.९५ (परिमल - सेनापति, गजपति से युद्ध )  netrasimha

 

नेदिष्ठ लक्ष्मीनारायण २.२३२.५३(कृष्ण के द्विनेदिष्ठ पुरी में जाने का उल्लेख )

 

नेपाल देवीभागवत ७.३८ (नेपाल में गुह्य काली देवी का वास), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.९३(५१ पीठ स्थानों में से एक), वायु १०४.७९/२.४२.७९(नेपाल पीठ के नयनों में न्यास का उल्लेख), शिव ४.१९.१५(केदार तीर्थ में स्थित महिष रूप धारी शिव का शिर नयपाल में होने का उल्लेख), स्कन्द ५.२.७०.२, २९(नेपाल के राजा दुर्द्धर्ष द्वारा कल्प द्विज की कन्या की प्राप्ति, राक्षस द्वारा कन्या का हरण व महाकाल की कृपा से पुन: प्राप्ति का वृत्तान्त), कथासरित् १२.२२.३(नेपाल के राजा यश:केतु की कन्या शशिप्रभा के विवाह का वृत्तान्त )  nepaala/nepal

 

नेमि ब्रह्माण्ड ३.४.१.१४ (सुतपा देवगण का नाम), भागवत ९.२२.३९(नेमिचक्र : असीमकृष्ण - पुत्र, चित्ररथ - पिता, कौशाम्बी को राजधानी बनाना), मत्स्य १५०.१६१ (तारक - सेनानी, कालनेमि को परामर्श देना), वायु ५१.६० (सूर्य रथ में षड्ऋतु रूपी नेमि), ९९.३५२/२.३७.३४६(नेमिकृष्ण : आपादबद्ध - पुत्र, २५ वर्षों तक राज्य करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३११.४४ (पद्मनेमि : समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण के हाथ में पुष्प गुच्छ देना), २.१४०.८५(नेमि नामक प्रासाद में अण्डों, तलों व तिलों की संख्या का कथन), २.२४५.५०(जीवरथ में आचार के नेमि होने का कथन), महाभारत आश्वमेधिक ३२.२६ (जनक के सत्त्वनेमि वाले चक्र का प्रवर्तक होने का उल्लेख ) ; द्र. अरिष्टनेमि, कालनेमि, वसुनेमि  nemi

 

नेष्टा पद्म १.३४.१७(पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ में बृहस्पति के नेष्टा बनने का उल्लेख), मत्स्य १६७.९(पुरुष रूपी यज्ञ की ऊरु से नेष्टा व अच्छावाक् की सृष्टि का उल्लेख), वायु २९.२९(उशीराग्नि के नैष्ठीय अग्नि होने का उल्लेख), स्कन्द ३.१.२३.२७(ब्रह्मा के यज्ञ में वरुण के नेष्टा बनने का उल्लेख), ६.५.८(त्रिशङ्कु व विश्वामित्र के यज्ञ में अत्रि के नेष्टा बनने का उल्लेख), ६.१८०.३४(उत्तर? पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ में रैभ्य मुनि के नेष्टा बनने का उल्लेख), ७.१.२३.९७ (ब्रह्मा/चन्द्रमा के यज्ञ में क्रथ के नेष्टा बनने का उल्लेख ) ; द्र. ऋत्विज  neshtaa

Comments on Neshtaa

नै:श्रेयस भागवत ३.१५.१६(वैकुण्ठ के नै:श्रेयस वन के महत्त्व का कथन )

 

नैकजिह्व मत्स्य १९५.२७(भार्गव गोत्रकार एक ऋषि )

 

नैकवक्त्रा विष्णु ५.२०.४(कुब्जा का नाम, श्रीकृष्ण द्वारा सुन्दरी बनाना ) ; द्र. कुब्जा

 

नैगमेय ब्रह्माण्ड २.३.३.२५(स्कन्द का अंश, कुमार - भ्राता, अग्नि - पुत्र), मत्स्य ५.२६(स्कन्द का अंश, कुमार - भ्राता, अग्नि - पुत्र), वामन ६८.६० (शिव गण, युद्ध में अय:शिरा दैत्य पर शक्ति से आक्रमण करने का कथन), ६९.४८(नैगमेय के बाण असुर से युद्ध का उल्लेख), वायु ६६.२४(कुमार के अनुजों में से एक, अग्नि - पुत्र), विष्णु १.१५.११५(वही) ; द्र. वंश वसुगण  naigameya

 

नैतुन्द ब्रह्माण्ड २.३.७.३८३(पिशाचों के १६ गणों में से एक), वायु ६९.२६४(नितुन्दक पिशाचों के स्वरूप का कथन )

 

नैध्रुव ब्रह्माण्ड १.२.३२.११२(६ ब्रह्मवादी काश्यपों में से एक), मत्स्य १४५.१४६(वही), स्कन्द ३.३.१८+ (अन्ध ऋषि, शारदा के वैधव्य की समाप्ति के लिए उमा - महेश्वर व्रत का उपदेश ; जगदम्बा के प्रसाद से चक्षुओं की प्राप्ति), ४.१.२४.६० (नैध्रुव का अल्पायु में मरण )  naidhruva

 

नैमित्तिक वायु १०१.१४/२.३९.१४(जन आदि ३ नैमित्तिक लोकों की नैमित्तिक संज्ञा )

 

नैमिषारण्य कूर्म १.३७.३७ (कृतयुग में नैमिषारण्य की विशिष्टता - कृते तु नैमिषं तीर्थं त्रेतायां पुष्करं परम् । द्वापरे तु कुरुक्षेत्रं कलौ गङ्गां विशिष्यते ।। ), २.४३.७ (नैमिषारण्य की उत्पत्ति व माहात्म्य - यत्रास्य नेमिः शीर्येत स देशः पुरुषर्षभाः । ततो मुमोच तच्चक्रं ते च तत्समनुव्रजन् ।), देवीभागवत ४.९ (च्यवन की प्रेरणा से प्रह्लाद का नैमिषारण्य में आगमन, नर - नारायण से युद्ध), ७.३८ (ललिता देवी के वास का स्थान), नारद २.६३.३१(नैमिष में विष्णु सारूप्य प्राप्ति का उल्लेख - नैमिषे विष्णुसारूप्यं पुष्करे ब्रह्मणेंऽतिकम् ।। आखंडलस्य लोको हि कुरुक्षेत्रे च माघतः ।। ), पद्म १.१.१० (चक्र नेमि की शीर्णता से नैमिषारण्य की उत्पत्ति, सूत द्वारा पुराण कथन - गंगावर्तसमाहारो नेमिर्यत्र व्यशीर्यत। ईजिरे दीर्घसत्रेण ऋषयो नैमिषे तदा।), ३.२६.१०४(कुरुक्षेत्र में सरस्वती में नैमिष कुञ्ज तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य का संक्षिप्त कथन), ब्रह्माण्ड १.१.२.८ (नैमिषारण्य में हिरण्य से निर्मित यज्ञशाला पर पुरूरवा को लोभ की उत्पत्ति, ऋषियों द्वारा पुरूरवा का वध - भ्रमतो धर्मचक्रस्य यत्र नेमिरशीर्यत । कर्मणा तेन विख्यातं नैमिषं मुनिपूजितम् ॥), भविष्य २.२.८.१३०(नैमिष में महाफाल्गुनी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख - महाफाल्गुनी नैमिषे च निर्दिष्टाः स्युर्महाफलाः ।।), मत्स्य १३.२६(नैमिष में सती देवी के लिङ्गधारिणी नाम का उल्लेख - वाराणस्यां विशालाक्षी नैमिषेलिङ्गधारिणी॥), महाभारत शल्य ३७.५७(नैमिष कुञ्ज : प्रतीची सरस्वती के प्राची सरस्वती बनने का स्थान- कस्मात्सरस्वती ब्रह्मन्निवृत्ता प्राङ्मुखीभवत्।...भूयः प्रतीच्यभिमुखी प्रसुस्राव सरिद्वरा।। ), वराह ११.१०७(नैमिषारण्य की निरुक्ति : निमेष भर में दैत्यों का नाश - उवाच निमिषेणेदं निहतं दानवं बलम् ।। रण्येऽस्मिंस्ततस्त्वेवं नैमिषारण्यसंज्ञितम् ।), १५३.५(नैमिष निवासी निषाद द्वारा मथुरा में यमुना में स्नान से राजा बनने का वृत्तान्त - कश्चित्पापसमाचारो निषादो दुष्टमानसः ।। वसते नैमिषारण्ये सुप्रतीतेऽतिपापकृत्।।), वामन ९०.९ (नैमिष तीर्थ में विष्णु का पीतवासा नाम से वास - भृगुतुङ्गे सुवर्णाक्षं नैमिषे पीतवाससम्। गयायां गोपतिं देवं गदापाणिनमीश्वरम्।। ), वायु १२५ , २.७(यज्ञ सत्र में भ्रमण करते हुए धर्म चक्र की नेमि शीर्ण होने से नैमिष नाम प्राप्ति - भ्रमतो धर्मचक्रस्य यत्र नेमिरशीर्यत। कर्मणा तेन विख्यात नैमिषं मुनिपूजितम् ।।), २.१३ (नैमिषारण्य में ऋषियों द्वारा पुरूरवा का वध), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.४(नैमिष में धर्म की पूजा का निर्देश - अयोध्यायां तथा रामं नैमिषे धर्ममेव च ।। कर्णाटे चाश्वशिरसं मद्रदेशे नृकेसरिम् ।।), शिव ७.१.३.५३(मनोमय चक्र की नेमि के शीर्ण होने के स्थान पर नैमिषारण्य के विख्यात होने का कथन - एतन्मनोमयं चक्रं मया सृष्टं विसृज्यते ॥  यत्रास्य शीर्यते नेमिः स देशस्तपसश्शुभः ॥), ७.१.४.३(नैमिषारण्य में ब्रह्मा के वैश्वसृज होम में वायु का आगमन व ऋषियों से संवाद), स्कन्द १.२.४५.१०९ (नैमिष में वायु व वरुण द्वारा लिङ्ग की स्थापना का उल्लेख), २.३.७.१(पञ्च धाराओं के संदर्भ में नैमिष में एक धारा गिरने का उल्लेख), ५.३.१३९.१० (इन्द्रिय ग्राम के निरोध से नैमिष आदि तीर्थों की उत्पत्ति का उल्लेख - संनिरुध्येन्द्रियग्रामं यत्रयत्र वसेन्मुनिः । तत्रतत्र कुरुक्षेत्रं नैमिषं पुष्कराणि च ॥), ७.१.१०.८( नैमिषारण्य का तैजस महाभूत वाले तीर्थों में वर्गीकरण - अमरेशं प्रभासं च नैमिषं पुष्करं तथा ॥ आषाढिं चैव दण्डिं च भारभूतिं च लांगलम् ॥) लक्ष्मीनारायण १.१७४.४३(नैमिषारण्य में ऋषियों के दीर्घसत्र में शिव द्वारा दक्ष का अपमान, दक्ष द्वारा दुर्वचन कहने पर नन्दी द्वारा दक्ष व ब्राह्मणों को शाप), ३.२२७.४५ (नैमिषारण्य में मन, इन्द्रियों के कुण्ठित हो जाने का कथन - क्षेत्रं वै नैमिषारण्यं कुण्ठितं यत्र मानसम् ।। इन्द्रियाणि कुण्ठितानि निवृत्तानि स्थिराणि च ।naimishaaranya/ naimisharanya

 

नैर्ऋत ब्रह्माण्ड २.३.७.१४१(राक्षसों के ४ गणों में से एक), २.३.७.१६३(कुबेर के नैर्ऋत गण आदि राक्षसों के राजा होने का उल्लेख), २.३.८.६२(राक्षसों के ७ गणों में से एक, निशाचर), भविष्य १.५७.९(नैर्ऋत हेतु शष्कुली देने का निर्देश), ३.४.११ (भव रुद्र की आराधना से नैर्ऋत ब्राह्मण का रुद्र से सायुज्य), भागवत १२.११.४८(नैर्ऋत राक्षसों द्वारा सूर्य के रथ के पृष्ठ में रहकर रथ को चलाने का उल्लेख), मत्स्य १७९.१०(नैर्ऋती : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ सृष्ट मातृकाओं में से एक), २६१.१५(नैर्ऋत दिशा के लोकपाल के नर वाहन, स्वरूप आदि का कथन), २६६.२२(वही), २८६.८ (नैर्ऋती देवी का स्वरूप), वायु ६९.१६२/२.८.१६७(त्र्यम्बक - अनुचर होने के कारण नैर्ऋत राक्षस गण की उत्तम गणों में परिगणना),२.८.१६७(राक्षसगण, निर्ऋता - पुत्र), ६९.१७३/२.८.१६७(राक्षसों के गणों में से एक, त्र्यम्बक के अनुचर), ८४.१४/२.२२.१४(रेवती पूतना - पुत्र गण, बाल ग्रह होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर  २.१३२.११ (नैर्ऋती शान्ति का वर्ण), स्कन्द ४.२.६९.१६० (नैर्ऋतेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.१७७.५२(दक्ष यज्ञ में नैर्ऋत के चण्ड से युद्ध का उल्लेख )  nairrita